पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२१९

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सर्वप्रिय बनाया, तो उसके साथ उसके द्वारा युवावस्था के दौरान पर्वतीय भूभाग के युद्धों में प्रदर्शित युद्धकौशल, वीरता, दृढ़ साहस और सैन्य-नेतृत्व की प्रतिभा तथा सामान्यजनों को आकर्षित कर उनका सहयोग प्राप्त करने की उसकी क्षमता ने सैनिक वर्ग को न केवल प्रभावित किया अपितु उनमें नवीन उत्साह, आशा और आत्मविश्वास का संचार किया। 1572 ई. में गोगूदा में मेवाड़ राज्य के उत्तराधिकार की समस्या का जिस प्रकार से किसी कलह के विना, शांतिपूर्ण ढंग से समाधान हो गया तथा जिस भांति प्रताप को वड़े एकतावद्ध और उल्लासपूर्ण वातावरण में गद्दीनशीन किया गया और उस समय पूरी दृढ़ता एवं जोश के साथ मेवाड़ की स्वतंत्रता कायम रखने की प्रतिज्ञा की गई, उसका प्रधान कारण बत्तीस वर्षीय प्रताप की सैनिक नेतृत्व की क्षमता, जन-संगठन की अपूर्व प्रतिभा तथा दृढ़ साहस और वीरता के गुण थे। प्रताप की सफलता में उसकी प्रशासनिक क्षमता और उपयुक्त आर्थिक योजना का जितना योगदान रहा, उनसे भी बढकर संघर्ष में पर्वतवासियों, प्रधानतः आदिवासियों की सक्रिय भागीदारी रही। वस्तुत: प्रताप ने अपने नेतृत्व के गुणों से सामान्यजनों एवं आदिवासियों को आंदोलित करके संघर्ष का सक्रिय भागीदार बना दिया और मेवाड़ के मुगल विरोधी युद्ध को मेवाड़ की संपूर्ण जनता के स्वतंत्रता-संघर्ष का स्वरूप दे दिया। मध्यकालीन युग में यह एक आश्चर्यजनक एवं असंभव को संभव बनाने वाली घटना थी। युद्ध-कार्य में जनता की भागीदारी जनता ने राज्य की युद्ध-योजना और राज आज्ञा के अनुसार कृषि के कार्य, वस्तु-उत्पादन, वाणिज्य आदि के कार्य छापामार युद्ध कार्य शत्रु के साथ संपूर्णतः एवं उसकी त्रस्त करने के कार्य आदि सभी कार्यवाहियों में अनुशासनवद्ध ढंग से सक्रिय भागीदारी निभाई। शत्रु को रसद नहीं मिली, वह पहाड़ों और वनों में मार्ग ढूंढने के लिये भटकता रहा, उसको राह दिखाने वाला नही मिला और आकस्मिक धावों की मार से लुटता रहा एवं त्रस्त होता रहा, यही प्रायः मुगल सैनिकों का हश्र रहा। प्रताप की स्वयं की सरलता, सादगी,त्याग एवं बलिदान के उदाहरण ने सभी को समान रूप से प्रेरित किया और सामंतों, सैनिकों, आदिवासियों एवं अन्य सामान्यजनों के मध्य अभूतपूर्व स्नेह, विश्वास, समानता और सहयोग का वातावरण बना दिया। 7. कला व संस्कृति में योगदान प्रताप के सम्बन्ध में यह मान्यता रही है कि लगातार युद्ध करते रहने और कठिन पर्वतीय जीवन विताने के कारण प्रताप को कला और संस्कृति की उन्नति की ओर ध्यान देने का समय और अवसर नहीं मिला, अतएव इस दिशा में उसका कोई योगदान नहीं रहा। किन्तु अद्यतन शोध ने इस मान्यता को असत्य सिद्ध कर दिया है। यह ज्ञातव्य है कि प्रताप के लिये 1572 से 1576 ई. का काल संघर्ष के लिये तैयारी का काल रहा, 1576 से 1586 ई. के मध्य का काल अनवरत युद्धों का काल रहा तथा 1586 से 1597 ई. तक का अर्थात उसके देहान्त होने तक का काल अपेक्षाकृत शांति का काल रहा । (1) निर्माण कार्य 1579 ई. के लगभग प्रताप ने छप्पन के घने पहाड़ी क्षेत्र में चावंड ग्राम को अपनी राजधानी बनाया और इस सुरक्षित स्थल से उसने अपनी संपूर्ण कार्यवाहियाँ संचालित की। 1586 ई. के वाद जब मुगल सेना के आक्रमण बन्द हुए तो इसी केन्द्र से उसने अपने राज्य के मैदानी भू-भाग पर पुन: अधिकार स्थापित किया। प्रारम्भ में चावंड में उसने चामुंडा देवी का मंदिर निर्मित करवाया। धीरे-धीरे चावंड की छोटी पहाड़ी पर विशाल राजप्रासाद बनवाये, सामंतों की हवेलियां और सैनिकों के लिये गृह वनवाये। चावंड में उपलब्ध 219