पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१६

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का नाम 'हेस्टिंग्स ब्रिज' रखा गया। इसी प्रकार उजड़े हुये भीलवाड़ा को फिर बसाये जाने पर लोगों ने उसका नाम टॉड गंज रखना चाहा तो टॉड साहव ने इन्कार कर दिया और कहा कि उसका उद्धार महाराणा भीमसिंह की उदारता से हुआ है। इसलिये उसका श्रेय राणा को ही मिलना चाहिये। टॉड साहब राजपूतों की वीरता की प्रशंसा करते थे। लेकिन उनके अधिक विवाहों, उनकी अफीम खाने की आदतों और आलस्य में पड़े रहने के उनके स्वभावों के सम्बन्ध में वे उनको उपदेश दिया करते थे। टॉड साहब वीर चरित्रवान थे और इसीलिये वे पराक्रम तथा चरित्र बल के समर्थक थे टॉड साहब का जीवन चरित्र बहुत बड़ा है और वह पढ़ने ही नहीं बल्कि समझने के योग्य है । उन्होंने इस इतिहास के लिखने के साथ-साथ अपनी जिस मनुष्यता का परिचय दिया है, वह संसार में बहुत कम मिलती है। टॉड साहब भारतवर्ष में राजस्थान का इतिहास लिखने के लिये नहीं आये थे। लेकिन उन्होंने यहाँ आकर जो कुछ देखा, उससे उन्हें मालूम हुआ कि योरोप के लोगों को भारतवर्ष के सम्बन्ध में और विशेषकर इस देश के राजपूतों के सम्बन्ध में बहुत बड़ी गलतफहमी है। उस गलतफहमी के कारण योरोप के लोगों ने इस देश की उपेक्षा कर रखी हैं । उसको दूर करने के लिये टॉड साहब ने इतिहास का यह महान ग्रन्थ लिखा और लिखा इतिहास की बहुत बड़ी योग्यता के साथ नहीं, बल्कि उस मनुष्यता के साथ जो आराधना के योग्य है। उनकी यह योग्यता इस ऐतिहासिक ग्रन्थ के प्रत्येक पन्ने में हैं। टॉड साहव का जीवन चरित्र तो पाठक इतिहास के इस ग्रन्थ में पढ़ेंगे ही। यहाँ पर थोड़ी-सी पंक्तियों के साथ हम टॉड साहव का परिचय देने के लिये इतना ही लिखना चाहते हैं कि वे गरीबों से प्रेम करते थे। पीड़ितों के साथ बैठकर अपनी सहानुभूति प्रकट करते थे। राजपूतों की कमजोरियों पर अफसोस करते थे और उनको समझा-बुझाकर अच्छी जिन्दगी बनाने के लिए आदेश दिया करते थे। राजपूत अफीम का सेवन करते थे, उससे उनकी शक्तियाँ नष्ट हो रही थीं। इसलिए अफीम का सेवन छोड़ देने के लिए वे राजपूतों से प्रतिज्ञायें करवाते थे । टॉड साहव की मनुष्यता और कर्तव्य परायणता की प्रशंसा नहीं की जा सकती। वे कहा करते थे- "मैं इस देश के महलों से नहीं-मिट्टी से प्रेम करता हूँ, वृक्षों और उनकी शाखाओं से स्नेह रखता हूँ एवम् इस देश के के मैं अपना आत्मिक सम्बन्ध रखता हूँ।" टॉड साहब की इन वातों ने उनको इस देश के रहने वालों साथ सदा के लिये स्नेह की मजबूत जंजीर में बांध दिया था, संसार में इतिहासकार वहुत मिलेंगे लेकिन किसी विद्वान इतिहासकार में यह मनुष्यता न मिलेगी। -गौरीशंकर हीराचन्द ओझा स्त्री-पुरुषों साथ