1 थी। उस फौज का वह सामना न कर सका। इसलिए उसने अपनी जन्मभूमि को छोड़ दिया और अपने परिवार को लेकर सिन्धु नदी के दूसरी तरफ चला आया। वादशाह की फौज ने उसका पीछा किया। भाग जोने के बाद भी वह बच न सका। सूती अल्लाह नामक स्थान पर बादशाह की फौज ने उसे घेर लिया। उस समय उसके सामने दो रास्ते थे और उनमें से वह एक को स्वीकार करने के लिए विवश किया गया। वह या तो अपने आपको शत्रुओं के हवाले कर दे अथवा अपने परिवार के साथ-साथ अपनी आत्महत्या कर ले। इस संकट के समय उसने साहस और धैर्य से काम किया और शत्रु से लड़कर मर जाना उसने अच्छा समझा। उसके इस साहस को देखकर वादशाह की फौज ने उस पर आक्रमण नहीं किया और वह उसे छोड़कर चली गयी। इसके बाद दाऊद खाँ अपने साहसी साथियों के साथ सिन्ध के मैदान में जाकर रहने लगा और उसने अवसर पाकर अपनी शक्तियाँ वढ़ायीं। उसके राज्य की सीमा इन दिनों में थल तक पहुँच गयी। दाऊद खॉ के बाद मुवारक खॉ उसके राज्य का अधिकारी हुआ और उसके बाद उसका भतीजा भावल खाँ उसकी मसनद पर बैठा। उसका लड़का सादिक मोहम्मद खाँ भावलपुर अथवा दाऊदपोतरा का आजकल शासक है। मुबारक खॉ ने भाटी लोगों से खादल का जिला लेकर अपने अधिकार में कर लिया था। इसका उल्लेख जेसलमेर के इतिहास में किया जा चुका है। उसकी राजधानी देरावल है। इसकी नींव आठवीं शताब्दी में रावल देवराज ने डाली थी और वहीं पर दाऊद खॉ के वंशज रहने लगे थे। उन दिनों में भट्टी लोगों की एक शाखा देरावल में रहती थी। उसके सरदार की उपाधि रावल है। भावल खाँ ने दाऊदपोतरा की राजधानी बसायी और उसका नाम अपने नाम पर रखा। वहाँ पर पहले भाटी नगर था। इसके तीस वर्ष बाद कन्धारी फौज ने दाऊदपोतरा पर आक्रमण किया और देरावल को अपने अधिकार में कर लिया। इसके बाद एक सन्धि हुई और उसके अनुसार भावल खाँ को देरावल वापस दिया गया। भावल खाँ को एक बार अदाली शाह की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। उस समय भावल खाँ को अपना लडका मुबारक खाँ अदाली शाह के साथ भेजना पडा। मुवारक खाँ तीन वर्ष तक काबुल में रहा। उसके बाद वह स्वतन्त्र कर दिया गया। मुबारक खॉ स्वाधीन होकर अपने राज्य की स्वतन्त्रता के लिए चेष्टा करने लगा। इस दशा में भावल खाँ ने उसे कैद करा लिया और वह किञ्जर के दुर्ग में कैद करके रखा गया। वह भावल खॉ की मृत्यु के समय तक वहाँ पर वन्दी होकर रहा। भावल खाँ के मर जाने के बाद दाऊदपोतग के सरदारों के द्वारा वह दुर्ग से निकाला गया। स्वतन्त्र होकर वह मुरार मे पहुँचा। अपनी राजधानी में आ जाने के बाद विरोधियों ने धोखे से उसे मरवा डाला। उसके बाद सादिक खाँ उसकी मसनद पर बैठा। उसने मुबारक खॉ के लड़कों को अपने छोटे भाई के साथ-साथ देरावल के दुर्ग में बन्द करवा दिया। लेकिन वे वहाँ से निकलकर भागे और राजपूतो तथा पुरविया लोगों की सेना लेकर उन्होंने देरावल पर अधिकार कर लिया। सादिक खॉ दुर्ग की दीवार पर चढ़ गया। उस समय उसके साथ के लोगों ने उसकी रक्षा न की और उसके दोनों भाई और एक भतीजा युद्ध में मारा गया। उसका दूसरा भतीजा दीवार पर चढ़ गया। परन्तु वह पकड़ लिया गया। सादिक खाँ ने उसे मरवा डाला। सादिक खाँ ने जिस नसीर खाँ की सहायता से मसनद पर बैठने का अधिकार पाया था, उसने उसको भी मरवा डाला। 91
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