कारण उसके सामने संकट पैदा हो गया था। काफिरों को मुसलमान बनाना उसका मुख्य कार्य था। सम्भव है, उन दिनो में नहरवल्ल का निर्वासित राजवंश खेरधर की रेतीली पहाड़ियों के वीच में रहने वाले चौहानों के आश्रय में आ गया हो। पारकर के राजा ने वीरबाह की अधीनता स्वीकार नहीं की थी। यद्यपि वह बीरबाह के राजा को कर में कुछ देता था। उन दोनों की उपाधि राणा थी और दोनों ने वीरता तथा बहादुरी के लिए ख्याति पायी थी। इस राज्य के थल की लम्बाई-चौड़ाई इसलिए लिखना अनावश्यक मालूम होता है कि वह सदा घटती-बढ़ती रहती है। लेकिन इस राज्य के प्रसिद्ध नगरों का वर्णन करना आवश्यक है। इससे वहाँ के मनुष्यों की संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है। ऊपर लिखा जा चुका है कि चौहान राज्य दो भागों में बँटा हुआ है। प्रथम भाग में सूई बाह, धरणीधर, बकसिर, थेराड, हितीगाँव और चीतलवाना प्रसिद्ध नगर हैं। राज्य के दोनों भागों के आस-पास बबूल तथा कॉटेदार पेड़ों का परकोटा है। इसको वहाँ की भाषा में काठ का कोट कहा जाता है। यह परकोटा शत्रु के आक्रमण को रोकने मे बहुत बड़ा काम करता है। अपने रेतीले राज्य से राणा नारायण राव की वार्षिक आमदनी तीन लाख रुपये है। इसमें से तृतीयांश अर्थात् एक लाख रुपये उसे जोधपुर को कर के रूप में देना पड़ता है। परन्तु यह बिना युद्ध के जोधपुर को कभी नहीं मिला, इस राज्य की जो भूमि लूनी नदी के जल के द्वारा सीची जाती है, उसमें अनाज की पैदावार अच्छी होती है। गरमी के दिनो मे उस नदी का जल सूख जाता है। उस दशा में नदी के जल-मार्ग में कुएँ खोदकर पानी निकाला जाता है और उसके द्वारा जल के अभाव की पूर्ति की जाती है। यही अवस्था कोहरी नदी में होती है। मैंने ग्वालियर के जिले में देखा है कि लोग कोहरी नदी के जल-मार्ग को खोजकर पानी निकाल लेते हैं और उससे अपना काम चलाते हैं। पारकर की राजधानी नगर अथवा सरनगर है। वहाँ पर पन्द्रह सौ घरों की आबादी है। सन् 1814 ई. में इन घरों की आबादी लगभग आधी रह गयी थी। नगर के दक्षिण-पश्चिम की तरफ एक छोटा-सा पहाड़ी दुर्ग है। उसकी ऊँचाई दो सौ फीट कही जाती है। कुएँ और वावड़ी के बीच नदी के प्रवाह का मार्ग है । बीरबाह के राजा की तरह पारकर के राजा की उपाधि भी राणा है। हमें यह नहीं मालूम कि उनके आपसी सम्बन्ध क्या हैं। फिर भी इस बात के प्रमाण हमारे पास हैं कि दोनों एक दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। दोनों एक ही वंश के हैं। सरनगर के मुकाबिले में बक्सर दूसरी श्रेणी का है। कुछ समय पहले यह एक वैभवशाली नगर था। परन्तु सन् 1814 ईसवी में इसके घरों की संख्या केवल तीन सौ साठ थी। नगर के राजा का लड़का यहीं पर रहा करता है और अपने पिता के समान वह राणा की उपाधि का प्रयोग करता है। यहाँ पर हम छोटे-छोटे नगरों का उल्लेख करना आवश्यक नहीं समझते। थेराड लूनी के चौहानों का दूसरा भाग है, जिसका प्रधान नगर उसी नाम से सूई बाह के उत्तर की तरफ कुछ कोसों की दूरी पर है और वह पारकर की तरह नाम मात्र के लिए परतन्त्र है। चौहान राज्य की आकृति-जैसा कि ऊपर लिखा गया है, यहाँ की भूमि ऊसर और पहाड़ी है। वह जूनाचोटन से जैसलमेर तक फैली हुई है। वह बड्यूसर के पश्चिम की तरफ 75
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