प्रताप की प्रशासनिक योग्यता 1. महाराणा के प्रशासनिक गुणों की उपेक्षा इतिहास लेखकों द्वारा राणा प्रताप के प्रशासनिक कोशल, सूझ-बूझ एवं दूरदर्शिता पर गहराई से विचार करना महत्वपूर्ण नहीं समझा गया है। जब एक बार एक पक्षीय दृष्टिकोण अपनाकर इतिहासकार यह मंतव्य प्रकट कर देते हैं कि "राणा प्रताप के विशिष्ट आदर्श की संकीर्णता और उसकी विरोधपूर्ण नकारात्मक नीति में हर प्रकार की रचनात्मकता का पूर्ण अभाव था” अथवा यह कि “आदर्श ऊंचा न हो तो प्रताप की जैसी वीरता और दृढ़ता भी फलदायक नहीं हो सकती” अथवा यह कि “यद्यपि प्रताप एक महान् योद्धा था और जिसकी उस युग को आवश्यकता थी, फिर भी प्रताप ने अकबर की महत्ती नीति का विरोध करके भूल की। प्रताप की नीति देश के लिये हानिकारक सिद्ध हुई और उससे उसके देश मेवाड़ का विनाश और बरबादी हुई," अथवा यह कि यद्यपि प्रताप के राज्य की भूमि, भौतिक साधन और जनशक्ति अकबर से अत्यन्त कम थी किन्तु वह साहस, वीरता और चरित्र की दृढ़ता, देशभक्ति, सैनिक-प्रतिभा और नेतृत्व के गुणों में अकबर के बराबर था, फिर भी प्रताप में रचनात्मक योग्यता, दृष्टि की व्यापकता, राजनैतिक अन्तर्दृष्टि और राजनीतिज्ञता का अभाव था, तो स्वाभाविक रूप से उन्होंने यह भी निर्णय कर लिया कि राणा प्रताप एक जुझारू लड़ाका,अदम्य वीर, अटल प्रतिज्ञापालक और अपनी स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करने वाला अटूट योद्धा अवश्य था, किन्तु शासकीय गुणों का उसमें सर्वथा अभाव रहा । 2. सत्य तथा वास्तविकता यदि हम सत्य का सहारा लेवें और तथ्यों को सामने रखें तो पाएंगे कि- (क) महाराणा प्रताप के विरुद्ध दस वर्षों के काल में अकबर द्वारा संपूर्ण शक्ति लगाकर प्रताप को पकड़ने और उसकी शक्ति को नष्ट करने के बार-बार प्रयास किये गये, यहां तक कि मेवाड़ के घने पर्वतीय एवं वनीय भाग में अनुभवी राजपूत योद्धाओं सहित मुगल सेना भेजी गई, किन्तु हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी। प्रताप ने मेवाड़ के पर्वतीय भू-भाग की किलेबंदी, पर्वों में प्रवेश के सभी मार्गों की नाकेबंदी तथा पहाड़ों में सुरक्षा एवं आक्रमण सम्बन्धी सैनय- व्यवस्था इतनी दक्षता के साथ की, कि जब भी मुगल सेना ने पर्वतीय भाग में प्रवेश करके आक्रमण किये उसको अंत में असफल होने के साथ सदैव जन-धन की हानि उठानी पड़ी। परिणामस्वरूप अकबर ने हार मानकर 1586 ई. में मेवाड़ को स्वतंत्र छोड़ दिया। (ख) जब अकबर ने मेवाड़ विरोधी सैनिक अभियान बंद कर दिया तब प्रताप ने अपनी सैनिक कार्यवाही द्वारा कुछ ही महिनों में मेवाड़ राज्य के मैदानी भाग से मुगल थाने उठा दिये एवं चित्तौड़गढ़ और मांडलगढ़ के सिवाय मेवाड़ राज्य का मुगल विजित अधिकांश मैदानी भू-भाग वापस जीत लिया और पुनः अपना शासन-प्रबंध कायम कर (ग) प्रताप ने दीर्घकालीन युद्ध-काल के दौरान घने पर्वतीय भू-भाग छप्पन क्षेत्र में चावंड कस्बे को स्थायी राजधानी बनाया, जहां से उसने सैनिक अभियान संचालित किये, अपने शासन का प्रबंध किया, वहां भवन निर्माण कराये और वहां उसके दरबार में साहित्य, कला एवं संस्कृति की उन्नति को प्रोत्साहन मिला। ये तथ्य इस बात को दर्शाते हैं कि राणा प्रताप संघर्ष-काल में केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागता नहीं रहा और केवल लड़ता ही नहीं रहा, जैसा कि सामान्यतः लिखा गया है, अपितु दीर्घकालीन संघर्ष-काल में प्रताप के प्रतिभाशाली , योग्य एवं कुशल शासक दिया। 214
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