कर रहा था। अचानक उसके नेत्रों से आँसू गिरते हुए देखकर सरदारों ने इसका कारण पूछा । उनको उत्तर देते हुए राणा ने कहा- “अब मेरा अंतिम समय है। लेकिन एक ही कारण है जिससे मेरे प्राण नहीं निकल रहे हैं।" इतना कहकर राणा ने सरदारों की तरफ देखा और फिर कहा- “आज लोग मेरे सामने प्रतिज्ञा करें कि अपने प्राणों के रहते हुए आप लोग मेवाड़ की भूमि पर शत्रुओं को अधिकार न करने देंगे। आपके मुँह से इस प्रकार का आश्वासन पाकर मैं सदा के लिए आँखें बन्द कर लूँगा। मेरा लड़का अमरसिंह अपने पूर्वजों के गौरव की रक्षा न कर सकेगा। इसको मैं जानता हूँ। वह शत्रुओं से अपनी मातृभूमि को सुरक्षित नहीं रख सकता। अमरसिंह स्वभाव से विलासी है। जो कष्टों का सामना नहीं कर सकता, वह अपने जीवन में कभी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता। इतना कहने के बाद राणा का गला भर आया। कुछ रुककर उसने फिर कहना आरम्भ किया- “एक दिन इस झोपड़ी में प्रवेश करने के समय अमरसिंह अपने सिर की पगड़ी उतारना भूल गया था। इसलिए झोंपड़ी के दरवाजे पर लगे हुए बाँस से टकराकर उसकी पगड़ी नीचे गिर गयी । अमरसिंह को यह देखकर बुरा लगा उसने दूसरे दिन मुझसे कहा, रहने के लिए ऐसा महल बनवा दीजिए, जिससे इस प्रकार का फिर कोई कष्ट न हो।" यह कहते-कहते राणा गम्भीर हो उठा उसके बाद एक ठण्डी साँस लेकर प्रतापसिंह ने यह कहा-“मेरे मरने के बाद इन झोपड़ियों के स्थान पर राज महल बनेंगे और अमरसिंह उनमें रहा करेगा। राज महलों में रहने वाला जीवन के कठोर व्रत का पालन नहीं कर सकता । सुख की अभिलाषा रखने वाला कभी कोई महान कार्य करने के योग्य नहीं होता। मेवाड़-राज्य की मिली हुई स्वतंत्रता अमरसिंह के समय फिर चली जायेगी और जिस स्वतंत्रता के लिए मेवाड़ राज्य के अगणित शूरवीर राजपूतों ने अपने प्राणों का बलिदान किया, वह स्वतंत्रता फिर शत्रुओं के अधिकार में चली जायेगी। जिस सवतंत्रता के लिए अपने प्यारे राजपूत सैनिकों और सरदारों के साथ काँटों से भरे हुए पहाड़ी जंगलों में मैंने पूरे पच्चीस वर्ष बिताये हैं और मेरे परिवार के लोगों ने भूखे-प्यासे रहकर दिन काटे हैं, वह स्वाभिमान और गौरव मेरे मरने के बाद सुरक्षित न रहेगा, इस समय मेरे हृदयं की यही पीड़ा प्रतापसिंह के मुख से इन बातों को सुनकर सरदारों ने विश्वास दिलाते हुए राणा से कहा-“हम लोग बप्पा रावल के सिंहासन की शपथ खाकर आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम लोगों में जब तक एक भी जीवित रहेगा, मेवाड़ की भूमि पर शत्रुओं का अधिकार नहीं हो सकता। हम लोग शक्ति भर राजकुमार अमरसिंह को भी ऐसा कोई काम न करने देंगे, जिससे स्वर्ग में आपकी आत्मा को कष्ट पहुँचे । जब तक मेवाड़ राज्य की पूरी स्वतन्त्रता हम लोग प्राप्त न कर लेंगे, उस समय तक हम लोग इन्हीं झोंपड़ियों में रहेंगे।" सरदारों के मुख से राणा प्रताप ने इन शब्दों को सुना और उसके बाद अपनी आँखें बन्द कर ली। फिर राणा के नेत्र न खुले । सम्वत् 1653 सन् 1597 ईसवी में राणा प्रताप ने इस संसार को छोड़कर स्वर्ग की यात्रा की। 189
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१८९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।