- 1813 ईसवी तैयार किया जाये। इसी विचार से उनको जहाँ कहीं राजपूताना में जाने का अवसर मिला, वे अपना बहुत-सा समय इसी काम में खर्च करने लगे और उन प्रदेशों के इतिहास, जनश्रुति और शिलालेखों का भी वे यथासाध्य संग्रह करते जाते थे। इस इतिहास की सामग्री के संग्रह का कार्य यहीं से आरम्भ हुआ। थोड़े ही अरसे में टॉड साहब ने इन विस्तृत प्रदेशों के इतने नक्शे तैयार किये कि उनकी ग्यारह जिल्दें बन गयीं। उस समय राजपूताना में मराठों का जोर बढ़ा हुआ था और यहाँ के रईसों तथा सरदारों में भी परस्पर फूट फैली हुई थी। मराठों के आतंक और सरदारों की फूट के कारण देश की दुर्दशा हो रही थी। होलकर और सींधिया की लूट से मुल्क वीरान हो रहा था। टॉड साहब ने यह देखकर मुल्क की रक्षा करने का संकल्प लिया। सन् 1801 से तक लार्ड मिन्टो हिन्दुस्तान के गवर्नर-जनरल रहे। उन्होंने देशी रियासतों के मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया। फलस्वरूप राजपूताना लुटेरों का घर बन गया। टॉड के दिल में राजपूताना की अशान्ति मिटाने की प्रबल इच्छा थी। इसलिए अपनी सरकार की आज्ञा लेकर वे. एक अंग्रेजी सेना के अधिकारी बन गये और अनेक लड़ाइयों में उन्होंने अत्याचार करने वाली देशी रियासतों की फौजों को पराजित किया। पिन्डारियों और मराठों के उपद्रव मिटाने पर सरकार ने राजपूताना के राज्यों के साथ सन्धि करना आरम्भ किया और टॉड साहब को कई देशों की रियासतों का पोलिटिकल एजेण्ट बना दिया । सन् 1819 ईसवी के अक्टूबर महीने में टॉड साहव जोधपुर को रवाना हुए और नाथद्वारा, कुम्भलगढ़, घाणेराव, नाडोल होते हुए वहाँ पहुँच गये। वहाँ पर उन्होंने दो शिलालेखों की खोज की और ताम्रपत्रों, हस्तलिखित पुस्तकों तथा सिक्कों को प्राप्त किया। इसी प्रकार का कार्य पुष्कर और अजमेर में भी उनका हुआ। इन्हीं दिनों में टॉड साहब तिल्ली के बढ़ जाने से बीमार पड़े। लेकिन इस इतिहास की सामग्री जुटाने का काम बराबर करते रहे। एक दिन जब उनकी तिल्ली में साठ जोंकें लगी हुई खून पी रही थीं, उस समय भी वे चारपाई पर लेटे हुए व्राह्मणों और पटेलों से बातें करते हुए प्राचीन ऐतिहासिक घटनाओं को सुनकर लिखने का काम करते रहे । सरकारी काम करते हुए टॉड साहव उस खोज में बरावर लगे रहे, जो इस इतिहास के लिए जरूरी थी। स्थान-स्थान पर उनको शिलालेख, सिक्के और इस प्रकार की दूसरी चीजें मिली, जो राजस्थान का इतिहास लिखने के लिये बहुत काम की साबित हुईं। उन्होंने गुफाओं और खण्डहरों के भीतर जाकर बहुत कुछ खोज की और चट्टानों पर खुद को प्राप्त किया। टॉड साहब को स्वदेश छोड़े हुए बाईस वर्ष बीत चुके थे। अपने सौजन्य के कारण वे इस देश में सबके प्रिय बन गये थे। राजपूताना में पहुँचकर उन्होंने सबसे पहले वहाँ के भूगोल और नक्शों के काम को पूरा किया और उसके बाद हुए लेखी
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