44 एक और राजनैतिक दूरदर्शिता एवं कूटनीति की सफलता का उदाहरण हम प्रताप के व्यवहार में पाते हैं और यह था मेवाड़ के पड़ोसी राज्यों से यथासंभव झगड़ा मोल न लेना। यही कारण था कि अकवर द्वारा प्रताप को चारों ओर से घेरने का प्रयास असफल रहा। महाराणा की राजनीति एक और ऊँचे स्तर को प्राप्त करती दिखाई देती है जबकि प्रताप राजस्थान के विभिन्न राज्यों से आने वाले कई विद्रोही सामन्तों को अपने यहां शरण देते दिखाई देते हैं। वृंदी से आया राजकुमार दूदा तथा डूंगरपुर के राजकुमार सहसमल इसके उदाहरण हैं। महाराणा की कूटनीति:- साधारणतया राजनीति की प्रसिद्ध मान्यता है कि 'आक्रामकता ही वचाव का सर्वोच्च साधन है।" परंतु राणा प्रताप ने रूढ़िवादी राजनीतिज्ञ की तरह व्यवहार न करते हुए रक्षात्मक राजनीति को अपना आधार वनाया। यहाँ प्रताप मराठा इतिहास के नायक शिवाजी के पुरोगामी दिखाई देते हैं। उनकी कूटनीति निम्न विन्दुओं के आधार पर समझाई जा सकती है। (i) मुगलों को आक्रमण का अवसर न देते हुए वातचीत का रास्ता हमेशा खुला रखने का आभास देते रहे। (ii) समझौते की बातचीत को टालना व उससे प्राप्त समय का उपयोग मेवाड़ की सुरक्षा हेतु तैयारी के लिए करना। मुगल साम्राज्यवादी प्रयत्नों से प्रताड़ित तत्वों की ओर सहयोग का हाथ वढ़ाना। (iii) बातचीत के प्रयत्नों में यदि मुग़ल बादशाह दरवार में व्यक्तिश: महाराणा को उपस्थित होने की शर्त तथा मनसव स्वीकार करने की अनिवार्यता आदि की माँग करे तो दोप उसी पर डालना। इसमें राणा सफल भी रहे। महाराणा की विलक्षण युद्धनीति-जैसा कि पहले लिखा जा चुका है राणा प्रताप की युद्वनीति मूलत: मेवाड़ की सुरक्षा से जुड़ी थी तथा यथाशक्ति रक्षात्मक युद्ध, पर ही आधारित थी। इसी नीति पर चलते हुए राणा ने एक अभिनव कदम उठाया तथा चित्तौड़ की कमी को पूरा करते हुए कठिन पर्वतीय क्षेत्रों में कई किलों का निर्माण किया। ये सभी किले मेवाड़ के पर्वतीय प्रदेश में शत्रु के प्रवेश के संभावित रास्तों पर वताये गये। इसके दो उद्देश्य थे- (i) पर्वतीय क्षेत्र में सुरक्षित स्थान लेना व अपने सैनिकों की रक्षा करना। (ii) यदि शत्रु इस अंदरूनी क्षेत्र में आ जाये तो इन किलों की व्यूह रचना में फँसा कर उनका विनाश करना अथवा भागने को मजबूर करना। इन किलों में छप्पन क्षेत्र के किले तथा कुंभलगढ़, देसूरी, देवारी आदि क्षेत्रों के किले शामिल हैं। छापामार युद्ध का सफल प्रयोग-विश्व इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जव अपरिमित शक्तिशाली शत्रु के सामने एक दृढ़ प्रतिज्ञ कौम अपने सीमित साधनों को लेकर छापामार युद्ध प्रणाली के आधार पर अपने से कई गुना शक्तिशाली शत्रु को हरा कर यशस्वी हुई है। 193
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