जोरावर सिंह के मर जाने के बाद रायसिंह के पुत्री की अब वात कहने वाला कोई न रह गया था। उन दोनों बालकों के प्राणों की रक्षा का भार जोरावर सिंह ने अपने ऊपर लिया था, उसे मंत्री सालिम सिह मेहता ने संसार से विदा कर दिया था। इसलिए सालिम सिंह अब पूर्ण रूप से निर्भीक हो गया। उसने मूलराज के बाद राज्य का उत्तराधिकारी अभय सिंह के स्थान पर उसके लड़के मानसिंह के बेटे गजसिंह को बनाने की चेष्टा की और जिस समय इस प्रकार का प्रस्ताव राज दरबार में उपस्थित किया गया, उस समय खेतसी चुपचाप बैठा रहा। राज्य के पुराने नियमों के अनुसार मंत्री सालिम सिंह का यह प्रस्ताव पूर्ण रूप से अनैतिक था। राज-दरबार में उस प्रस्ताव का उसे समर्थन न मिल सका। इस प्रकार के अनैतिक कार्यो में प्रजा की सहानुभूति पर भी सालिम सिंह संदेह करने लगा। इस दशा में गजसिंह को उत्तराधिकारी बनाने के लिए एक ही उपाय रह गया था कि रायसिंह के दोनों बालकों को मारकर इस संसार विदा कर दिया जाये। इसके लिए वह प्रयत्न करने लगा। सालिम सिंह संसार के नेत्रों में जैन धर्मावलम्बी था। उसने उस धर्म को स्वीकार किया था, जिसके अनुसार विना जाने एक चींटी और पतंगे के मर जाने से भी भयानक पाप होता है। सालिम सिंह स्वरूप सिंह का बेटा था और जैन धर्मावलम्बी होने के बाद भी उसने संसार का कोई पाप और अपराध वाकी न रखा था। सालिम सिंह उसी स्वरूप सिंह का लड़का था। इसने मंत्री होने के बाद किस प्रकार के अत्याचार किये और पड्यंत्र करके लोगों की हत्याये कीं, इसका वर्णन ऊपर किया जा चुका है। रावल मूलराज ने सालिम सिंह के अत्याचारों के प्रति अपने दोनों नेत्र बंद कर लिए थे। जिस मूलराज ने सालिम सिंह को सभी प्रकार स्वत्वाधिकारी बना दिया था, उस सालिम सिंह का भी कुछ कर्त्तव्य मूलराज के प्रति था। उसने मूलराज के प्रपौत्र गजसिंह को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। राज्य का वास्तव में उत्तराधिकारी रायसिंह का बेटा अभयसिंह था। रायसिंह अपनी पत्नी के साथ आग से जलकर मर चुका था। अब गजसिंह के जीवन में अभय सिंह कांटा था। न केवल उस अभयसिंह को, बल्कि रायसिंह के दूसरे बालक धौंकल सिंह को भी मरवा डालने का सालिम सिंह ने निश्चय किया। लगातार पाप और अपराध करने के बाद मनुष्य के हृदय का भय नष्ट हो जाता है। सालिम सिंह की भी यही अवस्था थी। अब उसने हृदय में किसी बात का भय न रह गया। उसने अपने षड्यंत्र द्वारा जोरावर सिंह के स्थान पर खेतसी को राज्य का प्रधान सामन्त बनाया था। वह खेतसी पर अपना यह उपकार समझता था। उसका कदाचित् यह विश्वास था कि मैं जो कुछ कहूँगा, खेतसी उसको पूरा करेगा। अपने इसी विश्वास के कारण उसने रायसिंह के दोनों बालकों को मार डालने के लिए खेतसी को आदेश दिया। खेतसी प्रधान मंत्री सालिम सिंह के इस आदेश को सुनकर अत्यन्त क्रोधित हुआ और उसने सालिम सिंह को उत्तर देते हुए कहा- "मैं अपने वंश में किसी के भी प्रति इस प्रकार की बात सुनना भी पसन्द न करूंगा।" खेतसी की इस बात को सालिम सिंह ने सुना। उसने कुछ उत्तर न दिया। इसके कुछ दिनो बाद खेतसी बालोतरा राज्य के फूलिया नामक स्थान पर एक निमन्त्रण में गया। जब वह वहाँ से लौट रहा था, मन्त्री सालिम सिह के भेजे हुए राज्य के कुछ आदमी उसे 51
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