पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१०३

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वह अपने अपराध को क्षमा करना अपना धर्म और कर्त्तव्य समझ ले तो इस विशाल और श्रेष्ठ जाति में फैली हुई भयानक कलह का-जिसके द्वारा प्राचीन काल से लेकर अब तक इस देश का सर्वनाश होता चला आ रहा है-अंत हो सकता है। यह कार्य जितना ही महत्वपूर्ण है, उतना ही गंभीर और कठोर भी है। शाहपुरा का राजा मेवाड़ के सामन्तों में अत्यंत शक्तिशाली था। वह राणा के वंश में उत्पन्न हुआ था। अमरगढ़ का भूमिया राणावत सामन्त राजा शाहपुरा का एक सरदार था। शाहपुरा के राजा उम्मेदसिंह की दो जागीरें थीं। एक जागीर उसको मेवाड़ के राणा से मिली थी और दूसरी उसने दिल्ली के बादशाह से पायी थी। उन दोनों जागीरों से उसको बीस हजार पौंड की वार्षिक आय थी। चुंगी आदि की जो आमदनी होती थी, वह इससे अलग थी। मेवाड़ की जागीर मांडलगढ़ जिले में थी और उसी जिले में भूमिया सामन्त दिलील भी रहता था। उसकी शक्तियाँ वहुत साधारण थीं, उसके अधिकार में केवल दस ग्राम थे। उसकी वार्षिक आय बारह सौ पौंड से अधिक न थी। राजा उम्मेदसिंह की जागीर की सीमा सामन्त दिलील के ग्रामों के पास तक पहुँच गयी थी। दोनों के बीच की भूमि प्रायः झगड़े का कारण बन जाती थी। शाहपुरा के राजा की जागीर के किसान अक्सर सामन्त के किसानों के साथ झगड़ा कर लेते थे और उस झगड़े का प्रभाव राजा उम्मेद सिंह और सामन्त दिलील पर पड़ता था। राजा उम्मेदसिंह की शक्तियाँ विशाल थीं। परन्तु उनमें लोकप्रियता न थी। स्वभाव की कठोरता के कारण वह सर्वसाधारण में अप्रिय हो रहा था। सामन्त दिलील का जीवन दूसरी तरह का था। वह प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करता था। उसके न्याय से सभी लोग प्रसन्न रहते थे। आवश्यकता पड़ने पर वह अपने कृषकों का सहायक था। इसीलिए उसकी प्रजा उसका आदर करती थी और आवश्यकता पड़ने पर सभी प्रकार से उसकी सहायता के लिए तैयार रहती थी। सामन्त दिलील का एक अच्छा परिवार था । उसके भाई-भतीजे और पुत्र सभी प्रकार से योग्य थे। वे तलवार चलाना खूब जानते थे। परिवार के लोग सामन्त से प्रसन्न थे। दिलील का दुर्ग और महल एक शिखर पर बना हुआ था । उसके पश्चिमी भाग में ऊँची चोटी के महल के ऊपर कई तोपें लगी रहती थी । उसके दुर्ग और महल के आस-पास घना जंगल है । उसी जंगल से होकर प्रासाद में जाने के लिए रास्ता था। दुर्ग और महल की परिस्थितियाँ कुछ ऐसी हैं कि उन पर शत्रु का आक्रमण आसानी के साथ नहीं हो सकता। यदि ऐसा न होता तो प्रवल पराक्रमी शाहपुरा के राजा उम्मेदसिंह ने कभी भी सामन्त दिलील पर आक्रमण किया होता और अपनी शक्तियों के द्वारा उसने उसको मिटा दिया होता। सामन्त दिलील अपनी सैनिक शक्तियों में बहुत निर्बल था। परंतु वह स्वाभिमानी था और राजा उम्मेदसिंह से वह किसी प्रकार डरता न था। दोनों सीमाओं के बीच को भूमि के कारण अनेक बार राणा और सामन्त के बीच झगडे पैदा हो चुके थे। उनमें सामन्त सदा बड़ी निर्भीकता से काम लिया था। राजा उम्मेदसिंह कठोर और अहंकारी होने के बाद भी सामन्त को कोई क्षति नहीं पहुँचा सका था। लेकिन सामन्त दिलील ने अक्सर राजा की जागीर में प्रवेश करके और आक्रमण करके लूट-मार की थी। अनेक अवसरों पर राजा के धनियों को कैद करके वह अमरगढ़ ले गया था और उन कैदियों को उसने कारागार में बंद कर दिया था। सामन्त के इन व्यवहारों से राजा उम्मेदसिंह बहुत चिढ़ा हुआ था। उसके जिन आदमियों को कैद करके सामन्त कारागार में रखता था, कई वार उन लोगों को कारागार से 103