वह शान्ति से रह न सका । शत्रु उसका बगावर पाया कर रहे थे। इसलिय अपने माय के सब लोगों को लेकर वह सिंघ के राज्य में पहुँचा। इन दिनों में उसके और उसके साथ द. लोगों के खाने-पीने की कोई व्यवस्था न थी। उसके साथ उसकी बेगमें भी थीं। वे कई-कई दिनों तक भूखी रह कर वादशाह के साथ सफर करती थीं । कोई राजा हुमा को शरण देने के लिए तैयार न था। हुमायूँ जहाँ पहुँचता था, वहाँ का राजा एक-दो दिन के बाद शेरशाह के डर से हुमायूँ को अपने यहाँ से निकाल देता था। इन दिनों में अपनी इस दुर्दशा के कारण हुमाये बहुत घबरा गया था। संकट के उन दिनों में अपने प्राणों की रक्षा के लिए उसके पास कोई उपाय न था। उसके साथ इन दिनों में जा सनिक थे इन विपदाओं के कारण उन सैनिकों ने भी उसका साथ छोड़ दिया था और भाग कर इधर-उधर चले गये थे। उसके साथ के कितने ही लोग भूख से तड़प-तड़पकर मर गये थे और कुछ लोगों ने हिन्द गजायों के यहाँ जाकर नौकरी कर ली थी। इन दिनों हुमायूं के जीवन पर भयंकर संकट था। वह किसी समय भारतवर्ष का बादशाह था और कुछ वर्षों के बाद उसके सामने इतने भीषण संकट आये कि उसका जिन्दा रहना असम्भव मालूम होने लगा। बहुत निराश अवस्था में हुमायूँ ने आश्रय पाने के लिये जैसलमेर और जोधपुर के राजा से प्रार्थना की । परन्तु दोनों ने इन्कार कर दिया। मुस्लिम तवारीखों में लिखा गया है कि आश्रय देने के बजाय जोधपुर के राजा मालदेव ने हुमायूँ को कैद करने की कोशिश की थी। तारीख फरिश्ता का यह टल्लेख कहाँ तक सही है, इस बार में कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि हिन्दू ग्रंथों में इस बात का कोई उल्लेख नहीं पाया जाता। इन दिनों में हुमायूँ की विपदायें चरम सीमा पर पहुँच गयी थी। उसकी बेगमों को इन दिनों में नो मुसीबतें मिल रही थीं, टनको देखकर हुमायूँ कभी-कभी घबरा उठता था। बेगमों के संकटों को देखकर कभी-कभी उसका धैर्य छूट जाता था। जब वह दिल्ली के राजमहलों में रहने वाली वेगमों को जलती हुई रेतीली भूमि में भयानक कष्टों के साथ चलता हुआ देखता था, तो उसका धैर्य साथ न देता था। फिर भी बड़ी बुद्धिमानी और धीरता से उसने काम लिया। इन भयंकर संकटों के समय वह अपनी बेगमों को प्रायः समझाने की चेष्टा करता था। तवारीख फरिश्ता में हुमायें के संकटों का रोमांचकारी वर्णन किया गया है और उसमें लिखा गया है कि हुमायूँ की इन विपदाओं को देख कर अमरकोट के राजा सोढ़ा ने उसके साथ सहानुभूति प्रकट की और उसने हुमायूँ को अपने यहाँ आश्रय दिया। भारतवर्ष की विशाल मनभृमि के बीच में अमरकोट बसा हुआ है। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि इसी अमरकोट में शक लोगों ने भारत में आकर अपने रहने का स्थान बनाया था। इसी अमरकोट में सन् 1542 ईसवी में अकबर का जन्म हुआ ! उसके पेटा होने के कुछ ही दिनों बाद अमरकोट के राजा सोढा का आश्रय छोड़कर हुमायूँ ईगन चला गया और भारत से निकल कर बारह वर्ष तक वह विभिन्न देशों में मारा-मारा फिरता रहा। कभी वह ईरान में होता, कभी अपने पूर्वजों के राज्य में पहुँच जाता। कभी कन्धार के पहाड़ी इलाकों में मुसीबत के दिनों को काटता हुआ वह घुमा करता और कभी कश्मीर में पहुँच नाता। इन दिनों में भारत में पठानों का राज्य चल रहा था। उनके उत्तराधिकारियों में भी बहुत से आपसी झगड़े पैदा हो गये । यही कारण था कि थोड़े दिनों के भीतर दिल्ली के सिंहासन पर छह पटान बादशाह बैठे और वे अधिक समय तक राज्य सत्ता का भोग न कर सके। जिस समय दिल्ली के सिंहासन पर सिकन्दर का अधिकार था और वह अपने भाइयों 170
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