पैदा हुआ था। उसको चाचकदेव ने उसके ननिहाल भेज दिया। सोढा वंश की रानी लीलावती से बरसल, कम्बोह और भीमदेव नाम के तीन बालक पैदा हुए और चौहान वंश की रानी सूरजदेवी से रत्तू और रणधीर नामक दो बालक पैदा हुए। इन पाँच पुत्रों में बड़े पुत्र बरसल को उसने अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाया, खडाल राज्य को छोड़कर, तेरावर जिसका प्रधान नगर था। यह खण्डाल राज्य उसने रणधीर को दे दिया। इसके बाद उसने दोनों के मस्तक पर राजतिलक किया और दोनों के राज्यों को अलग-अलग कर दिया। बरसल सत्रह हजार सैनिकों की सेना को लेकर अपनी राजधानी की ओर चला गया। अपने राज्य को दो लड़कों में वॉटकर चाचकदेव सात सौ सैनिकों के साथ दीनापुर की तरफ रवाना हुआ। वहाँ पहुँचकर उसे मालूम हुआ कि मुलतान का राजा वहाँ से चार मील की दूरी पर अपनी सेना के साथ मौजूद है। चाचकदेव ने सुख और संतोप के साथ स्नान करके अपने देवता का पूजन किया और संसार के माया-मोह से अपने चित्त को हटाकर उसने भगवान का स्मरण किया। इसके थोड़ी देर के बाद उसके कानों में युद्ध के बाजों की आवाज सुनायी पड़ी। चाचकदेव ने तुरन्त अपनी सेना को तैयार किया और कई हजार मुलतानी सेना के साथ उसने युद्ध आरम्भ कर दिया। उस भयानक संग्राम में मुलतान के दो हजार सैनिकों का संहार करके चाचकदेव के सात सौ वीरों ने अपने प्राणों को उत्सर्ग किया। इसी समय युद्ध करते हुए चाचकदेव मारा गया और उसके बाद मुलतान का राजा लौटकर अपनी राजधानी चला गया। देवरावल में रणधीर जिस समय अपने पिता का श्राद्ध कर्म कर रहा था,चाचकदेव का एक दूसरा पुत्र कुम्भा पिता के शोक में दु:खी हो उठा और उसने उपस्थित लोगों के सामने प्रतिज्ञा की कि मैं मुलतान के राजा से अपने पिता का यह बदला लूंगा। इसके बाद कुम्भा अपने एक अनुचर के साथ राजा मुलतान के कैम्प में गया। इस स्थान के आस-पास चारों तरफ वाईस हाथ चौड़ी एक खाई थी। कुम्भा ने बड़े साहस के साथ अपने घोड़े पर बैठे हुए रात्रि के अंधकार मे उस खाई को पार किया और दूसरी तरफ जाकर वह चुपके से अपने घोड़े को बाहर वाँधकर मुलतान के राजा के कैम्प में पहुँच गया और बड़ी सावधानी के साथ राजा कल्लूशाह के पास पहुँच कर उसने उसकी गर्दन पर तलवार मारी। राजा कल्लूशाह गहरी नींद में सो रहा था। उसकी गरदन कटकर अलग हो गयी। उसके बाद कुम्भा तुरन्त वहाँ से निकलकर और वाहर आकर घोड़े पर बैठा। वहाँ से चल कर वह देवरावल आ गया। बरसल दीनापुर पर अधिकार करके केरोद चला गया। वहाँ पर लंगा लोगों ने हैबतखाँ की सहायता से उस पर आक्रमण किया। परन्तु उनकी पराजय हुई। इस युद्ध में कई हजार लंगा लोग मारे गये। इसके बाद ही हुसैन खाँ ने वीकमपुर पर आक्रमण किया और वह बरसल के साथ युद्ध करके पराजित हुआ। सन् 1474 ईसवी में वरसल ने वीकमपुर के महलों को वनवाया। इसके बाद यहाँ पर कोई बड़ी लड़ाई नहीं हुई। युद्ध की जिन घटनाओं के उल्लेख पाये जाते हैं, वे केवल रावल केलण के वंशजो और पंजाव के सामन्तों से सम्बन्ध रखते हैं। दोनो पक्षों की क्रमशः हार-जीत होती रही। कोई ऐतिहासिक मूल्य न होने के कारण उनका 39
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।