उनको सही-सही समझने के लिए मेवाड़-राज्य के कितने ही लोगों का कमलमीर के दुर्ग में आना आरम्भ हुआ। सलुम्बर के राजा सहीदास, कैलवा के राजा जग्गी और गोरखनाथ साँगां इत्यादि चूण्डावत कुल के अनेक सामन्त, कोठोरिया और वैदला के चौहान, विजौली के परमार राजपूत, सांचोर के राजा पृथ्वीराज और जैतावत लूनकरन आदि सभी उदयसिंह को देखने के लिए कमलमीर में आये। उस मौके पर पन्ना धाय और राजकुमार को झाबे में लाने वाला वारी भी वहाँ पर बुलाया गया। सवं की मौजूदगी में कमलमीर में आये हुए राजाओं और सामन्तों का एक दरवार हुआ। आशाशाह ने सबके सामने बताया कि राजकुमार उदयसिंह आश्रय पाने के लिए पन्ना धाय के द्वारा किस प्रकार उसके पास लाया गया। पन्ना धाय ने सबके सामने आशाशाह की वातों का समर्थन किया। संग्रामसिंह के पुत्र उदयसिंह को जीवित पाकर सभी लोगों को अपार हर्ष हुआ। क्योंकि अब तक सबको यह मालूम था कि वनवीर ने राणा विक्रमाजीत और राजकुमार उदयसिंह को मार डाला है। इसके बाद यह समाचार बड़ी तेजी के साथ मेवाड़ राज्य में फैल गया। वनवीर को भी मालूम हुआ कि राजकुमार उदयसिंह अभी जीवित है और वह मरा नहीं। उसे यह सव सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। उदयसिंह के जीवित होने का रहस्य उसकी समझ में न आया। उसने अपनी समझ में विक्रमाजीत और उदयसिंह का संहार करके मेवाड़ का राज्य सदा के लिए सुरक्षित बना लिया था। बनवीर का जन्म शीतल सेनी नामक दासी के गर्भ से हुआ था। इसलिए वह मेवाड़ राज्य का अधिकारी न था। राणा विक्रमाजीत चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठकर अयोग्य साबित हो चुका था और राणा संग्रामसिंह के पुत्र उदयसिंह की अवस्था उस समय बहुत कम थी। मेवाड़ राज्य के सभी सरदार राणा विक्रमाजीत से बहुत असंतुष्ट थे और किसी प्रकार वे उसको चित्तौड़ के सिंहासन पर नहीं देखना चाहते थे। इसलिए इस विवशता में, यह सोच कर कि जब तक राजकुमार उदयसिंह समर्थ नहीं हो जाता, विक्रमाजीत के स्थान पर बनवीर को राज्याधिकारी बनाने के लिए सरदार लोग उसे चित्तौड़ ले आये थे। इस दशा में वनवीरं चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठा था। सिंहासन का अधिकारी होने के बाद वनवीर ने जो कुछ किया था,उससे चित्तौड़ के मन्त्री और सरदार वहुत दुःखी थे। उन्हें क्या मालूम था कि जिस बनवीर को लाकर वे कुछ दिनों तक मेवाड़ के राज्य का कार्य सौंपेगें,वही बनवीर सीसोदिया वंश का सर्वनाश करेगा। जिस समय चित्तौड़ के सरदारों को मालूम हुआ कि राणा संग्रामसिंह का बेटा उदयसिंह अभी जीवित है और वह कमलमीर दुर्ग में मौजूद है तो उन लोगों को बहुत प्रसन्नता हुई और उदयसिंह को कमलमीर से लाने के लिए सरदार लोग चित्तौड़ से रवाना हुए। जिस समय चित्तौड़ के सरदार कमलमीर पहुँचने के लिए अरावली पर्वत के पहाड़ी रास्ते से गुजर रहे थे, सामने पाँच सौ घोड़े और सामान से लदे हुए दस हजार बैल दिखाई दिये। पूछने पर मालूम हुआ कि एक हजार गहरवाल राजपूतों के संरक्षण में यह सब सामग्री कच्छ प्रदेश की तरफ से वनवीर की लड़की को देने के लिए जा रही है। वनवीर का नाम सुनते ही चित्तौड़ के सरदारों के हृदय में आग लग गई। वे सबके सब एक साथ गहरवाल राजपूतों पर टूट पड़े और उनके संरक्षण में जाने वाली सम्पति पर उन्होंने अपना अधिकार कर लिया। लूटी हुई सामग्री को लाकर सरदारों ने जालौर के सोनगरे सरदार की बेटी के साथ उदयसिंह का विवाह किया और विवाह का कार्य जालौर के अन्तर्गत वाली नामक स्थान पर सम्पन्न हुआ। इस विवाह में मेवाड़ राज्य के राजाओं - 168
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