चित्तौड़ का राज्याधिकार प्राप्त करने के समय बप्पा की अवस्था पन्द्रह वर्ष की थी। इससे यह भी जाहिर है कि बप्पा ने सन् 728 ईसवी में चित्तौड़ का राज्य प्राप्त किया था। इसी समय से गुहिलोत का उत्थान आरम्भ होता है । इस समय से 1100 वर्ष के भीतर 59 राजा मेवाड़ राज्य के सिंहासन पर बैठे। विद्वान ह्यूम ने लिखा है, "कवि जब किसी ऐतिहासिक कथानक का काव्य में वर्णन करते हैं तो इतिहास के सही अंशों को तोड़-मरोड़कर कुछ का कुछ कर देते हैं और ऐतिहासिक सत्य के प्रतिपादन में कल्पनाओं से भरी हुई अपनी पूर्ण स्वतंत्रता से काम लेते हैं।" ह्यूम का कवियों के सम्बन्ध में इस प्रकार कहना यहाँ पर पूरे तौर पर प्रकाश डालता है। राजस्थान का प्राचीन इतिहास बहुत-कुछ वहाँ के भट्ट कवियों के काव्य ग्रन्थों पर निर्भर है। बप्पा के जीवन काल में ही आक्रमणकारी मुसलमानों ने भारत में प्रवेश किया था और वे लोग सिन्धु नदी को पार करके इस देश में आये थे। हिजरी सम्वत् 95 में खलीफा वलीद का सेनापति मोहम्मद विन कासिम सिन्ध देश को पराजित करके गंगा के तट तक आया था, जैसा कि अरब वालों की तवारीखों में लिखा हुआ है। एलमेकिन के ग्रंथ में भी इस बात का वर्णन है कि मुसलमानों ने सिन्ध देश पर आक्रमण किया था और इस आक्रमण से इस देश के राजा भयभीत हो गये थे। अजमेर के राजा माणिकराय के राज्य का आठवीं शताब्दी के मध्य में आक्रमणकारियों के द्वारा विध्वंस किया गया था। शत्रु लोग नावों पर सवार होकर आये थे और अञ्चर नामक स्थान पर उतरे थे। सिन्ध के राजा दाहिर का इतिहास पढ़ने से इस बात का सन्देह नहीं रह जाता कि अजमेर पर आक्रमण करने वाला कासिम था।1 अबुल फजल ने लिखा है कि हिजरी सम्वत् 95 में और सन् 713 ईसवी में कासिम ने राजा दाहिर को मारा और उसके राज्य को नष्ट किया। राजा दाहिर का बेटा अपने राज्य से भागकर चित्तौड़ के मौर्य राजा के पास चला गया था। वप्पा से लेकर शक्तिकुमार तक, दो शताब्दियों के भीतर चित्तौड़ के सिंहासन पर नौ राजा बैठे। इनमें चार महान् प्रतापी हुए, जो इस प्रकार हैं- पहला कनकसेन सन् 144 ईसवी में, दूसरा शिलादित्य सन् 524 ईसवी में, तीसरा बप्पा सन् 728 ईसवी में और चौथा शक्तिकुमार सन् 1068 ईस्वी में। 1 मोहम्मद विन कासिम भारत में आकर चितौड़ की तरफ बढ़ा था उसके वहाँ पहुँचने पर बप्पा ने उसके साथ 118
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