- इन दिनों में राणा प्रताप के सामने भयानक कठिनाइयाँ पैदा हो गयी थीं। शत्रु की अनेक छोटी-छोटी सेनायें पहाड़ पर घूम रही थीं और वे प्रताप को कैद करने की पूरी कोशिश में थी। इस बीच में कई पहाड़ी स्थानों पर अचानक प्रताप ने बादशाह के सैनिकों पर आक्रमण किया और उनका संहार किया। अव बरसात के दिन आ गए। नदी और नाले पानी से खूब भर गये थे। सभी रास्ते बरसात के कारण चलने के योग्य न रहे । इस दशा में शत्रु सेना के आक्रमण वन्द हो गये। इसलिए राणा को कुछ विश्राम मिला । जीवन की इन परिस्थितियों में राणा ने कई वर्ष व्यतीत किये। पर्वत के जितने भी पहाड़ी स्थान राणा और उसके परिवार को आश्रय दे सकते थे, वे सभी वादशाह के अधिकार में चले गये। इस अवस्था में प्रताप की कठिनाइयाँ अत्यन्त भयानक हो गयीं। उसकी इन विपदाओं का सब से बड़ा कारण उसका परिवार था। राणा को अपने जीवन की चिन्ता न थी। परन्तु परिवार के साथ में होने के कारण राणा का चित्त प्रत्येक समय चिन्तित और दुःखी रहा करता। उसके परिवार में छोटे-छोटे बच्चे थे। इस समय उनके सामने भयानक कष्ट था। अपने परिवार के कारण ही राणा कई वार शत्रुओं के हाथों में पड़ते-पड़ते बचा था। एक बार तो अपने परिवार के साथ शत्रुओं के पंजे में पहुँच गया था, परन्तु गहिलोत वंश के विश्वासी सामन्तों ने उस समय उसकी बड़ी सहायता की थी। शत्रुओं ने राजपूतों को घेर लिया था और राणा के परिवार के वचने की कोई आशा न रही । उस समय उन भीलों ने राणा के परिवार के बच्चों को टोकरों में छिपा कर जावरा की खान में जाकर छिपा दिया था। - ये भील उन दिनों में राणा प्रताप के बड़े सहायक सिद्ध हुये । वे साहसी थे, लड़ने में शूरवीर थे और अत्यन्त विश्वासी थे। वे स्वयं भूखे रहते थे, लेकिन खाने की जो सामग्री वे इधर-उधर से एकत्रित करते थे, उसे वे राणा और उसके परिवार को खिला देते थे। जावरा और चावण्ड के निर्जन जंगलों के वृक्षों पर लोहे के बड़े-बड़े कीले अब तक गड़े हुए मिलते हैं। उन वृक्षों की इन्हीं कीलों में वेतों के बड़े-बड़े टोकरे टाँग कर और उनमें राणा के बच्चों को छिपाकर वे भील राणा की सहायता किया करते थे। उनके ऐसा करने से प्रताप के परिवार के छोटे बच्चों की रक्षा भीषण जंगली जानवरों से हो सकी थी। उन छोटे बच्चों के खाने-पीने का कोई साधन न था । इसलिए पहाड़ी जंगली स्थानों में जो फल मिलते थे, उन्हीं को खाकर वे वच्चे किसी प्रकार अपना पेट भर लेते थे, कभी-कभी इस प्रकार के भोजन से भी उन बच्चों को निराश होना पड़ता था। उनकी देखरेख जंगली जानवरों से भरे हुए उन पहाड़ी स्थानों पर भीलों के द्वारा होती थी। वादशाह की सेना प्रतापसिंह की खोज में दौड़ते-दौड़ते थक गयी । परन्तु वह राणा को कैद न कर सकी। इन सब बातों को वादशाह अकबर ने खूब सुना था। प्रताप के इन दिनों का रहस्य जानने के लिए उसने एक वार छिपे तौर पर अपना एक विश्वासी सिपाही भेजा। वह किसी प्रकार छिपे तौर पर वहाँ पहुँचा, जहाँ प्रताप और उसके सभी सरदार एक घने जंगल के बीच वृक्ष के नीचे घास पर बैठे हुए भोजन कर रहे थे, खाने की चीजों में नंगली फल, पत्तियाँ और जड़े थीं। उस समय उन सबको एक साथ बैठकर खाते हुए वादशाह के सिपाही ने देखा कि राणा और उसके सरदार इस प्रकार की सामग्री उसी उत्साह, 184
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