राजपूतों की यह विशाल सेना उदयपुर से चलकर उस रास्ते पर पहुँच गयी, जो आगरा से रूपनगर की तरफ जाता था। उस रास्ते पर पहुँचकर चूंडावत सरदार ने अपनी सेना का मुकाम किया। इसके बाद बादशाह के आने वाले लश्कर का पता लगाने के लिए कुछ राजपूत रवाना हुए। उन्होंने लौटकर बताया कि मुगल बादशाह की एक बड़ी फौज आ रही है और उस फौज के आगे बादशाह हाथी पर बैठा हुआ आ रहा है। उसी समय चूंडावत सरदार ने राजपूतों को तैयार हो जाने के लिए आदेश दिया। कुछ समय के पश्चात् जहाँ पर राजपूतों की सेना पड़ी थीवादशाह का लश्कर आ गया। रास्ते में राजपूत सेना की मौजूदगी का समाचार पाकर वादशाह के आदमी आगे बढ़े और उन्होंने लौटकर बादशाह को बताया कि मेवाड़ के चूंडावत सरदार की सेना पड़ी हुई है और वह सेना रास्ता रोक रही है। बादशाह ने अपनी फौज के निकल जाने के लिए रास्ता चाहा। लेकिन चूंडावत सरदार ने रास्ता देने से इन्कार कर दिया। बादशाह ने चूंडावत सरदार को यह बताया कि हम रूननगर जाना है । उदयपुर और मेवाड़ से हमारा कोई प्रयोजन नहीं है। चूंडावत सरदार के रास्ता न देने पर बादशाह औरंगजेब ने अपनी फौज को आगे बढ़ने का हुक्म दिया। राजपूत सेना इसके लिए पहले से ही तैयार थी। मुगल सेना के आगे बढ़ते ही युद्ध आरम्भ हो गया। वह युद्ध कई दिन तक चलता रहा। कोई निर्णय न हुआ। दोनों पक्ष के बहुत-से आदमी मारे गये। लेकिन कोई पक्ष निर्वल न पड़ रहा था। युद्ध की यह दशा देखकर औरंगजेब बहुत चिन्तित हुआ। उसने विवाह के लिए जो दिन और समय निश्चित किया था, वह निकला जा रहा था। लेकिन रास्ते में होने वाला यह युद्ध जल्दी समाप्त होता हुआ दिखायी न दे रहा था। यह देखकर औरंगजेब वहुत चिन्तित हुआ। उसने अपना दूत भेजकर चूंडावत सरदार से बातचीत की। उसका उद्देश्य इस समय किसी प्रकार रूपनगर पहुँचने से था । रास्ते में होने वाले इस युद्ध का उसे कुछ पता न था। युद्ध के तीसरे दिन मुगल सेना का जोर बढ़ा । राजपूतों ने शक्ति भर उसका मुकाबला किया। इन तीन दिनों में राजपूत अधिक संख्या में मारे गये। बादशाह की फौज बहुत बड़ी थी। पचास हजार सैनिकों के द्वारा उसको पराजित करना बहुत कठिन था। इस बात को चूंडावत सरदार भी जानता था। वह तो राणा राजसिंह के परामर्श के अनुसार वादशाह को रास्ते में उतने समय तक रोकना चाहता था, जितने समय में राणा राजसिंह प्रभावती से व्याह करके उदयपुर चला जाये और उसके बाद रूपनगर पहुँचने पर बादशाह औरंगजेब को प्रभावती न मिले। तीसरे दिन के भयंकर युद्ध में बादशाह के साथ चूंडावत सरदार की बातचीत हुई। बादशाह ने मुगल सेना के निकल जाने के लिए रास्ता माँगा । चूंडावत सरदार ने समझ लिया कि मुगल सेना को रोकने के लिए जितने समय की आवश्यकता थी, उसकी पूर्ति हो चुकी है और रूपनगर वहाँ से काफी दूर है । बादशाह की फौज के पहुँचने के पहले ही राजसिंह प्रभावती को लेकर उदयपुर चला जायेगा । उसने बादशाह को उत्तर देते हुए कहा- “मैं रास्ता देने के लिए तैयार हूँ । लेकिन आप शपथपूर्वक मेरी एक छोटी-सी बात को मंजूर करें।" बादशाह किसी भी सूरत में रूपनगर पहुंचना चाहता था। रास्ते में एक घड़ी की देर उसको असहनीय हो रही थी। उसने चूंडावत सरदार की बात को सुना और खुशी के साथ उसकी माँग को मंजूर करने का वादा किया। इसके बाद चूंडावत सरदार ने कहाः “दस वर्ष तक उदयपुर में आप कोई आक्रमण न करेंगे। आपके इस वादे पर मैं अपनी सेना लेकर चला जाऊंगा और आपके साथ युद्ध न करूँगा।” 249
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