धरनगढ़ और अजरगढ़ अब तक मौजूद हैं ।मातृ भाट ने मालवा और गुजरात में तेरह स्वतंत्र राज्यों की स्थापना की थी। उस समय से उसके पुत्र गाटेरा गुहिलोत के नाम से प्रसिद्ध हुये। राजा खुमान के बाद पन्द्रह पीढ़ी तक चित्तौड़ के सिंहासन पर जो राजा बैठे। उनके शासन काल में ऐसी घटनायें नहीं हुई, जिनको ऐतिहासिक महत्व मिलता। इसीलिये प्राचीन ग्रंथों में उनके सम्बन्ध में कुछ अधिक नहीं लिखा गया। उन दिनों में चित्तौड़ के गुहिलोत राजाओं और अजमेर के चौहानों में कभी एक-सा व्यवहार नहीं रहा। वे कभी घनिष्ठ मित्रों के रूप में हो जाते थे और कभी एक दूसरे के भयानक शत्रु हो जाते थे। वे कभी एक दूसरे का सर्वनाश करने के लिए तैयार हो जाते और कभी देश की रक्षा करने के लिये मिलकर शत्रुओं के साथ संग्राम करते ।चित्तौड़ के वीरसिंह ने चौहान राजा दुर्लभ को मार डाला था। लेकिन दुर्लभ के बेटे बीसलदेव की वीरसिंह के उत्तराधिकारी रावल तेजसिंह के साथ अटूट मित्रता थी और दोनों ने मिलकर मुस्लिम सेनाओं के साथ युद्ध किया था। राजपूतों के इस प्रकार के गुण भट्ट ग्रन्थों में और प्राचीन काल के शिलालेखों में पढ़ने को मिलते हैं। उन सब में यह भी पढ़ने को मिलता है कि राजपूतों के जीवन में आरम्भ से ही हथियार, घोड़ा और शिकार का प्रेम मिलता है। उनके जीवन में इन तीन बातों के सिवा और कुछ न रहता था और इन्हीं तीनों बातों के द्वारा उनके जीवन में जिस शौर्य का संचार होता था, उसका परिचय वे अपने जीवन की अंतिम घड़ी तक दिया करते थे। 1. जिन तेरह राज्यों की स्थापना हुई थी, उनमें ग्यारह के नाम इस प्रकार हैं- कूलानगर, चम्पानेर, चौरेता, भोजपुर, लुनार, नीमखोर, सोदारु, जोधगढ़, मन्दपुर, आइतपुर और गंगाभाव । 125
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