इसके बाद द्वारपालों के विरोध न करने पर सभी के साथ चूंडा दुर्ग की तरफ बढ़ा। उस समय द्वारपालों को फिर सन्देह पैदा हुआ और वे सब अपने हाथों में तलवारें लेकर राजकुमार और उसके साथ के सवारों पर टूट पड़े। कुछ देर तक खूब मार-काट हुई । राजकुमार चूंडा ने दुर्ग भाटी सरदार को कैद कर लिया। बहुत से द्वारपाल मारे गये। इसके बाद राजकुमार चूँडा सब के साथ आगे बढ़ा। राठौड़ राजपूत रणमल्ल को इस घटना का कुछ पता न था। मारवाड़ से चित्तौड़ आकर वह अनेक प्रकार की विलासिता में पड़ा रहता था। चित्तौड़ के राज्य पर अब वह अपना ही अधिकार समझता था। महलों में एक राजपूत बाला दासी के रूप में रहा करती थी। वह युवती अत्यंत सुन्दर थी। रणमल्ल ने इन्हीं दिनों में उसका सतीत्व नष्ट किया था। इससे अप्रसन्न होकर वह राजपूत वाला रणमल्ल से बदला लेने के लिये मौका ढूंढ रही थी। जिस दिन रात को मोकल और राजमाता के साथ चित्तौड़ में राजकुमार चूंडा ने प्रवेश किया और द्वारपालों के साथ मार-काट की, उस समय रणमल्ल महल के एक स्थान पर लेटा हुआ सो रहा था। राजपूत बाला ने मौका पाकर रणमल्ल की लम्बी पगड़ी से उसको चारपाई से कसकर बाँध दिया। वह अब भी सोता ही रहा । उसे बाँध कर राजपूत बाला चुपके से वहाँ से चली गयी। चूंडा के साथी सैनिक राज प्रासाद के भीतर आ गये थे। उनमें से एक ने रणमल्ल का वध किया। उसका लड़का जोधाराव उस समय चित्तौड़ के बाहर दक्षिण की तरफ था। वहाँ पर चित्तौड़ का हाल सुनकर वह घबड़ा उठा और अपने घोड़े पर बैठकर वहाँ से भागा। राजकुमार चूंडा को उसके भागने का समाचार मिला। वह उसको कैद करने के लिये चित्तौड़ से रवाना हुआ। जोधाराव अपने राज्य के मण्डोर नगर में पहुँच गया था। चूंडा से घबरा कर वह हड़बू सांखला नामक एक राजपूत के यहाँ जाकर छिप गया। राजकुमार चूडा ने मण्डोर नगर पर अधिकार कर लिया। यह नगर बारह वर्ष तक चित्तौड़ राज्य में शामिल रहा। रणमल्ल को उसके विश्वासघात का पूरी तौर पर बदला मिला। मण्डोर नगर अधिकार में आ गया और उस राज्य के बहुत से आदमी मारे गये । जोधाराव छिप गया था। उसके दोनों लड़कों ने चित्तौड़ की अधीनता स्वीकार कर ली जिससे उनके साथ शत्रुता का अन्त हो गया। मण्डोर राज्य का प्रबन्ध करके राजकुमार चूंडा चित्तौड़ लौट गया। जोधाराव के मन में मण्डोर के उद्धार की बात बराबर उठती रही। अवसर पाकर कुछ सैनिकों को अपने साथ में ले कर उसने फिर मण्डोर पर आक्रमण किया। कुछ समय तक चित्तौड़ की सेना ने युद्ध किया। अन्त में उसकी पराजय हुई और जोधाराम ने मण्डोर नगर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद भी जोधाराव को शान्ति न मिली । उसको भय था कि चित्तौड़ की सेना किसी भी समय आक्रमण कर सकती है और वह समय भयानक हो सकता है । इसलिये उसने अपने दूत को संधि के लिये चूडा के पास भेजा और अन्त में दोनों के बीच संधि हो गयी। राज्य के अधिकारियों को चूंडा के समर्पण करने बाद मोकल चित्तौड़ के सिंहासन का अधिकारी वना था। परन्तु अधिक समय तक वह इस अधिकार का भोग न कर सका। गद्यपि युवा अवस्था प्राप्त करने पर उसने अपनी योग्यता और क्षमता का परिचय दिया था। सम्वत् 1454 सन् 1398 ईसवी में वह चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठा था। यह समय भारतवर्ष के इतिहास में बहुत महत्व रखता है। इन्हीं दिनों में तैमूर ने अपनी विशाल सेना लेकर भारत पर आक्रमण किया था। परन्तु उसके आक्रमण से मेवाड़ को कोई क्षति न पहुंची थी। 146
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