देते हुए कहा : "राजपूत जाति में जिस प्रकार मैं श्रेष्ठ हूँ, उसी प्रकार यह वृक्ष भी यहाँ के अन्य वृक्षो में श्रेष्ठ माना जाता है। यह वृक्ष चम्पा है। चम्पा का वृक्ष उत्तम होता है।" सामन्त कुशलसिंह के इस प्रकार उत्तर देने का यहाँ पर कोई तुक न था। लेकिन रामसिंह के प्रति उसकी भावनाये दूपित थीं। इसलिये वह उनको सम्हाल कर कोई अच्छा उत्तर न दे सका और उसने जो कुछ कहा, उसे सुनकर रामसिंह क्रोधित हो उठा। उसने कहा : "अभी मैं इस श्रेष्ठ वृक्ष को उखाडकर फेंक देता हूँ। मारवाड़ राज्य में चम्पा नाम का कोई वृक्ष नहीं रह सकता।" कुशलसिंह ने रामसिंह के इस जवाब को सुना। उसने कुछ उत्तर न दिया। लेकिन भीतर ही भीतर क्रोध से वह तमतमा उठा। उस दिन की बात यहीं पर समाप्त हो गयी और मण्डोर के जंगल से दोनों कुशल पूर्वक वापस चले आए। मारवाड के सामन्तों में कुशलसिंह की तरह कुन्नीराम भी एक प्रधान सामन्त था। वह आसोप प्रदेश का सामन्त था और उसने राजपूतो की कुम्पावत शाखा में जन्म लिया था। कुन्नीराम साहसी और युद्ध कुशल था। परन्तु उसकी मुखावृत्ति अच्छी न थी। एक दिन राजा रामसिंह ने बातचीत करते हुए कुन्नीराम को बूढा बन्दर कह दिया। यह सुनकर कुन्नीराम ने अपना अपमान अनुभव किया और उसने राजा रामसिंह को उत्तर देते हुए कहाः "जिस समय यह वन्दर नाचेगा आपको बड़ा आनन्द मालूम होगा।" सामन्त कुन्नीराम ने इस प्रकार रामसिंह को उत्तर दिया। परन्तु स्वाभिमानी सामन्त दरबार मे बैठा न रह सका। उसने आहवा के सामन्त कुशलसिंह की तरफ देखा। दोनों सामन्त एक साथ अपने स्थानो से उठे और दरवार से निकलकर चले गये। वे दोनो सामन्त नागौर मे पहुँचे और अनेक प्रकार के परामर्श करके युद्ध की तैयारी करने लगे उस समय नागौर मे वख्तसिंह नहीं था। लेकिन कुछ ही समय मे वह अपनी राजधानी मे आ गया। उसने दोनों सामन्तो से रामसिंह की बातें सुनी। उसने सोचा कि इन बातों के फलस्वरूप जो होने जा रहा है, वह मारवाड राज्य के भविष्य के लिये अच्छा नहीं है। यह सोच-समझ कर बख्तसिंह ने दोनों सामन्तों को समझाने की चेष्टा की और कहा कि मैं आप लोगो का मध्यस्थ बनकर इस झगड़े को निपटाने के लिये तैयार हूँ। मेरा विश्वास है कि यह विवाद जो बढा हुआ है, वह शान्त हो जाएगा। परन्तु अपमानित सामन्तों ने बख्तसिंह की बात को स्वीकार नहीं किया और उसी समय दोनों सामन्तो ने आवेश के साथ बख्तसिंह से कहा : "हम लोग रामसिंह को अपना राजा समझ कर कभी उसके दर्शन नहीं करेगे,आपकी बातो को सुनकर हम दोनों इतना ही कर सकते हैं कि आप मारवाड के सिंहासन पर बैठने के लिये तैयार हों। हम लोग सभी प्रकार से आपकी सहायता करेगे। लेकिन अगर आपने हमारी बात न मानी तो हम लोग सदा के लिये मारवाड राज्य छोड़ देंगे।" वखसिंह किसी प्रकार मारवाड मे इस प्रकार का उत्पात नहीं चाहता था। उसने उत्तेजित सामन्तो को बार-बार समझाने की चेष्टा की। वह समझता था कि जो विवाद राजा और सामन्तों मे पैदा हुआ है, वह किसी प्रकार अच्छा नहीं साबित होगा। जिन दिनो मे बख्तसिंह इस विवाद को शान्त करने की कोशिश मे लगा था, रामसिंह ने अपनी अयोग्यता का एक - 418
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