गोला गोला का अर्थ दास अथवा गुलाम होता है। भीषण दुर्भिक्षों के कारण राजस्थान में गुलामों की उत्पत्ति हुई थी। इन अकालों के दिनों में हजारों की संख्या में मनुष्य बाजारों में दास बनाकर बेचे जाते थे। पहाड़ों पर रहने वाली पिंडारी और दूसरी जंगली जातियों के अत्याचार बहुत दिनों तक चलते रहे और उन्हीं जातियों के लोगों के द्वारा बाजारों में दासों की बिक्री होती थी, वे लोग असहाय राजपूतों को पकड़कर अपने यहाँ ले जाते थे और उसके बाद बाजारों में उनको बेच आते थे। इस प्रकार जो निर्धन और असहाय राजपूत खरीदे और वेचे जाते थे, उनकी संख्या राजस्थान में बहुत अधिक हो गयी थी और उन लोगों की जो संतान पैदा होती थी, वह गोला के नाम से प्रसिद्ध हुई। इन गुलाम राजपूतों को गोला और उनकी स्त्रियों तथा लड़कियों को गोली कहा जाता था। यूरोप में इसी प्रकार के सेक्सन दास होते थे। गोला लोग अपने वायें हाथ में चाँदी का कडा पहना करते हैं। अच्छा व्यवहार किये जाने पर ये लोग अच्छे लडाका सिद्ध होते हैं। ये गोला लोग अपनी माता के वंश के अनुसार ख्याति पाते हैं। इन गोला लोगों में राजपूत, मुसलमान और अनेक दूसरी जातियों के लोग पाये जाते हैं। बाजारों में उन सबका क्रय और विक्रय होता है। बहुत से राजपूत सामन्त इन गोला लोगों की अच्छी लड़कियों को अपनी उपपत्नी बना लेते हैं और उनसे जो लड़के पैदा होते हैं, वे सामन्तों के राज्य में अच्छे पदों पर काम करने हेतु नियुक्त कर दिये जाते हैं। देवगढ़ का स्वर्गीय सामन्त जब उदयपुर राजधानी में आया करता था तो उसके साथ तीन सौ अश्वारोही गोला सैनिक आया करते थे। उन सैनिकों के बायें हाथ एक-एक साने का कडा होता था। प्राचीन जर्मन जातियों में जुआ खेलने का बहुत प्रचार था। टैसीटस नामक रोमन इतिहासकार ने उन जातियों के जुए का वर्णन करते हुए लिखा है -“वहाँ पर जुआ खेलते हुए अंत में जिनकी हार होती थी,उनको गुलामों के बाजार में ले जाकर वेचा जाता था।" जर्मन जातियों की तरह जुआ खेलने का प्रचार राजपूतों में बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है । भारतवर्ष के प्राचीन ग्रंथों से साफ जाहिर होता है कि जुआ के कारण इस देश के प्राचीन वंशों का किस प्रकार सर्वनाश हुआ है । इस देश में कुरुक्षेत्र का महाभारत न होता, यदि पांडवों और कौरवों में जुआ खेलने की आदतें न होती और उस महाभारत के युद्ध में अगणित वीरों को अपनी आहुतियाँ न देनी पडती । संक्षेप में यहाँ पर यह कहना अनुचित नहीं है कि जुआ खेलने की आदत के ही कारण युधिष्ठिर को अपना राज सिंहासन खोना पड़ा था और जुआ खेलने की आदतों के ही कारण उन्नति के शिखर पर पहुँचा हुआ भारतवर्ष मटियामेट हो गया। आश्चर्य यह है कि जिस गंदी और अनैतिक आदत के कारण इस देश का सर्वनाश हुआ है,उस आदत का और उसकी अनैतिकता का आज तक अंत नहीं हुआ। सब कुछ खोने के बाद भी राजपूतों ने अपने जीवन में जुआ खेलने की आदतों को आज तक कायम रखा है। राजस्थान के राज्यों में आज भी जुआ खेलने का प्रचार बहुत अधिक है। ऊपर गोला लोगों का वर्णन किया गया है। जो राजपूतानी गोली लड़कियाँ मेवाड़ के सामन्तों से पुत्र उत्पन्न करती हैं और जो राणा के सम्पर्क से लड़के पैदा करती हैं, वे सभी दासों के नाम से पुकारे जाते हैं। इन दासों को सामन्तों के अथवा राणा के राज्य से जीवन निर्वाह के लिए भूमि मिलती है। परन्तु समाज में उनको कोई प्रतिष्ठा नहीं दी जाती। बसी और गोला गुलामों के नाम हैं। ये लोग स्वयं अपने आपको दास अथवा गुलाम कहते हैं। गोला, गोली लड़कियों के साथ, बसी, बसी लड़कियों के साथ और इसी प्रकार दूसरे गुलाम अपने वंश क्रम के अनुसार वैवाहिक सम्बंध करते हैं। दासता अथवा गुलामी इन लोगों के मनोभावों में अधिकार रखती है। जो दास जिस श्रेणी का हो चुका है
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