मुलतानी और दूसरा खुरासानी था। प्रतापसिंह के आगे एक नदी पड़ गयी। प्रताप अपने घोड़े पर बैठा हुआ उसे पार करके निकल गया। अभी तक दोनों मुगल सैनिक नदी के किनारे पर थे और वे उसको पार करने की कोशिश कर रहे थे। राणा प्रताप के साथ उसका शक्तिशाली चेतक घोड़ा भी जख्मी हुआ। इसलिए उसकी गति धीरे-धीरे कम हो रही थी। मुगल सैनिक नदी पार करके प्रताप का पीछा कर रहे थे, उसी समय पीछे की तरफ राजस्थानी बोली में उसे सुनायी पड़ा- “हो नीला घोड़ा रा असवार!" प्रताप ने चौंक कर पीछे की तरफ देखा। उसी समय उसे मालूम हुआ कि पीछा करते हुए मेरा भाई शक्तिसिंह आ रहा है। शक्तिसिंह प्रताप से लड़कर मेवाड़ राज्य से चला गया था और बादशाह अकबर से मिल गया था। हल्दीघाटी के युद्ध में बादशाह की तरफ से वह भी सलीम के साथ युद्ध में आया था। जिस समय मुगल सेना ने राणा प्रताप को घेर लिया और उसके बाद झाला के सामन्त मन्ना जी के आ जाने पर प्रताप युद्ध क्षेत्र से निकल कर चला आया था, शक्तिसिंह ने मुगल सेना के बीच से यह सब अपने नेत्रों से देखा। शत्रुओं के द्वारा राजपूतों की पराजय वह देख न सका । वह एक राजपूत था और उसके प्राणों में राजपूती स्वाभिमान था । उसने राणा प्रताप को युद्ध क्षेत्र से निकलते हुए देखा और यह भी देखा कि दो मुगल सैनिक राणा का पीछा कर रहे हैं। अब वह अपने आपको रोक न सका और युद्धक्षेत्र से निकल कर अपने घोड़े पर वह तेजी के साथ पीछा करने वाले दोनों मुगल सैनिकों की तरफ बढ़ा । शत्रु से मिले हुए विरोधी भाई शक्तिसिंह को अपने पीछे आता हुआ देखकर राणा को शंका उत्पन्न हुई। वह समझ गया कि शक्तिसिंह अपने बैर का बदला लेने के लिए मेरे पीछे आ रहा है। राणा प्रताप के हृदय का स्वाभिमान जागृत हुआ। खड़े होकर साहस और क्रोध के साथ वह शक्तिसिंह के आने की प्रतीक्षा करने लगा। शक्तिसिंह के कुछ निकट पहुँचने पर राणा ने उसके मुखमण्डल पर उदासी और निराशा के भाव देखे । उसके मन का भाव बदलने लगा। इसी समय शक्तिसिंह निकट पहुँच कर प्रताप के चरणों पर गिर पड़ा और फूट-फूट कर रोने लगा। प्रतापसिंह ने शक्तिसिंह को उठाकर छाती से लगाया। कुछ देर तक दोनों के नेत्रों से आँसू बहते रहे । इसी समय प्रताप ने अपने घोड़े की तरफ देखा। वह गिर गया था और उसके प्राण इस संसार से विदा हो चुके थे। प्रताप के हृदय में अपने घोड़े के लिए बहुत स्नेह था। उसके बल पर ही राणा ने मुगलों के साथ भयंकर युद्ध किया था और संग्राम के कई अवसरों पर चेतक ने राणा के प्राण बचाये थे। घोड़े के मर जाने पर राणा को अत्यन्त दुःख हुआ। शक्तिसिंह ने राणा को अपना घोड़ा दे दिया। प्रतापसिंह के रवाना होने के पहले शक्तिसिंह ने राणा से कहा 'अवसर मिलने पर मैं चला आऊंगा और आपसे मिलूँगा।"शक्तिसिंह के मुँह से प्रताप ने इन शब्दों को सुना। इसके बाद वह चला गया । प्रतापसिंह का पीछा करते हुए जो मुगल सैनिक आ रहे थे, शक्तिसिंह ने उन दोनों को मार डाला था और प्रतापसिंह से मिलकर वह खुरासानी सैनिक के घोड़े पर बैठकर वहाँ से लौटा। युद्ध बन्द हो जाने के बाद सलीम प्रसन्नता के साथ अपनी विजयी सेना को लेकर राजधानी लौट गया। शक्तिसिंह के पहुंचने पर सलीम को उस पर उस समय संदेह पैदा हुआ, जब शक्तिसिंह ने कहा कि प्रतापसिंह ने न केवल पीछा करने वाले दोनों मुगल सैनिकों को मार 182
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