भाग तक किले की भांति बने हुए हैं। आवरगढ़ वस्तुतः कुम्भलगढ़ एवं गोगुंदा छोड़ने के बाद कुछ समय तक प्रताप की राजधानी रहा । आवरगढ़ के विशाल एवं विस्तृत पर्वत की चढ़ाई लगभग चार मील है और उसका बारह मील का घेरा है, जिसके चारों ओर परकोटा बना हुआ था। उसके भीतर हजारों लोग एक साथ रह सकते थे । पहाड़ पर छोटा तालाब एवं कुएं हैं तथा उस पर आम, आंवला, अरेड़ी, कारवा, कणज आदि पेड़ों की बहुतायत है। कोल्यारी गांव इससे तीन मील की दूरी पर है, जहां प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध के बाद अपने घायल सैनिकों का इलाज कराया था। उस समय प्रताप ने इस पर्वत को संकटकाल में रक्षा-स्थल के रूप में चुन लिया था। अरावली के पर्वतों की विशेषता उनके शिखरों पर मिलने वाली बड़ी-बड़ी कन्दराएं हैं, जो विभिन्न नामों से पुकारी जाती हैं, जैसे मायरा की गुफा, मचीन की गुफा, जावर की गुफा आदि । पहाड़ों के शिखरों पर स्थित ये कंदराएं ही प्रताप के सैन्य दलों के गुप्त निवास का काम करती थीं, जिनमें 200 से 500 व्यक्ति एक साथ रह सकते थे और जिनसे निकल कर एवं नीचे उतर कर वे मुगल सेना पर आकस्मिक धावा बोलते थे। उनका पीछा करना एवं उनकी टोह पाना शत्रु सेना के लिये कठिन था। इन्हीं कंदराओं में राजकीय धन, शस्त्रास्त्रों आदि के भंडार सुरक्षित रहते थे। आपातकाल में ये कंदराएं स्त्रियों एवं बाल-बच्चों के लिये निवास का काम करती थीं। विशेष बात यह है कि लगभग सभी कंदराओं में वर्ष भर जल बहता रहता है। अतः ये कन्दराएं आत्मनिर्भर थीं। प्रताप ने सामरिक आधार पर जो आर्थिक प्रबंध किया,उससे प्रताप को कभी भी भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा हो, ऐसा नहीं लगता । जिस भांति वह निरंतर मुगल सेना का सफलतापूर्वक सामना करता रहा और अंत में जिस प्रकार उसने तेजी से संपूर्ण मेवाड़ विजय कर लिया,उससे युही प्रकट होता है । मुगल सेना,मुगल थानों और काफिलों की लूट-पाट और अजमेर, मालवा और गुजरात के इलाकों में समय-समय पर आक्रमण करके धन प्राप्त करना- उन दिनों में प्रताप के लिये आय के अतिरिक्त साधन थे । अतएव राणा प्रताप को पहाड़ों एवं वनों में निरंतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागने वाले, घासफूस की झोंपड़ी में रहने वाले तथा अन्न और रोटी के लिये मोहताज रहने वाले भगौड़े सेनापति के रूप में चित्रित करना सर्वथा गलत एवं बेबुनियाद है और ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत है महाराणा की अद्भुत सफलता के कारण अपने साधन सम्पन्न शत्रु के विरुद्ध राणा प्रताप की सफलता और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा निस्संदेह ही इतिहास की एक अनूठी एवं अतुलनीय घटना है। समूचे घटनाक्रम पर विचार करने से राणा प्रताप की सफलता एवं विजय के कई कारण स्पष्ट होते हैं- (1) राणा प्रताप का उच्च नैतिक चरित्र, दृढ़-मनोबल, अटूट आत्मविश्वास एवं अटल निश्चय; उसके उच्च आदर्श और नीतियां और अपने उदेश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये उसका सर्वस्व त्याग एवं सम्पूर्ण समर्पण । (2) अरावली पर्वतमाला का दुर्गम भू-क्षेत्र, जिसने प्रताप के लिये अविजेय प्राकृतिक दुर्ग का काम किया और जिसमें बहुतायत से उपलब्ध पानी, अन्न और फलों ने जन-जीवन को सुरक्षित रखा। (3) राणा प्रताप की प्रशासनिक कुशलता, जिसके कारण वह संकटकाल में दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में अपने प्रशासन के सभी अंगों को सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित रख सका और आवश्यकतानुसार उनमें परिवर्तन करता रहा। 207
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२०७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।