राजपूतों के स्वभाव में बदला लेने की भावना- राजपूतों का जिस प्रकार सर्वनाश और पतन हुआ है, उसका कारण बाहरी आक्रमणकारियों के अत्याचार की अपेक्षा, उनका आपस का वैमनस्य अधिक है । इस जाति में बदला लेने की भावना बहुत प्रबल है और इस भावना ने ही मेवाड़ को श्मशान बना दिया है। जीवन की साधारण बातों में राजपूतों का उन्मत्त हो जाना और भयानक संघर्ष पैदा कर देना उनके स्वभाव की मामूली बात है। राजस्थान के राज्यों का सम्पूर्ण इतिहास उन घटनाओं से भरा हुआ है, जिनसे हमारे इस विश्वास का समर्थन होता है । यद्यपि इस समय मेवाड़ की परिस्थितियाँ बदल गयी हैं। राजस्थान का परम रमणीक राज्य मेवाड़ अव फिर से सुख और शांति का जीवन व्यतीत करने लगा है। मेवाड़ राज्य के विध्वंस होने में कुछ बाकी न रह गया था। भयानक बाघ और जंगली सूअर राजधानी उदयपुर के भीतर रात दिन घूमा करते थे। राजप्रासाद के भीतर उसके रमणीक कमरों में गीदड़ बसेरा करते थे। प्रासाद के जिस विशाल प्रांगण में सामन्त लोग अपनी सेनाओं के साथ आकर शोभा की वृद्धि करते थे, वह रमणीक स्थान बड़ी-बड़ी घासों से भरा था और राणा स्वयं उस घास को पार करता हुआ अपनी राजधानी में प्रवेश करता था। वह समय मेवाड़ के जीवन से अब तिरोहित हो चुका है और सम्पूर्ण राज्य अब फिर से शांतिपूर्ण जीवन का अनुभव करने लगा है, यह प्रसन्नता की बात है बदला लेने की भावना राजपूतों में इतनी अधिक है कि उससे एक भी राजपूत को अलग समझना कठिन मालूम होता है। एक निर्बल राजपूत भी अपना बदला लेना चाहता है। वह सब कुछ कर सकता है। लेकिन बदला लिए बिना नहीं रह सकता है। राजपूत आत्म सम्मान को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। किसी भी दशा में यदि वे अपने अपमान का बदला न ले सके तो वे अपने आपको बहुत घृणित और पतित समझते हैं। स्वाभिमान की यही भावना प्राचीन सैक्शन लोगों में मौजूद थी। परन्तु राजपूत उनसे सदा से बहुत आगे रहे हैं। सैक्सन लोगों में यह प्रथा पुरानी थी कि जब कोई एक को क्षति पहुँचाता था, अथवा अपमानित करता था तो उस अपराध के दंड में कुछ निर्धारित नियमों के अनुसार उसे धुन देना पड़ता था। उंगली, अंगूठा और इस प्रकार के शारीरिक छोटे-छोटे अंगों को क्षति पहुँचने से अपराधी को अर्थ-दंड देने की व्यवस्था थी। किसी अंग के कट जाने से अथवा आघात पहुँचने से अपराधी को क्या दंड देना पड़ेगा इसका सैक्सन लोगों में एक विधान था। परन्तु राजपूतों की व्यवस्था ऐसी नहीं है। वे रक्त के बदले रक्त चाहते हैं। इस प्रकार के अपराधी को अर्थ दंड दिये जाने पर राजपूतों को संतोष नहीं हो सकता। जीवन की छोटी-मोटी बातों में स्वाभिमान के नाम पर उन्मत्त हो जाना अच्छा नहीं होता । राजपूतों में यह एक स्वाभाविक कमजोरी है, जो बहुत प्राचीन काल से उनमें चली आ रही है। इस कमजोरी के कारण राजपूतों ने दूसरों की अपेक्षा अपना विनाश अधिक किया है। उनके इस स्वभाव के कारण जीवन में जिस प्रकार की घटनायें पैदा होती हैं, यद्यपि उनसे प्रत्येक राजपूत की जिंदगी भरी हुई है, फिर भी संक्षेप में कुछ उदाहरण देकर हम यहाँ पर उनकी स्वाभाविक कमजोरी को समझने की चेष्टा करेंगे। उसके पहले हमारे सामने एक प्रश्न पैदा होता है कि राजपूतों में फैली हुई इस भीषण कलह को क्या रोका नहीं जा सकता? जो लोग इस देश के और राजपूतों के शुभचिंतक हैं, वे राजपूतों की मनोवृत्तियों को वदलने का कार्य कर सकते हैं। एक अपराधी राजपूत, जिसके प्रति अपराध करता है, यदि वह अपने अपराध के लिए क्षमा माँग लेना सीख ले और जिसका अपमान करता है, यदि 102
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