युद्ध का अन्त हो गया। संग्रामसिंह युद्ध से हट कर मेवाड़ के पर्वत पर चला गया। यदि वह अभी जीवित रहता तो निश्चित रूप से वह अपनी प्रतिज्ञा को पूरी कर; लेता। लेकिन कदाचित् भगवान को यह स्वीकार न था। जिस समय वह पराजित हुआं, उसी वर्ष बसवा नामक स्थान पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसकी इस अचानक मृत्यु के सम्बन्ध में सन्देह किया जाता है कि उसके मंत्रियों ने विष देकर उसकी हत्या की । परन्तु ऐसा सोचता और सन्देह करना स्वाभाविक और संगत नहीं मालूम होता। बहु विवाह की प्रथा कई बातों में भयानक होती है। प्राचीन काल में राजस्थान के राजाओं में बहु विवाह की प्रथा थी। यह प्रथा संसार के दूसरे देशों में भी रही है और उसके कारण सदा भीषण दुर्घटनायें हुई हैं। पुत्रवती होने के कारण सभी रानियों की यह अभिलाषा होती है कि हमारे लड़के को राज्य का अधिकार मिलना चाहिए। प्रायः राजाओं के परिवारों में इससे भयानक कलह पैदा होती है और उसके दुष्परिणाम से उन परिवारों का सर्वनाश होता है। राणा संग्रामसिंह के भी अनेक रानियाँ थीं। राणा के मरने के बाद सभी रानियाँ अपने लड़कों को राज्य सिंहासन पर बिठाने की कोशिश करने लगीं। एक रानी ने तो अपने लड़के को राज्याधिकारी बनाने के लिए यहाँ तक किया कि उसने बादशाह बाबर के साथ मेल कर लिया। उसका विश्वास था कि इस मेल के फलस्वरूप मेरे लड़के को चित्तौड़ के राज्य सिंहासन पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त होगा। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने बाबर को प्रसन्न करने की चेष्टा की और इसके लिए उसने रणथम्भौर का प्रसिद्ध दुर्ग और विजय में पाये हुए मालवा राज्य के बादशाह का ताज भी बाबर को भेंट में देना तय किया। राणा संग्रामसिंह का शरीर लम्बा था, वह स्वस्थ और शक्तिशाली था। उसका रंग गोरा था और नेत्र बड़े-बड़े थे। उसको देखते ही उसके शक्तिशाली होने का अनुमान होता था। युद्ध करते-करते उसके शरीर के कई अंग चोटग्रस्त हो गये थे। वह अत्यन्त साहसी और धैर्यवान था। पराजित शत्रु पर वह सदा रहम करता था और उसके साथ अपनी उदारता का परिचय देता था। रणथम्भौर के दुर्ग पर होने वाले युद्ध में उसने अपनी अद्भुत वीरता का परिचय दिया था। उसके इन अच्छे गुणों की प्रशंसा बाबर ने स्वयं अपने संस्मरण में की है। वह संग्रामसिंह की बहादुरी और उदारता की प्रशंसा किया करता था। संग्रामसिंह के मरने पर सम्पूर्ण राजस्थान में शोक मनाया गया। मेवाड़ पर्वत पर जहाँ उसकी मृत्यु हुई थी एक प्रसिद्ध मन्दिर बनवाया गया। राणा के सात लड़के थे। उनमें सबसे बड़ा और उससे छोटा-दोनों की छोटी आयु में ही मृत्यु हो गयी थी। इस दशा में उसका तीसरा लड़का उसकी मृत्यु के बाद राज्य का अधिकारी हुआ । सम्वत् 1586 सन् 1530 ईसवी में राणा रत्नसिंह चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठा । धीरता और वीरता के अनेक गुणों में वह अपने पिता राणा संग्रामसिंह की तरह का था। सिंहासन पर बैठते ही उसने प्रतिज्ञा की थी कि मैं मेवाड़ राज्य के सम्मान और उत्थान के लिए जब तक जीवित रहूँगा, कोशिश करूँगा । उसके इन शब्दों को सुनकर मेवाड़ राज्य के मंत्रियों और सरदारों को बड़ी प्रसन्नता हुई। सिंहासन पर बैठने के पहले रत्लसिंह के जो मनोभाव थे,वे बाद में कायम न रहे और वह धीरे-धीरे बदलने लगा। सिंहासन पर बैठने के पहले जब उसके दोनों बड़े भाइयों की मृत्यु नहीं हुई थी,उसने चुपके से सब की नजरों से छिपकर आमेर के राजा पृथ्वीराज की लड़की से विवाह कर लिया। उसके और उस लड़की के सिवा तीसरा कोई भी इस विवाह के रहस्य को नहीं जानता था । पृथ्वीराज के परिवार में किसी को इस विवाह का पता न था। 161
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१६१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।