रावल मूलराज के बाद गजसिंह जैसलमेर के सिंहासन पर बैठा। उसके बड़े भाइयों ने बीकानेर मे जाकर अपने प्राणो की रक्षा की। मूलराज की तरह गजसिंह भी प्रधानमत्री सालिम सिंह के हाथ का खिलौना बनकर रहा। उसकी अयोग्यता और कायरता की बाते पहले लिखी जा चुकी हैं। सालिम सिह अनेक दूसरे तरीको से गजसिंह को प्रसन्न करने का उपाय किया करता था। उसकी चेष्टा से मेवाड के राणा ने गजसिंह के साथ अपनी लडकी के विवाह का प्रस्ताव किया और नारियल भेजा। गजसिंह ने उसे स्वीकार कर लिया। मेवाड़ के राजा ने इन्हीं दिनों में अपनी दूसरी लड़की के विवाह के लिए बीकानेर के राजा के पास और प्रपौत्री के विवाह के लिए कृष्णगढ़ के राजा के पास प्रस्ताव भेजा। ये तीनो विवाह एक साथ तय हो गये और तीनो राज्यो से सेनायें लेकर वर-पक्ष के लोग उदयपुर पहुँच गये। समयानुसार विवाहो के कार्य सम्पन्न हुए। गजसिंह मेवाड़ की राजकुमारी के साथ जैसलमेर में आकर रहने लगा। उस राजकुमारी से गजसिंह के एक लड़का पैदा हुआ। इससे गजसिंह की रानी को बहुत सम्मान मिला और सालिम सिंह ने मेवाड़ की राजकुमारी के साथ गजसिंह का विवाह कराने के कारण अपने आपको बहुत गौरवान्वित समझा। 58
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