मूलराज अपनी राजधानी से नगर की सड़कों पर निकलता था। इन वैश्यों के असन्तोपपूर्ण व्यवहारों को मूलराज जानता था। उसने इन वैश्यों को प्रसन्न करने की कोशिशें भी की थीं। उसने इसके सम्बन्ध में निर्णय किया था कि अगर वैश्यों से बराबर धुआँ कर मिलता रहे तो दण्ड कर लेना बन्द कर दिया जाएगा। ओसवाल वैश्यों ने रावल मूलराज के इस निर्णय को स्वीकार कर लिया था। सम्वत् 1841 मे मूलराज ने ओसवाल वैश्यों से सत्ताईस हजार और सम्वत् 1852 में चालीस हजार रुपये ऋण में लिए थे। ये रुपये कुछ दिनों के बाद दे दिये गये थे। गजसिंह को सिहासन पर बिठाने के बाद से प्रधानमंत्री सालिम सिंह ने दण्ड कर में चौदह लाख रुपये वसूल किये थे। इस राज्य में वर्द्धभान नाम का एक सम्पत्तिशाली आदमी रहता था। राजस्थान में उसकी बड़ी ख्याति थी। यह ख्याति उसके पूर्वजों के समय से चली आ रही थी। सालिम सिंह ने उसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति लेकर अपने अधिकार में कर ली थी। जैसलमेर राज्य के व्यय का उल्लेख इस प्रकार मिलता है, जो वहाँ के राजा का पारिवारिक व्यय समझा जाता था :- 20000 रुपये रोजगार सरदार 40000 रुपये वैतनिक सेना में 75000 रुपये राजा के निजी घोड़े, हाथी, ऊँट आदि 35000 रुपये पाँच सौ अश्वारोही 60000 रुपये रानियों का व्यय 15000 रुपये 5000 रुपये दान 5000 रुपये पाकशाला 5000 रुपये अतिथि 5000 रुपये उत्सव 5000 रुपये वार्पिक ऊँट व घोड़ों की खरीद 2000 रुपये जोड़ 272000 रुपये बार तोशा खान जैसलमेर के राजा के व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक व्यय का ऊपर उल्लेख किया गया है, उसमें बार के नाम से जो रुपये व्यय होते हैं, उसमें राजा के निजी अनुचर, शरीर रक्षक, खरीदे हुए गुलाम आदि सभी आ जाते हैं। वेतन में ये लोग खाने-पीने की सामग्री पाते हैं। इन लोगों की संख्या लगभग एक हजार तक होती है। जो सामन्त राजधानी में रह कर राज्य का काम करते हैं, उनके सभी खर्चों का प्रबन्ध, जिसमें भोजन भी शामिल है, राज्य को करना पडता है और उसका नाम रोजगार . सरदार है। राज्य के मंत्रियों और अधिकारियों में कुछ लोगों को भूमि और कुछ लोगों को वाणिज्य शुल्क दिया जाता है। राज्य का व्यय किसी-किसी वर्ष में वाणिज्य शुल्क से पूरा हो जाता है जिसकी वार्षिक आय लगभग तीन लाख रुपये होती है। 62
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