की रक्षार्थ छोड़कर, तेजी के साथ पश्चिमी मेवाड़ की पहाड़ियों में चावंड की ओर बढ़ने के लिये प्रवेश किया तो जगन्नाथ का ध्यान बंटाने और उसको चावंड की ओर बढ़ने से रोकने के लिये प्रताप ने पहाड़ी भाग से निकलकर मांडलगढ़ क्षेत्र में मुगल सैनिकों पर हमले किये । जव सैयद राजू ने पीछा करने का प्रयास किया तो प्रताप लड़ने के बजाय चित्तौड़ की ओर निकल गया। प्रताप के मांडलगढ़ की ओर होने के समाचार पाकर जगन्नाथ पहाड़ी क्षेत्र से वापस बाहर निकल आया। इसी बीच प्रताप पुनः चावंड पहुंच गया। मुगल सेना के चावंड पर आसन्न आक्रमण की संभावना को देखते हुए उसने वड़ी मुगल सेना के साथ सीधे मुकाबले से बचने के लिये राजपरिवार आदि को भोमट के उत्तरी पश्चिमी घने वनीय भाग में आवरगढ़ की ओर पहुंचा कर चावंड खाली कर दिया और अपने सैन्य-दलों को विभिन्न पहाड़ों पर चारों ओर जमा दिया । वर्षा ऋतु समाप्त होते ही सितंबर के प्रारम्भ में जाफर वेग, सैयद राजू, वजीर जमील, सैफुल्लाह मुहम्मद, शेर विहारी आदि सेनानायकों को लेकर जगन्नाथ कछवाहा पुन: पहाड़ी क्षेत्र में घुसा और 18 सितंवर, 1585 ई. को उसने चावंड को घेर लिया। किन्तु कस्वा खाली था और प्रताप वहां नहीं था। खीज कर जगन्नाथ ने राणा के महलों को लूटा और वहां का सारा सामान असवाव उठा ले गया। पहाड़ों के गुप्त स्थानों से निकल कर प्रताप के सैन्य दलों के आक्रमणों से बचने के लिये जगन्नाथ ने लौटने का दूसरा मार्ग पकड़ा और वह डूंगरपुर की ओर से निकल कर अजमेर चला गया। इसके संबंध में अबुलफजल लिखता है कि मुगल सेना प्रताप के आक्रमण से वच गई, क्योंकि वह दूसरे मार्ग से लौटी। इस भांति कछवाहा जगन्नाथ और सैयद राजू की सेनाओं के आक्रमण का भी वही निराशाजनक परिणाम निकला जो पहिले के मुगल आक्रमणों का हुआ था। पहाड़ी भांग में बड़ी संख्या में मुगल सैनिक मारे गये और उनको भारी मात्रा में रसद एवं शस्त्रों से हाथ धोना पड़ा। प्रताप की विजय एवं नई नीति (1586-88) जगन्नाथ कछवाहा की असफलता के बाद अकवर ने हार मान ली और उसने एक तरह से मेवाड़-समस्या से मुंह मोड़ लिया। उसने प्रताप को अपने हाल पर छोड़ दिया। 1585 ई. के बाद मेवाड़ पर मुगल आक्रमण बंद हो गये। अकवर को तेरह वर्षों (1598 ई) तक लाहौर में अपनी राजधानी रखकर, उस इलाके में ही रहना पड़ा। अपनी इस साम्राज्यी कार्यवाही में पूर्णत: व्यस्त रहने, अपने अधिकांश वड़े सैन्य अधिकारियों को इस क्षेत्र की सैनिक कार्यवाहियों में संलग्न रखने तथा मेवाड़ पर होने वाले निरर्थक जन-धन के व्यय से बचने के लिये अकवर ने अपनी प्रधान सेना वहां से हटा ली और मेवाड़ पर आक्रमण वंद कर दिये। जव राणा प्रताप को अकबर द्वारा अपनी बड़ी सेना लेकर काबुल की ओर प्रस्थान करने के समाचार मिले तो उसने अपनी नई रणनीति निश्चित की। प्रताप को यह ज्ञात ही, था कि अकवर अपने वार-वार के आक्रमणों की निष्फलता के कारण मेवाड़ विजय के सम्बंध में हताश हो चुका था और अव जवकि वह सुदूर उत्तर-पश्चिम के अभियान में संपूर्ण शक्ति के साथ लग रहा था और मेवाड़ को अधीन करने वाले आक्रमण वंद हो गये थे, तो प्रताप ने भी मुगल प्रदेशों पर आक्रमणों का सिलसिला बंद कर दिया। प्रताप ने मुगल-सत्ता को कोई बड़ी चुनौती दिये विना केवल अपने राज्य के उन मैदानी इलाकों को पुनः अपने अधिकार में लाने का उद्देश्य रखा, जो उसके पिता के काल में मेवाड़ राज्य के अन्तर्गत थे। अकवर की साम्राज्यी भावना और अंहकारी को देखते हुए यह निश्चित था कि वह अवसर देखकर अपनी असफलता का मलाल अपने मन से हटाने के लिये पुनः मेवाड़ 202
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