अध्याय-22 महाराणा कर्णसिंह, जगतसिंह और राजसिंह अमरसिंह की मृत्यु के बाद उसका बड़ा लड़का कर्ण अपने पिता के राज सिंहासन पर सम्वत् 1677 सन् 1621 ईसवी में बैठा। इसके पहले से ही मेवाड़ राज्य लगातार युद्धों के कारण शक्तिहीन हो गया था। कनकसेन की सौराष्ट्र में स्थापना में लेकर इस समय तक पन्द्रह सौ वर्षों का लम्बा समय बीत चुका है। इस बीच में बप्ण रावल के वंश में होने वाले राजाओं पर जिस.प्रकार की विपत्तियाँ आयीं और उन विपदाओं के कारण मेवाड़ के राजाओं को समय-समय पर अपना राज्य और देश छोड़ कर पहाड़ों, जंगलों और निर्जन स्थानों में रह कर जीवन बिताना पड़ा, इसके वर्णन पिछले परिच्छेदों में किये जा चुके हैं । राणा अमरसिंह के बाद असके पुत्र कर्ण के शासन काल में मेवाड़ राज्य ने जिस प्रकार करवट बदली और उसके फलस्वरूप उस राज्य में जो परिवर्तन हुए, इस परिच्छेद में उन पर प्रकाश डाला जायेगा। राणा कर्ण का जीवन साहस और चरित्र से भरा हुआ था। सिंहासन पर बैठने के बाद उसने अपने राज्य की गिरी हुई परिस्थितियों का अध्ययन किया। राज्य सभी प्रकार से दीन-दुर्बल हो चुका था। शूरवीर लगातार लड़ाई के कारण मारे जा चुके थे और सम्पत्ति का राज्य में पूर्णरूप से अभाव था। न तो सरकारी खजाने में रुपया था और न राज्य की प्रजा के पास कुछ रह गया था। कर्ण ने इस अभाव को दूर करने की कोशिश की। प्रजा को सभी प्रकार की सुविधायें दी गयी, जिससे वह खेती के व्यवसाय से अपनी आर्थिक उन्नति कर सके। राणा कर्ण को इतने से ही संतोष न हुआ। इन सुविधाओं के द्वारा राज्य और प्रजा की गरीबी को दूर करने के लिए बहुत समय की आवश्यकता थी और कर्ण उस अभाव को जल्दी पूरा करने की चेष्टा में था। इसके लिए उसने अपने साथ सवारों की एक सेना तैयार की और उसे अपने साथ लेकर सूरत में पहुँच गया। वहाँ उसने लूट-मार की और अपने साथ लूट की एक अच्छी सम्पति लेकर वह लौट आया। इस सम्पत्ति की सहायता से राणा कर्ण ने राज्य के आर्थिक अभाव को बहुत-कुछ पूरा किया और उससे प्रजा को भी सहायता मिली। मेवाड़ के सिंहासन पर बैठकर राणा कर्ण ने अपने राज्य की उन्नति की । उसकी सेना में उसका छोटा भाई भीम सेनापति था। भीम जन्म से ही साहसी और तेजस्वी था। जहाँगीर का बेटा खुर्रम उसका बड़ा आदर करता था और इसी आदर के कारण दोनों में बहुत मित्रता बढ़ गयी थी। शाहजादा खुर्रम ने अपने पिता जहाँगीर से भीम की प्रशंसा की थी और लड़के की सिफारिश के कारण जहाँगीर ने भीम को राजा की उपाधि देकर बनास 243
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