निर्णय करता है। विधान के अनुसार, निकटवर्ती वंशज को गोद लेने के लिए राजा अपना निर्णय देता है और उसके कारण जो झगड़ा पैदा होने वाला होता है, उसको वह रोकने की चेष्टा करता है। यदि अकस्मात पुत्रहीन अवस्था में किसी सामन्त की मृत्यु हो जाती है तो प्रथा के अनुसार उसकी स्त्री को गोद लेने का अधिकार होता है। वह वंश के किसी निकटवर्ती बालक को गोद लेने का निर्णय कर लेती है और जब तक बालक नाबालिग रहता है, उसक माता उसके स्थान पर जागीर का प्रबंध करती है। मेवाड़ के सोलह प्रधान सामन्तों में देवगढ़ का सामन्त भी एक था। पुत्रहीन अवस्था में उसकी मृत्यु हो गयी। मरने के पहले उसने अपनी स्त्री और अपने सरदार को परामर्श देते हुये कहा था कि यदि मैं मर जाऊँ तो नाहरसिंह को गोद लिया जाये। नाहरसिंह संग्रामसिंह के स्वतंत्र सामन्त का लड़का था। उसके साथ देवगढ़ के सामन्त का सम्बंध ग्यारह पीढ़ी पहले का था। कुछ दूसरे लोग ऐसे भी थे, जिनके साथ देवगढ़ के सामन्त के सम्बंध सात और आठ पीढ़ी से अधिक दूरी के न थे। इसलिए ये लोग अधिक निकटवर्ती थे। परन्तु इनकी मर्यादा देवगढ़ के सामन्त की अपेक्षा बहुत साधारण थी और वे लोग या तो राणा की अश्वारोही सेना में थे अथवा राज्य के साधारण कर्मचारी थे। इन निकटवर्ती लोगों में दो परिवार ऐसे थे, जिनका कोई बालक देवगढ़ के सामन्त की स्त्री के द्वारा गोद लिया जा सकता था। परन्तु मर्यादा में कम होने के कारण उनके लिये देवगढ़ के सामन्त ने अपनी स्त्री और अपने-अपने सरदारों को परामर्श नहीं दिया था। मेवाड़ के राजा के सामने जब देवगढ़ के लिये गोद लेने का प्रश्न उपस्थित हुआ तो उसने अपने मंत्रियों के परामर्श से इन्हीं दो परिवारों के किसी एक लड़के को गोद लिए जाने का निर्णय दिया, जो कि अधिक समीपवर्ती थे। देवगढ़ के सामन्त ने मरने के पहले अपने जिन सरदारों को गोद लेने के सम्बंध में अपना परामर्श दिया था, उनसे सलाह लेकर सामन्त की स्त्री ने नाहरसिंह को गोद लेने का निर्णय कर लिया। इसके लिए राणा के दरबार की उपेक्षा करके सामन्त की स्त्री ने नाहरसिंह पर सामन्त की पगड़ी बाँध दी और उसको गोद लेने की उसने घोषणा कर दी। राणा ने जब उस घोषणा को सुना तो वह अप्रसन्न हुआ। सम्वत् 1847 सन् 1791 ईसवी में जो विद्रोह मेवाड़ में पैदा हुआ था, देवगढ़ का स्वर्गीय सामन्त भी उस समय विद्रोहियों में एक था। परन्तु अंत में राणा ने उसको क्षमा कर दिया था। इस समय उस सामन्त की स्त्री और उसके सरदारों का विद्रोहात्मक व्यवहार देखकर राणा ने निर्वाचित सामन्त नाहरसिंह के विरोध का निर्णय किया। उसने देवगढ़ की जागीर पर अपना अधिकार करवा लिया और आदेश दिया कि देवगढ़ में जो खेती की गयी, वह सब कटवा ली जावे । राणा का यह आदेश देवगढ़ के सरदारों ने सुना। वे समझदार और दूरदर्शी थे। गोद लेने की समस्या पर वे राणा के पास पहुँचे और बड़ी बुद्धिमानी के साथ उन सरदारों ने प्रार्थना करते हुए राणा से कहा- "हम लोगों ने अब तक गोद लेने के सम्बंध में कोई निर्णय नहीं किया । मृत्यु के पहले आपके योग्य सामन्त ने नाहरसिंह के सम्बंध में अपनी इच्छा जाहिर की थी और यह भी कहा था कि इसका अंतिम निर्णय हमारे राणा के द्वारा होगा। इसका निर्णय किसी दूसरे के अधिकार में नहीं है। सरदारों के मुख से इस सम्मानपूर्ण बात को सुनकर राणा का क्रोध तिरोहित हो गया। सरदारों ने उसके मनोभावों को अनुकूल समझकर कहा "स्वर्गीय सामन्त ने हम 107
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