पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४४

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में सीता वंश के राजा की प्रपौत्री सोनलदेवी के साथ विवाह किया। लड़की के पितामह ने विवाह के उपलक्ष मे चाचकदेव को पचास घोड़े, दो सौ ऊँट, चार पालकियाँ और पैंतीस गुलाम दिये। इस दहेज के साथ चाचकदेव ने सोनल देवी के साथ विवाह का कार्य सम्पन्न किया और उसे विदा कराके अपने साथ ले गया। इस विवाह के दो वर्ष बीत जाने के बाद पीलवंग के राजा के साथ चाचकदेव का युद्ध आरम्भ हुआ। इसका कारण यह था कि भाटी राजपूत से उसका श्रेष्ठ घोड़ा छीन लिया गया था। चाचकदेव ने पीलवंग के राजा को पराजित करके उसकी राजधानी को लूट लिया। इन्हीं दिनों में यदुवंशियों के पुराने शत्रु लंगा लोगो ने अवसर पाकर चाचकदेव के दीनापुर के दुर्ग पर आक्रमण किया ओर दुर्ग की सेना को पराजित किया। चाचकदेव को अपना सम्पूर्ण जीवन लगातार युद्धों में व्यतीत करना पड़ा। उसने अनेक राजाओं के साथ युद्ध किया और विजय प्राप्त की। उसने पंजाव तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया। बुढ़ापे के दिनों में वह चेचक की बीमारी से रोगी हुआ। उस समय उसे भय हुआ कि इस रोग से मैं अब ठीक न हो सकूँगा, यह सोचकर वह मन ही मन बहुत दु:खी हुआ। उसका विश्वास था कि रोग से पीड़ित होकर चारपाई पर मरने वाले राजपूतों को नरक और युद्ध करते हुए प्राण देने वाले राजपूतों को स्वर्ग मिलता है। राजपूतों का यही धर्म है और इसी धर्म के पालन मे उनको गौरव प्राप्त होता है। बीमारी के दिनो मे चाचक देव ने अपने शत्रु के साथ युद्ध आरम्भ करने की इच्छा की। उसने मुसलमान लंगा जाति के राजा के पास अपना दूत भेजा और उस दूत ने वहाँ पहुँच कर कहा-"चाचकदेव की बीमारी के दिन चल रहे हैं। परन्तु वह बीमारी में मरने की अपेक्षा शत्रु के साथ युद्ध करते हुए मरना पसन्द करता है। इसलिए आपके साथ युद्ध करने का चाचकदेव ने निर्णय किया है।" मुलतान के राजा ने दूत की पर विश्वास नहीं किया और उसने सोच डाला कि चाचकदेव अपनी किसी छिपी हुई अभिलापा को पूरा करने के लिए हमे युद्ध-क्षेत्र में बुलाना चाहता है। इस प्रकार की बात अपने मन में सोचकर उसने चाचक देव के से "तुमने अपने राजा के सम्बन्ध में जो बात कही है, मैं उस पर विश्वास नहीं करता। इसलिए मेरा उत्तर यही है कि मैं चाचकदेव के साथ युद्ध नहीं करूंगा।" दूत ने इस उत्तर को सुन शपथ ग्रहण करते हुए कहा- "राजन आपको इस दूत पर विश्वास करना चाहिए। सही बात यह है कि राजा चाचकदेव का रोग असाध्य है और इस प्रकार मरने की अभिलापा चाचक देव की नही है। इसलिए अपने सात सौ सैनिकों के साथ राजा चाचक देव ने युद्ध में आने का निर्णय किया है। आप किसी प्रकार का संदेह न करें, मैं आपसे जो प्रार्थना करता हूँ, उस पर विश्वास करे।" मुलतान के राजा ने दूत की बात को स्वीकार कर लिया। उसके बाद दूत ने वहाँ से लोट कर चाचकदेव को उसकी स्वीकृति की सूचना दी। उसे सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और अपने विश्वासी शूरवीरों को सात सौ की संख्या में लेकर उसने युद्ध में जाने की तैयारी की। जाने के पहले उसने राज्य की व्यवस्था की। सीतावंश की रानी से गजसिंह नामक बालक इन बातों 44 कहा- 38