सहायता के लिये वह दिल्ली के वादशाह के पास गया था, जहाँ पर विजली गिरने से उसकी मृत्यु हो गई। सहसमल और सूरजमल नाम के ऊदा के दो वेटे थे। दिल्ली के बादशाह ने अपने वादे के अनुसार ज्दा के दोनों लड़कों को साथ में लेकर मेवाड़ पर आक्रमण किया। इस समाचार को पाकर चित्तौड़ में संग्राम की तैयारी होने लगी। मेवाड़ राज्य के सरदार और सामन्त अपनी-अपनी सेनायें लेकर चित्तौड़ में आ गये। इसी समय आवू और गिरनार के नरेश भी चित्तौड़ में अपनी सेनाओं के साथ पहुंचे। उन सबके साथ ग्यारह हजार पैदल और अट्ठावन हजार सवारों की सेना लेकर राणा रायमल दिल्ली के बादशाह के साथ युद्ध करने के लिए चित्तौड़ से रवाना हुआ। घासा नामक स्थान पर दोनों ओर की सेनाओं का मुकाबला हुआ। तुरन्त युद्ध आरम्भ हो गया और थोड़ी ही देर में वह संग्राम भयानक हो उठा । वहुत समय तक मार-काट होने के वाद वादशाह की फौज पराजित हुई। इसके बाद ऊदा के दोनों लड़कों ने राणा रायमल की अधीनता स्वीकार कर ली और राणा ने उनके अपराधों को क्षमा कर दिया। वादशाह की बची हुई फौज वहाँ से लौटकर दिल्ली की तरफ चली गई। राणा रायमल के पाँच संतानें हुई थीं, दो लड़कियाँ और तीन लड़के। उसकी एक लड़की गिरनार के यदुवंशी राजा शूरजी को व्याही गई और दूसरी का विवाह सिरोही के देवड़ा राज्य के जयमल के साथ हुआ था। दूसरी लड़की के दहेज में राणा ने अपना आवू पर्वत का इलाका दे दिया। अपने जीवन के अन्त तक राणा ने मेवाड़ की ख्याति को बढ़ाने की चेष्टा की और अपने पूर्वजों के गौरव को कायम रखा । मालवा के वादशाह गयासुद्दीन ! के साथ राणा की शत्रुता चल रही थी। इसी कारण उसके साथ राणा को कई वार युद्ध करना पड़ा और प्रत्येक युद्ध में राणा रायमल की विजय हुई। अंत में गयासुद्दीन ने संधि के लिये राणा से प्रार्थना की। राणा ने उसे स्वीकार कर लिया। इसके वाद राणा ने सुख और शान्ति का जीवन बिताना आरम्भ किया। साँगा, पृथ्वीराज और जयमल नाम के तीन लड़के रायमल के थे। ये तीनों अपने जीवन के आरम्भ से तेजस्वी और अत्यन्त शूरवीर मालूम होते थे। उन तीनों में साँगा और पृथ्वीराज के नाम अधिक प्रसिद्ध हुए। बल और पराक्रम में तीनों एक दूसरे से बढ़कर थे। परन्तु छोटी अवस्था से ही तीनों आपस में लड़ने-झगड़ने लगे थे। वे जितने ही बड़े होते गये, उनके आपस के झगड़े उतने ही बढ़ते गये। साँगा और पृथ्वीराज दोनों एक ही माता से पैदा हुए थे और उनकी माता झाला वंश की थी। जयमल उनका सौतेला भाई था। तीनों भाइयों में कोई अन्तर न था। राणा तीनों को बहुत प्यार करता था। उनके प्रति पिता का यह प्यार स्वाभाविक था। तीनों ही बालक जन्म के बाद बहुत होनहार मालूम होने लगे थे। उनको देखकर और उनके भविष्य का अनुमान लगाकर राणा को बड़ी प्रसन्नता होती थी। लेकिन लड़कों के किशोर अवस्था में पहुँचते-पहुँचते राणा का वह सुख और संतोष धीरे-धीरे कम होने लगा। राणा ने देखा कि इन तीनों भाइयों के झगड़े आपस में लगातार बढ़ते जाते हैं। इन झगड़ों के क्या कारण हैं, राणा की समझ में न आया । वहुत समझाये-वुझाये जाने के बाद भी तीनों लड़कों के आपसी झगड़े में कोई अन्तर न आया। । लगातार उनके बढ़ते हुए झगड़ों को देखकर राणा को वहुत असंतोष होने लगा और जब उसको कोई दूसरा उपाय दिखाई न पड़ा तो उसने अपने लड़कों को राज्य से निकाल देने का विचार किया। क्योंकि वह अब वहुत दुःखी रहने लगा था। 151
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