वे राजस्थान के इतिहास की सामग्री जुटाने में लग गये थे। उनको क्षत्रीत्व से प्रेम था और इस देश के राजपूतों की वीरता को सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए थे। राजपूताना के बहुत-से भागों में पहुँचकर उन्होंने इस प्रदेश के पुराने इतिहास की सामग्री एकत्रित की । वे जहाँ कहीं पहुँचते, बड़े, बूढ़ों और जानकारों के साथ बैठकर बातें करते और जो काम की वातें मालूम होती, उन्हें वे उसी समय लिख लेते। प्राचीन सिक्कों, शिलालेखों और इस प्रकार की दूसरी सामग्री को खोजने तथा एकत्रित करने के लिए उन्होंने बहुत-से बड़े-बड़े नगरों में अपने एजेन्ट नियुक्त किये थे, जो ग्रीक, शक और दूसरे प्राचीन राजवंशियों के सिक्के एकत्र कर उनके पास पहुँचाया करते थे। जैन मन्दिरों, राजाओं और प्रतिष्ठित पण्डितों की प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों के संग्रह वे बड़ी रुचि से देखते और उनकी उपयोगी सामग्री लेने का काम करते थे। महाराणा भीमसिंह ने इतिहास सम्बन्धी सामग्री एकत्र करने में टॉड साहव को बड़ी सहायता दी। उन्हीं के द्वारा पुराणों, महाभारत, रामायण, पृथ्वीराज रासो आदि अनेक पुस्तकों की सामग्री टॉड साहब को प्राप्त हुई थी। राजपूताना के राजवंशियों की ख्याति, पृथ्वीराज रासो, खुम्भाण रासो, हम्मीर रासो, रतन रासो, विजय विलास, सूर्य प्रकाश, जगत विलास, जय विलास, राज प्रकाश, राज प्रशस्ति, नवसाह, साँक चरित्र, कुमार पाल चरित्र, मान चरित्र, हमीर काव्य, राजावल, राजतरंगिणी, जयसिंह कल्पद्रुम, राजवंशों की वंशावली आदि अनेक प्रकार की बहुत सी सामग्री बड़े परिश्रम के साथ टॉड ने एकत्रित की थी। अनेक प्रकार के काव्य ग्रन्थ, नाटक, व्याकरण कोष, ज्योतिष, शिल्प, महात्म्य और जैन धर्म सम्बन्धी अनेक पुस्तकें तथा अरबी, फारसी भाषा की कई हस्तलिखित ऐतिहासिक किताबों का भी उत्तम संग्रह उन्होंने किया था। बहुत से स्थलों के शिलालेखों, ताम्रपत्रों की प्रतियाँ, बहुत-सी प्राचीन मूर्तियाँ और बीस हजार के करीव प्राचीन सिक्के अपने इस इतिहास की सहायता के लिये उन्होंने प्राप्त किये थे। सन् 1822 ईसवी की 1 जून को अपने देश के लिये टॉड साहब ने उदयपुर से प्रस्थान किया था। उसके पहले ही उन्होंने इस ग्रन्थ 'राजस्थान' का ढाँचा तैयार कर लिया था। टॉड साहब ने राजपूताना का खूब भ्रमण किया और कोई भी प्रसिद्ध नगर और स्थान उन्होंने बाकी नहीं रखा। इन यात्राओं में आश्चर्यजनक सामग्री उनको प्राप्त हुई। वेरावल स्थान के एक छोटे-से मन्दिर में गुजरात के राजा अर्जुन देव के समय का एक बड़ा ही उपयोगी लेख उन्हें मिला। सोमनाथ घूमते हुए जूनागढ़ पहुँच कर उन्होंने प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध गुफाओं के गिरनार के पास एक वड़ी चट्टान पर अशोक की धर्म आज्ञाओं के पास अनेक प्राचीन राजाओं के प्राचीन लेख देखे । परन्तु इन मिले लेखों को पढ़ने वाला उन्हें कोई न मिला । 14 जनवरी 1823 ई. को वे बम्बई पहुँच गये । अपनी इस सम्पूर्ण यात्रा का संग्रह उन्होंने "ट्रैवल्स इन वेस्टर्न इंडिया” नामक
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