पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१९

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--- राजस्थान के राज्यों की भौगोलिक स्थिति वहुत-सी बातों में एक दूसरे से भिन्न है। इसलिए उसका संक्षेप में यहाँ पर कुछ वर्णन आवश्यक है। आवू पहाड़ के सबसे ऊंचे शिखर पर खड़े होकर देखने से अरावली पहाड़ की 1500 फीट नीची श्रेणी को पार करती हुई दृष्टि मेवाड़ के मैदानों तक पहुँचेगी। चित्तौड़ के करीब ऊंची भूमि पर खड़े होकर देखने से यदि रतनगढ़ और सींगोली होकर कोटा की ओर जाने वाले रास्ते पर दृष्टिपात किया जाये तो रूसी तातार के छोटे-छोटे मैदानों की तरह के तीन मैदान दिखायी देंगे। अरावली पर्वत विन्ध्याचल से मिला हुआ है। इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि अरावली विन्ध्याचल से निकला है। यद्यपि दोनों पहाड़ों की ऊंचाइयों को लेकर अनेक प्रकार की इस विषय में शंकायें भी की जा सकती हैं। आबू पर खड़े होकर मालवा की भूमि पर दृष्टिपात करने से मालवा के काले मैदान दिखाई देते हैं। विन्ध्याचल के शिखरों से निकलकर उत्तर की ओर बहने वाली अनेक जल की धारायें देखने में आती हैं। उनमें कुछ धारायें ऊंचे टीलों से घाटियों पर गिरती हैं और कुछ पहाड़ी रास्तों को पार करती हुई चम्बल नदी में जाकर मिल जाती हैं। कुम्भलमेर से अजमेर तक का सम्पूर्ण भाग मेाडा के नाम से प्रसिद्ध है। वहाँ पर मेर नाम की एक पहाड़ी जाति के लोग रहा करते हैं। इस प्रकार के स्थानों की ऐतिहासिक बातें आगामी पृष्ठों में इतिहास के साथ लिखी गयी हैं। इस पहाड़ी स्थान की चौड़ाई लगभग 6 से 15 मील तक है। उस स्थान में करीब डेढ़ सौ गाँवों की आवादी है। यहाँ पर खेती का काम अधिक होता है। इस पर्वत माला पर खड़े होकर देखने से इसकी चोटियों पर कई एक किले दिखाई देते हैं। अरावली और उसके साथ सम्बन्ध रखने वाली पहाड़ियों पर खनिज और धातु सम्बन्धी अनेक पदार्थ पाये जाते हैं। वहाँ पर जो खानें हैं, उनमें राजाओं का अधिकार रहता है । कुछ पहले मेवाड़ में रॉगे की खानें थीं। यहाँ के लोगों का कहना है कि यहाँ पर खानों से चाँदी निकाली जाती थी। लेकिन मुगल शासन काल में उन खानों की बर्बादी हो गई। उसके पहले यहाँ पर ताँबे की खानें भी थीं, जिनसे पैसे बनाये जाते थे। इसके पश्चिमी भाग में सुरमा भी मिलता था। तामड़ा, नीलमणि, विल्लौर और साधारण श्रेणी के पन्ने भी मेवाड़ में पाये जाते थे। अरावली के ऊँचे स्थानों के बाद इस प्रदेश के पठार और मध्य हिन्द की ऊंची और वराबर जमीन कुछ बातों में विशेषता रखती है। इसीलिये उसके सम्बन्ध में थोड़ा-सा यहाँ प्रकाश डालना आवश्यक है । इस जमीन की ऊंचाई और विषमता पश्चिम से पूर्व की तरफ मैदानों को पार करने पर साफ-साफ दिखायी देती है। रणथम्भौर के करीव यह ऊंची जमीन अनेक पंक्तियों में बदलती हुई दिखायी देती है। सूर्य की धूप में उसके शिखर श्वेत रंग के मालूम होते हैं। यहाँ की नदियों का प्रवाह बड़ी तेजी के साथ बहता हुआ दिखायी देता है उनमें चार नदियाँ अपनी तेज धारा के लिये अधिक प्रसिद्ध हैं। इस ऊंची और वरावर जमीन का धरातल दूसरे ही प्रकार का है। कोटा के आगे की विस्तृत चट्टान पर वनस्पति का पूर्ण अभाव है। यहाँ की जमीन खनिज पदार्थों के लिये अच्छी नहीं समझी जाती । यहाँ पर सीसा और लोहा पाया जाता है। जिन स्थानों में खनिज पदार्थों की खानें हैं, उनका लाभ यहाँ के लोग बहुत कम उठा पाते हैं। यहाँ पर सीसा, रांगा और ताँबा अधिक मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन इस प्रकार की चीजों के लिये भी यहाँ के लोग दूसरे देशों पर आश्रित रहते हैं मध्य हिन्द की नदियों में चम्बल नदी सबसे बड़ी है। उसके बहुत से सोते विन्ध्याचल पर्वत के बीच में हैं। इस नदी की लम्बाई पाँच सौ मील से अधिक है। उसके । - 19