में कोई ऐसी शक्ति न रह गयी थी, जो आक्रमणकारी शत्रुओं के साथ लड़कर राज्य की रक्षा कर सकती थी। इसलिए थोड़े ही दिनो मे जैसलमेर राज्य के कितने ही नगर दूसरे राज्यों मे चले गये और उसके परिणामस्वरूप जैसलमेर राज्य को भयानक रूप से आघात पहुंचा। अमरसिह के पश्चात् उसका लडका यशवतसिंह जैसलमेर के सिंहासन पर बैठा। उसके पाँच लड़के पैदा हुए-(1) जगतसिंह (2) ईश्वरीसिंह (3) तेजसिंह (4) सरदार सिंह और (5) सुलतान सिंह । जगतसिह ने आत्महत्या कर ली थी। उसके तीन लड़के पैदा हुये- (1) अखयसिंह (2) बुधसिंह और (3) जोरावर सिंह । बुधसिह की चेचक की बीमारी मे मृत्यु हो गयी। उसके बाद यशवन्तसिंह की मृत्यु के बाद उसका प्रपौत्र अखयसिंह सिहासन का अधिकारी था। लेकिन उसके बालक होने के कारण उसके चाचा तेजसिंह ने सिंहासन पर हठपूर्वक अधिकार कर लिया। अखयसिंह और जोरावरसिंह दोनों भाई-भाई थे। वे तेजसिंह से भयभीत होकर दिल्ली चले गये। यशवन्तसिंह का भाई हरीसिंह दिल्ली के बादशाह के यहाँ रहा करता था। अखयसिंह और जोरावरसिंह ने उसी के यहाँ आश्रय लिया। हरीसिंह ने उन दोनों भाइयों के सामने प्रतिज्ञा की कि मैं जैसलमेर जाकर तेजसिंह को सिंहासन से उतार दूंगा और उसे अधिकारी न रहने दूंगा। इसके बाद हरीसिंह जैसलमेर गया। वहाँ का एक नियम यह था कि वर्ष के अन्तिम दिन जैसलमेर का राजा सब सामन्तों, परिवार के लोगों और सैनिकों के साथ घडसीसर जाता था और वहाँ पहुँचकर सरोवर की बालू की एक मुट्ठी लेकर बाहर फेंकता था, राज्य के सभी एकत्रित लोग उस सरोवर की बालू को बाहर फेंकने का कार्य करते थे। राज्य मे इस प्रकार की एक प्रथा बन गयी थी, जो ह्रास के नाम से प्रसिद्ध थी। हरीसिंह इसी अवसर पर जैसलमेर आया था। उसने सोचा कि घडसीसर के इस उत्सव में तेजसिंह पर आक्रमण करने का बड़ा अच्छा मौका है। उस उत्सव में नियमानुसार सबके साथ तेजसिंह घडसीसर गया। हरीसिंह अपने अवसर की ताक में था। अनुकूल समय पर उसने तेजसिंह पर आक्रमण किया। उसके शरीर मे इतने गहरे आघात आ गये कि उसकी मृत्यु हो गयी। परन्तु इससे हरीसिंह को अपने उद्देश्य में सफलता न मिली। तेजसिंह के मर जाने पर उसका तीन वर्प का बालक सवाई सिंह जैसलमेर के सिंहासन पर बैठा। इस अवसर पर अखय सिंह ने राज्य के समस्त भाटी सरदारों के पास एक पत्र भेजा। उसमें उसने लिखा- "आपको मालूम है, राज्य के सिंहासन का नैतिक रूप से अधिकारी मैं हूँ। तेजसिंह ने मेरे साथ अन्याय किया और स्वयं सिंहासन पर बैठ गया। जो बालक इस समय राज सिंहासन पर बिठाया गया है, वह उसका अधिकारी नहीं है। मैं अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए सभी प्रकार से तैयार हूँ और उसके लिए मैं सभी प्रकार का बलिदान करूँगा। अपनी राजभक्त प्रजा की मैं सहायता चाहता हूँ।" अखय सिंह के इस पत्र को पाकर जैसलमेर के भाटी सरदार बहुत प्रभावित हुए और वे अखय सिंह से आकर मिले। उन सरदारों की सहायता को पाकर अखय सिंह ने जैसलमेर 44
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