एक स्थान उसको रहने के लियें दे दिया। दुर्गादास नाम का एक साहसी राजपूत राजकुमार अजित की रक्षा करने के लिए नियुक्त हुआ। अजित की माता ने अपने पुत्र अजित को राजसिंह के आश्रय में भेज दिया था। लेकिन वादशाह औरंगजेब पर वह जल रही थी। इसलिए उससे वदला लेने के लिए वह तरह-तरह की बातें सोचने लगी। मारवाड़ के सामन्त और सरदार जसवंतसिंह की विधवा रानी के पास एकत्रित हुए और वे औरंगजेब से बदला लेने के प्रश्न पर परामर्श करते रहे । इन दिनों में औरंगजेब राणा राजसिंह से बहुत अप्रसन्न था और राजसिंह भी उसकी अनीति को देखकर बहुत सावधानी से काम ले रहा था। अपने साम्राज्य में वह हिन्दुओं के साथ जैसा निन्दनीय व्यवहार कर रहा था, उससे राणा राजुसिंह वहुत अप्रसन्न था। इस बीच में उसने औरंगजेब को एक लम्वा पत्र लिखकर भेजा और उसमें उसके सारे कारनामों का उल्लेख किया, जो मुगल साम्राज्य में हिन्दुओं के विरुद्ध चल रहे थे अपना यह पत्र राजसिंह ने मुगल बादशाह के पास भेज दिया और उसके परिणाम की वह प्रतीक्षा करने लगा। बादशाह ने उस पत्र को पढ़ा । उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। इस बीच में राणा राजसिंह ने कई ऐसे कार्य किए थे, जिनको सहन करने के लिए अव औरंगजेब किसी प्रकार तैयार न था। राजसिंह ने प्रभावती के साथ विवाह किया था। औरंगजेब के लिये उसकी यह पहली चुनौती थी। इसके बाद उसने अजितसिंह को अपने यहाँ आश्रय दिया और इसके पश्चात् उसने इस प्रकार का एक पत्र भेजा। यह तीनों बातें औरंगजेब के लिए असहनीय हो उठी। क्रोध में आकर उसने राजसिंह पर आक्रमण करने का निश्चय किया और अपनी फौज को तैयार होने के लिए उसने हुक्म दिया। मुगल सेना में युद्ध की तैयारियां शुरू हो गयीं। औरंगजेब अपनी शक्तिशाली सेना लेकर राजसिंह पर आक्रमण करने के लिए तैयार हुआ। उसके जितने प्रसिद्ध सेनापति थे, बादशाह के हुक्म से अपनी बड़ी से बड़ी फौज तैयार करने में लग गये। बंगाल से शहजादा अकवर और कावुल से अजीम बुलाया गया। औरंगजेब का उत्तराधिकारी शाहजादा मुअज्जम दक्षिम में शिवाजी के साथ युद्ध कर रहा था। औरंगजेब का हुक्म पाकर अपनी फौज के साथ वह लौटकर आ गया और राजसिंह पर आक्रमण करने के लिए तैयार होने लगा। औरंगजेब अपनी विशाल और शक्तिशाली सेना लेकर मेवाड़-राज्य की तरफ रवाना हुआ। मुगल सेना के आने की खबर मिलते ही राणा राजसिंह ने अपने सामन्तों और सरदारों को बुलाकर युद्ध के लिए तुरन्त तैयार होने का आदेश दिया। इस मौके पर बहुत-सी प्रजा अपने-अपने स्थानों को छोड़कर अरावली पर्वत के पहाड़ी स्थानों पर चली गयी। प्रजा के चले जाने से मेवाड़ के बहुत से स्थान सुनसान हो गये। इस प्रकार के सभी स्थानों पर मुगल सेना ने अधिकार कर लिया और चित्तौड़, मांडलगढ़, मन्दसौर, जीरन नामक नगरों के साथ-साथ अनेक दुर्ग भी इस समय वादशाह के अधिकार में चले गये और उन पर मुगलों का शासन शुरू हो गया। इसके बाद औरंगजेब ने राजसिंह को गिरफ्तार करने के लिए अपनी फौज को हुक्म दिया। मुगल सेना राणा की खोज में आगे बढ़ी। मुगलों के साथ युद्ध करने के लिए राजसिंह अपनी राजपूत सेना के साथ तैयार हो चुका था। बादशाह से युद्ध करने के लिए अनेक पहाड़ी जातियों के लोग अपने धनुष-बाणों साथ राणा की सेना में आ गये। दोनों तरफ से युद्ध के लिए जोरदार तैयारियां की गयीं। इसके बाद दोनों सेनायें एक दूसरे के सामने बढ़ने लगी। राणा ने अपनी सम्पूर्ण सेना को तीन भागों में विभाजित किया और उनको अलग-अलग सेनापतियों के अधिकार में दे 251
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