विदेशी शत्रु इस देश के जिन राजपूत वीरों ने अपनी जीवन की आहुतियाँ दी हैं, उनको सुनकर मैं अवाक रह गया हूँ। इस देश के इतिहास को समझने के लिये मैंने यहाँ के उन स्थानों को स्वयं जाकर देखा है, जहाँ पर युद्ध हुये हैं अथवा किसी ने यहाँ पर आक्रमण किया है। घटनास्थलों को देखकर और उस समय की बहुत-सी बातों को सुनकर भी मैंने इतिहास की सामग्री जुटाने का काम किया है। राजस्थान का इतिहास लिखते हुए मैंने इस बात को स्वीकार किया है कि राजस्थान और योरोप की वीर जातियों का जन्म-स्थल एक ही था। मैंने भारत में जागीरदारी की प्रथा ठीक वैसे ही पायी है, जैसी कि प्राचीन योरोप में प्रचलित थी और उसके टूटे-फूटे अंश आज भी हमारे देश के राज्य शासन में पाये जाते हैं। अपने जीवन में मैंने जो ऐतिहासिक खोज की है, वह मुझे इस सत्य को स्वीकार करने के लिये बाध्य करती है। लेकिन सभी लोग मेरी इस विचारधारा के साथ सहमत न होंगे, यह भी मैं जानता हूँ। यद्यपि इसको स्वीकार करने में मैने पक्षपात अथवा हठधर्मी से काम नहीं लिया । अब पुराना संसार बदल चुका है और नया संसार ऐतिहासिक खोजों पर अधिक विश्वास करने लगा है। अब अधिक समय तक उसे अन्धकार में नहीं रखा जा सकता। जो लोग इतिहास की उस सच्चाई पर विश्वास नहीं करना चाहते, उनके समझने के लिए मैंने बहुत सी बातें प्रमाण-स्वरूप इस पुस्तक में लिखी है। सन्देह और विवाद की बहुत-सी बातें पैदा की जा सकती हैं। लेकिन नवीन खोजों पर विश्वास करने वाले निश्चित रूप से इन बातों को महत्त्व देंगे, ऐसा मैं विश्वास करता हूँ। ऐसा करने पर ही पाठक-ग्रन्थकार के अनुसन्धान और परिश्रम की प्रशंसा करेंगे। इस इतिहास में अनेक कमजोरियाँ और त्रुटियाँ है, उन्हें मैं जानता हूँ । उनके लिए मैं सर्व साधारण से क्षमा माँगता हूँ। इन त्रुटियों के लिये मैं और कोई बात नहीं कहना चाहता, सिवा इसके कि मेरा स्वास्थ्य अधिक समय तक काम न कर सका, जैसा कि मैंने पहले भी लिखा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि वर्तमान अवस्था में भी इस पुस्तक का सर्वसाधारण के सामने लाने का कार्य मेरे लिये बहुत कुछ कठिन और असाध्य हो गया था। मैं यह साफ बताना चाहता हूँ कि मैं इस इतिहास को ऐसे साँचे में नहीं ढालना चाहता था कि जिससे उसकी बहुत सी काम की बातें पाठकों के निकट अप्रकट रूप में रह जायें । मैं इस ऐतिहासिक ग्रन्थ को परिपूर्ण नहीं समझता। इसलिए भविष्य में जो विद्वान इस इतिहास को लिखने का काम करेंगे, मैं उनको अपने इस इतिहास की सामग्री भेंट करता हूँ। मुझे इस बात की चिन्ता नहीं है कि पुस्तक बहुत बढ़ गयी है बल्कि चिन्ता यह है कि उसकी कोई उपयोगी सामग्री एकत्रित करने में रह तो नहीं गयी। -जेम्स टॉड
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/११
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