महत्व और हर्ष के साथ खाकर प्रसन्न हैं, जिस प्रकार कोई राजप्रासाद में बने हुए भोजन के द्वारा प्रसन्न होता है। उसने सरदारों और राणा के मुखमण्डल पर किसी प्रकार की उदासी और चिन्ता नहीं देखी। उसने लौटकर राणा के जीवन की इन सब बातों का वर्णन वादशाह से किया। अकबर ने अपने सिपाही के मुख से राणा प्रताप के इन दिनों का हाल सुना। उसका कठोर हृदय काँप उठा। प्रताप के प्रति उसके हृदय का मनुष्यत्व जागृत हुआ। उसने मन ही मन राणा की कठिनाइयों का अनुमान लगाया और अपने दरवार के अनेक लोगों से उसने राणा प्रताप के त्याग, तपस्या और बलिदान की प्रशंसा की। अकबर के प्रसिद्ध सामन्त खानखाना ने अकबर के मुख से प्रताप की प्रशंसा सुनी। वह अत्यधिक प्रभावित हुआ और उसने उसी समय कहा- "इस संसार में सभी कुछ नाशवान हैं। राज्य और धन किसी भी समय नष्ट हो सकता है, लेकिन महान पुरुषों की ख्याति कभी नष्ट नहीं होती।" भयानक से भयानक विपत्तियों के आने पर भी राणा प्रतापसिंह का उत्साह कभी शिथिल न पड़ा। परन्तु अपने परिवार और छोटे-छोटे बच्चों के जीवन में इस समय जो कठिनाई चल रही थी, उससे कभी-कभी वह भयभीत हो उठता था। प्रायः उसकी स्त्री और उसके बच्चों के खाने-पीने की कोई व्यवस्था न हो पाती थी, जो कन्द मूल फल खाकर वे अपने दिन काट रहे थे, जब उनका भी कोई सुभीता न हो पाता तो राणा का हृदय कभी-कभी अधीर हो उठता था। मुगल सैनिक इस प्रकार उसके पीछे पड़ गये थे कि भोजन तैयार होने पर कभी-कभी खाने का अवसर न मिलता था और अचानक शत्रुओं का आक्रमण हो जाने पर भोजन छोड़कर सव को भागना पड़ता था। एक दिन तो यहाँ तक हुआ कि पाँच वार भोजन पकाया गया और पाँचों बार शत्रुओं के आ जाने से सब को भागना पड़ता। भोजन वहीं का वहीं पड़ा रह गया। एक दिन की घटना है। परिवार के लोगों के साथ एक पहाड़ी सूनसान स्थान पर राणा की कुछ बातें हो रही थीं। घास के बीजों को पीस कर प्रताप की रानी और उसकी पुत्र-वधू ने रोटियाँ बनायीं। वे काफी न थीं। इसलिए बनी हुई रोटियाँ आधी बच्चों को खाने के लिए दे दी गयीं और आधी इसलिए उठाकर रख दी गयीं कि वे भूखे होने पर बच्चे को फिर दी जावेंगी। इसी समय राणा को अपनी लड़की की चिल्लाहट सुनायी पड़ी। राणा ने दौड़कर देखा तो मालूम हुआ कि लड़की को खाने के लिए उसके हिस्से में जो रोटी मिली थी, उसका आधा भाग लड़की के हाथ से वनबिलाव लेकर भाग गया। जीवन की इस दुरवस्था को देखकर राणा का हृदय एक वार काँप उठा।2 अधीर होकर उसने अनेक प्रकार की बातें सोच डाली। ऐसे संकटों के समय वह कह उठा-"उस राज्याधिकार को धिक्कार है, जिसके लिए जीवन में इस प्रकार के दृश्य देखने पड़े।"अपनी कठिनाइयों को दूर करने के लिए एक पत्र के द्वारा राणा प्रताप ने अकवर से मांग की। प्रतापसिंह का भेजा हुआ यह पत्र बादशाह अकवर को मिला। उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। अकबर की समझ में आया कि प्रताप का स्वाभिमान अव खत्म हो गया । 1. बैरामखां के मिर्जाखाँ को खानखाना का खिताब मिला था। इस खिताब से मनुष्य की ख्याति और प्रसिद्धि बढ़ती है। 2... यह घटना भाटों की ही रचना लगती है क्योंकि अन्य स्रोतों से इसकी पुष्टि नहीं होती । राणा प्रताप के कोई लड़की नहीं थी। 185
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