की परवाह न की और उसने अपने सरदारों के साथ बैठकर चित्तौड़ को स्वाधीन बनाने की प्रतिज्ञा की। अपने इस निर्णय के साथ उसने मेवाड़ राज्य में घोषणा की- 'जिनको हमारी अधीनता में रहना स्वीकार हो, वे सभी अपने परिवारों के साथ अपने घर द्वार छोड़कर इस पर्वत पर आ जाएं । नो लोग ऐसा न करेंगे, वे शत्रु समझे जायेंगे।" इस घोषणा के होते ही मेवाड़-राज्य की प्रजा अपने-अपने स्थानों को छोड़कर परिवारों के साथ मेवाड़ के पर्वत की तरफ रवाना हुई और थोड़े ही दिनों में सम्पूर्ण मेवाड़ राज्य सूनसान दिखायी देने लगा। बनास और बड़स नदियों के द्वारा सींची जाने वाली राज्य की उपजाऊ भूमि बरबाद हो गयी और वहाँ की सम्पूर्ण खेती सूख गयी। राणा प्रताप की उस घोषणा के कारण सम्पूर्ण मेवाडु राज्य उजड़ गया और उसकी. इस अवस्था के कारण मुगल साम्राज्य को इस राज्य से होने वाली सम्पूर्ण आमदनी मारी गयी। बादशाह अकबर को जब मेवाड़ की ये बातें मालूम हुई तो उसे बहुत क्रोध आया और वह प्रताप को इसका दंड देने की व्यवस्था करने लगा। उन दिनों में यूरोप का व्यवसाय मुगल-राज्य के साथ चल रहा था और व्यवसायी सम्पत्ति और सामग्री लेकर मेवाड़ राज्य के भीतर से होकर सूरत अथवा दूसरे बन्दरगाहों पर जाया करते थे। राणा प्रताप के सरदारों ने आक्रमण करके उन व्यवसायियों को लूटना आरम्भ कर दिया। इस लूट की सम्पत्ति और सामग्री से राणा के धन के अभाव की पूर्ति होने लगी। इस प्रकार के समाचार भी मुगल सम्राट अकबर को मिलने लगे। राणा प्रताप का दमन करना अब उसके लिए अनिवार्य हो गया। लूट की सम्पत्ति और सामग्री से प्रताप ने अपनी आर्थिक अवस्था को कुछ सम्हाल लिया और उस धन से अपनी सेना में सैनिकों की संख्या बढ़ा ली। जो राजपूत उसके साथ आये, उनको उसने उत्तेजित करना आरम्भ किया और वे मुगलों के साथ युद्ध करने के लिए तैयार हो गये। इन्हीं दिनों में अकबर अपनी एक मुगल सेना लेकर अजमेर पहुँच गया। उसकी प्रचंड शक्ति को देखकर इन्हीं दिनों में मारवाड़ का राजा मालदेव और आमेर का राजा भगवानदास मुगलों की शरण में आ गये। राजा भगवानदास ने भेंट में बहुमूल्य सम्पत्ति और सामग्री देने के लिए अपने बेटे उदयसिंह को अकबर के पास भेजा। वह अजमेर के रास्ते में नागौर नामक स्थान पर बादशाह से मिला और पिता के द्वारा भेजी हुई सम्पूर्ण सम्पत्ति उसने अकबर को भेंट में दी। उससे प्रसन्न होकर अकबर ने मारवाड़ के राजा को राजा की उपाधि दी। इसके पहले वहाँ के राजा राव की उपाधि रखते थे। राजा भगवान दास ने जोधाबाई नामक अपनी बहिन का विवाह अकबर के साथ कर दिया। जिन हिन्दू राजाओं ने अपनी लड़कियाँ और बहनें मुसलमान बादशाहों को दी थीं, उनमें भगवान दास सब से पहला था। बादशाह अकबर ने उदयसिंह को जोधाबाई के विवाह के बदले में चार बड़े-बड़े इलाके दिये। उन चारों इलाकों की वार्षिक आय लगभग सोलह लाख रुपये की थी। इन चारों इलाकों में गोडवाड़ अथवा गवाड़ की आय नौ लाख, उज्जैन की ढ़ाई लाख, तेबलपुर की एक लाख बयासी हजार पाँच सौ और बदनोर की ढाई लाख रुपये थी। इन इलाकों के मिल जाने से मारवाड़ राज्य की आमदनी पहले से दुगुनी हो गयी। आमेर और मारवाड़ के इसी जोधाबाई से सलीम (जहाँगीर) का जन्म हुआ। जोधाबाई का मकबरा आगरा के समीप सिकन्दरा में बना हुआ है। कुछ लोग इस बात में संदेह करते हैं और उनका कहना है कि राजपूत राजाओं ने मुसलमानों को अपनी लड़कियों के स्थान पर दासियाँ दी थीं। 1. 178
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१७८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।