पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२३३

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1 सिंहासन पर बैठकर अमरसिंह ने अपने राज्य की उन्नति के कई कार्य किये । खेतों में सुधार करवाया। भूमि के अनुसार उन पर कर लगाया गया। जिन सामन्त और सरदारों ने राणा प्रताप की सहायता करके कठिनाइयों का सामना किया था, उनको नयी-नयी जागीरें दी गयीं। इन दिनों में अमरसिंह के सामने जीवन का कोई संघर्ष न था। वह शांति और विश्राम से अपना जीवन बिता रहा था। पिछोला झील के किनारे प्रताप ने रहने के लिए झोंपड़ियाँ बनवाई थीं, अमरसिंह ने वहाँ पर अपने लिए एक छोटा-सा राजमहल बनवाया। दिल्ली के सिंहासन पर बैठे हुए अभी चार वर्ष भी न बीते थे कि जहाँगीर ने अपने घरेलू झगड़ों को दूर किया और अमरसिंह पर आक्रमण करने की बात वह सोचने लगा। उसे मालूम था कि अमरसिंह शांतिपूर्वक बैठा हुआ है। उसके पास युद्ध की कोई तैयारी नहीं है। इस प्रकार का अवसर पाकर दिल्ली की मुगल सेना मेवाड़ की तरफ रवाना हुई। इस समाचार के मिलते ही अमरसिंह घबरा उठा। उसने इस प्रकार के आक्रमण का कोई अनुमान न किया था। अपने महल में रहकर वह संतोष का जीवन बिता रहा था। इन दिनों में उसकी विलासिता बढ़ गयी थी। शांति और संतोष के दिनों में अकर्मण्यता का पैदा होना स्वाभाविक होता है। अमरसिंह आलसी हो गया था। अनेक खुशामदी लोगों के पास रहने और उनकी झूठी प्रशंसाओं को सुनते-सुनते वह इस प्रकार की बातों को सुनने का अभ्यासी हो गया था। मुगल सेना के आक्रमण का समाचार सुनकर अमरसिंह संकट में पड़ गया। इस समय क्या करना चाहिए, इसका वह कुछ निर्णय न कर सका। जो खुशामदी लोग उसके पास रहा करते थे, वे अमरसिंह को उसकी निर्बल शक्तियों का आभास करा कर उत्साहहीन करने लगे। अमरसिंह को स्वयं अपने चारों ओर निर्बलता दिखायी देने लगी। आक्रमण के लिए आने वाली मुगल सेना का समाचार पाकर मेवाड़ के सरदार अमरसिंह के पास पहुंचे। वह जिस महल में रहा करता था और जिसको उसने स्वयं बनवाया था, उसका नाम उसने 'अमर-महल' रखा था। उसी अमर-महल में चित्तौड़ के सरदार एकत्रित हुए। उन्होंने देखा कि अमरसिंह के पास मुगलों के होने वाले आक्रमण को रोकने के लिए कोई तैयारी नहीं है। अमरसिंह को शांत देखकर सरदारों ने मुगल सेना आक्रमण की बात कही। परन्तु अमरसिंह ने उसके सम्बन्ध में कुछ सही उत्तर न दिया। अमरसिंह की यह अवस्था देखकर सरदारों को बड़ा असंतोष हुआ। इसी समय सलुम्बर सरदार ने उत्तेजना पैदा करने वाली बातें अमरसिंह से कहीं और अपने असंतोष में उसने यह भी कहा कि आप राणा प्रतापसिंह के बड़े लड़के हैं। आप सीसोदिया वंश के वंशज हैं । इस वंश ने अपनी स्वाधीनता की रक्षा के लिए किस प्रकार के वलिदान किये हैं, वह बहुत कुछ आपने अपने नेत्रों से देखा है। आक्रमण करने के लिए मुगल सेना सिर पर आ गयी है। ऐसे संकट के समय आपका चुपचाप बैठे रहना हम सबके निकट भय और असंतोष पैदा कर रहा है। आपको तुरंत युद्ध की तैयारी करनी चाहिए । अमरसिंह इन बातों को चुपचाप सुनता रहा। यह देखकर सलुम्बर सरदार को बहुत क्रोध आया। उसने दाहिना हाथ पकड़कर अमरसिंह को सिंहासन के नीचे की तरफ खींचा और कहा “सरदारों, राणा प्रतापसिंह के पुत्र को घोड़े पर बिठाकर मेवाड़ के कलंक की रक्षा करो। सलुम्बर सरदार के इस व्यवहार से अमरसिंह ने अपना अपमान अनुभव किया। परन्तु सलुम्बर सरदार ने उसकी कुछ भी परवाह न की। पास खड़े हुये अन्य सरदार लोग यह सब देखते रहे। सबके आग्रह करने पर अमरसिंह सिंहासन से उतरा और घोड़े पर 233