पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/७४

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1 आरोर के प्राचीन नगरों के अस्तित्व अब तक मौजूद हैं। फिर भी उनके नामों को वही लोग मुश्किल से जानते है, जिन्होंने मरुभूमि की यात्रा की है और वहाँ की भौगोलिक जानकारी प्राप्त की है। चोटन और खेरालू आदि नगरों के नाम भी नक्शो में नहीं पाये जाते । भट्ट ग्रन्थों के छन्दों मे इस प्रकार के नामों का संकेत पाने पर हमें प्रोत्साहन मिला और हमने उनके सम्बन्ध मे जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा की। उस खोज में जो मिला, उसे हमने यहाँ पर स्पष्ट रूप मे लिखने की कोशिश की है। मरुभूमि की समस्त प्राकृतिक और अप्राकृतिक वातो का उल्लेख करना यहां पर हमारा उद्देश्य है। उसके साथ उसके प्रसिद्ध नगरों का भी हमने वर्णन किया है। फिर चाहे वे वर्तमान में मौजूद हो अथवा नष्ट हो गये हो। इसके पश्चात् जैसलमेर आने-जाने वाले रास्तों का वर्णन किया गया है। सम्पूर्ण बीकानेर और अरावली पर्वत के उत्तर में वसा हुआ शेखावाटी का हिस्सा भी इस मरुभूमि मे सम्मिलित है। कानोड नगर से मरुभूमि की शुरूआत होती है। इस बात को मिस्टर एलफिन्स्टन ने भी स्वीकार किया है। दिल्ली से कानोड नगर की दूरी कम्पनी के राज्य मे लगभग एक सौ मील थी। उसका वर्णन करने की कोई आवश्यकता नहीं नालूम होती। उसके सम्बन्ध में इतना ही जान लेना जरूरी है कि भूमि रेतीली होने पर भी खेती के लिये अच्छी है। कानोड पहुँचने के बाद हमको मरुभूमि का दृश्य देखने को मिला। उसको देखने की मुझे पहले से ही उत्सुकता थी। कानोड से तीन मील के पहले से ही बालू की पहाड़ियाँ दिखायी दे रही थीं। दूर से वे झाड़ियो से घिरी हुई मालूम होती थीं। लेकिन आगे बढ़ने पर समुद्र की लहरों के समान वे दिखायी देने लगीं। कहीं-कहीं पर जमीन की सतह पर बालू के ऊँचे ढेर दिखायी पडते थे। बालू के ऊँचे टीलो पर जो रास्ते बने थे, वे पशुओ के चलने के कारण मजबूत हो गये थे। मार्ग से इधर-उधर हटने पर हमारे घोड़े घुटनों तक बालू में धंस जाते थे। मरुभूमि का यह पहला दृश्य था, जो हमारे सामने आया। सिंगाना और झुंझुनूं से चूरू का रास्ता गया था। हम लोगो ने वहाँ पहुँचकर बीकानेर में प्रवेश किया। शेखावाटी के सम्बन्ध में मिस्टर एलफिन्स्टन ने लिखा है- "शेखावाटी को मरुभूमि मे शामिल करने पर जव उसकी तुलना दो सौ अस्सी मील लम्बे मैदान के साथ-जो कि पश्चिमी सीमा से बहावलपुर तक है- की जाती है तो वह अपने स्वत्व को खोता हुआ मालूम होता है। इसलिए कि इस विस्तृत मैदान के अतिम एक सौ मील मे कहीं पर कोई मनुष्य दिखायी नहीं देता और न कहीं पर कोई वृक्ष तथा जल ही मिलता है।" शेखावाटी से पूगल तक हम लोगों का मार्ग बालू की पहाड़ियो और धसकती हुई रेत की घाटियो से होकर था। ये पहाडियाँ कुछ इस प्रकार थीं, जैसे समुद्र के किनारे कभी- कभी ऑधी के द्वारा पानी की ऊँची दीवारें पहाडियों के समान खडी हो जाती हैं और जिनकी ऊँचाई बीस फीट से लेकर एक सौ फीट तक होती है। वहाँ के ये रास्ते सदा एक से नहीं रहते, समय-समय पर उनमें अन्तर पड जाते हैं। गर्मी के दिनो में इन रास्तों पर चलना बहुत मुश्किल हो जाता है। उड़ती हुई बालू के कारण ये रास्ते उन दिनो में अत्यन्त भयानक हो जाते हैं। मैने सर्दी के दिनो मे वहाँ की यात्रा की थी। इसलिए उन दिनों मे यह कठिनाई अधिक भयानक न 68