। अत्यन्त अपमान के साथ मानसिंह ने इन अंतिम शब्दों को सुना और अपने घोड़े पर बैठकर वह तेजी के साथ चला गया। जो स्थान मानसिंह के भोजन के लिए तैयार किया गया था, उसके चले जाने के बाद उसे खोद डाला गया और उस पर गंगाजल छिड़क दिया गया । जो पात्र मानसिंह को खाने और पीने के लिए दिये गये थे, उनको अपवित्र समझ कर नष्ट कर दिया गया। जिन लोगों ने मानसिंह को अपनी आँखों से देखा था, उन्होंने उसके जाने के वाद स्नान किया और अपने वस्त्रों को धोकर दूसरे कपड़े पहने । मानसिंह ने राजधानी में पहुँच कर अकबर वादशाह से प्रतापसिंह के सम्बन्ध की सभी बातें कहीं। अकवर ने मानसिंह के अपमान का बदला लेने के लिए राणा प्रताप के साथ युद्ध करने का निश्चय किया। सलीम (जहाँगीर) अकबर का उत्तराधिकारी था। अकवर के निर्णय के अनुसार प्रताप से युद्ध करने के लिए सलीम ने अपनी विशाल सेना तैयार की और राजा मानसिंह तथा मोहब्बत खाँ को साथ में लेकर युद्ध के लिए रवाना हुआ। राणा प्रताप को मानसिंह के जाते ही यह मालूम हो गया कि अब मुगल फौज के आक्रमण में देर नहीं हो सकती। इसलिए अपने सरदारों को बुलाकर कमलमीर में उसने परामर्श किया और सम्राट अकबर की सेना के साथ युद्ध करने के लिए उसने बाईस हजार राजपूतों को तैयार किया। इन दिनों में पहाड़ पर रहने वाले वहुत-से लड़ाकू भील प्रताप के साथी बन गये थे। इसलिए वे सव के सब इस समय युद्ध के लिए तैयार हो गये। अपनी इस सेना को लेकर राणा प्रताप अरावली पर्वत के सव से बड़े मार्ग पर पहुँच गया। जिस स्थान पर जाकर अपनी सेना के साथ प्रताप मुगल फौज के आने का रास्ता देखने लगा, वह नवानगर और उदयपुर के पश्चिम दिशा में था। यह पहाड़ी स्थान घने जंगलों से घिरा हुआ था। उस विस्तृत स्थान पर कुछ छोटे-छोटे नाले व नदियाँ वह रही थीं। उदयपुर से उस स्थान के लिए जाने वाला मार्ग बहुत तंग, कठोर और भयानक था। मार्ग की चौड़ाई बहुत कम थी और उस स्थान से बहुत-से आदमियों का एक साथ निकलना बहुत मुश्किल था। वहाँ पर खड़े होकर देखने से पहाड़ी वृक्षों और जंगलों के सिवा कुछ दिखायी न देता था। इसी स्थान का नाम हल्दीघाटी है। उस हल्दीघाटी के ऊंचे शिखरों पर खड़े होकर राणा प्रताप के समस्त राजपूत और भील युद्ध के लिए तैयार हो गये। ऊंचे शिखरों पर एक ओर भील थे और दूसरी और राजपूत । उन सव के हाथों में धनुष-वाण थे। हल्दीघाटी के उस भयंकर पहाड़ी स्थान पर खड़े होकर अपने शूरवीर सरदारों के साथ प्रताप शत्रुओं के आने का रास्ता देखने लगा । सम्वत् 1632 सन् 1576 ईसवी के जुलाई महीने में दोनों ओर की सेनाओं का सामना हुआ और भीषण रूप से युद्ध आरम्भ हो गया। दोनों तरफ के सैनिकों और सरदारों ने जिस प्रकार की मार शुरू की,उससे दोनों ही तरफ के शूरवीर योद्धा घायल होकर जमीन पर गिरने लगे। बहुत समय तक भीषण मारकाट के बाद भी किसी प्रकार की निर्वलता किसी तरफ न आयी। अपने राजपूतों और भीलों के साथ मार-काट करता हुआ प्रताप आगे बढ़ने लगा। लेकिन मुगलों की विशाल सेना को पीछे हटाना और आगे बढ़ना अत्यन्त कठिन हो रहा था । वाणों की वर्षा समाप्त हो चुकी थी और दोनों ओर के सैनिक एक दूसरे के समीप पहुँचकर तलवारों और भालों की भयानक मार कर रहे थे। हल्दीघाटी के पहाड़ी मैदान में मारकाट करते हुए सैनिक कट-कट कर पृथ्वी पर गिर रहे थे। मुगलों का बढ़ता हुआ जोर देखकर प्रतापसिंह अपने घोड़े पर प्रचंड गति के साथ 180
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