घबराहट का ठिकाना न रहा। उसी समय नागौर गया हुआ उसका पति लौट कर आ गया। उसने अपनी स्त्री से पूरी घटना सुनी। उसने बुद्धिमानी से काम लिया और सॉप को मारने के बजाय पहले की तरह उसने दूध पिलाना आरम्भ किया। ब्राह्मण की इस भक्ति से प्रसन्न होकर सॉप अपने अधिकार का समस्त सोना निकाल कर ब्राह्मण के पास लाया और उसे दिखाकर सॉप ने कहा : "यह समस्त सोना आज मैं तुमको सौंपता हूँ। तुम आज से इसके मालिक हो। लेकिन इसे पाकर तुम कोई ऐसा कार्य करना, जिससे मेरा कोई स्मारक बन सके।" सॉप के दिये हुए समस्त सोने को लेकर पीपा ब्राह्मण ने अपने अधिकार में किया और उस सम्पत्ति से सॉप के स्मारक में उसने "सॉपू सरोवर" नामक एक बड़ा तालाब बनवाया। इस सरोवर के सम्बन्ध में पीपल नगर के लोग इस प्रकार की कथा कहा करते हैं। उन्हीं के द्वारा इस फैली हुई जनश्रुति को सुना। पीपल्या नगर में एक कुण्ड है। उस कुण्ड का नाम लक्षफुलानी है। अत्यन्त प्राचीन काल में मारवाड़ राज्य के अन्तर्गत फुलैरा नामक एक स्थान था और उसमें लक्षफुलानी का अधिकार था। लोगो का कहना है कि वहुत पहले लक्षफुलानी को बड़ी ख्याति मिली थी और समुद्र के करीव तक उसने अपने राज्य का विस्तार किया था। लूनी नदी से सिन्धु तक यात्रा करने के दिनों में मैंने बहुत से स्थानों पर लक्षफुलानी का नाम सुना है।* 23 नवम्बर- पीपल्या नगर से माद्रीय नामक स्थान दस मील की दूरी पर है। वहाँ जाने के लिये जो रास्ता है, वह सभी प्रकार अच्छा है। लेकिन सम्पूर्ण रास्ता सुनसान रहता है। यह ग्राम औसत दर्जे का है। न तो वह बहुत अच्छा है और न बहुत खराब है। इस ग्राम में एक तालाब है। उसका जल अच्छा है। वहाँ के निवासी उस तालाब के जल को काम में लाते हैं। 24 नवम्बर-आठ मील के फासले पर झुरुण्डा नामक गाँव बसा हुआ था । हमारे आगे का सम्पूर्ण रास्ता धीरे-धीरे बदलता जा रहा था। इसके पहले बालू के जिस मार्ग मे हमें चलना पड़ा था, वह अब बिलकुल बदल गया था। आगे का मार्ग लगातार रेतीला और पथरीला हमें मिल रहा है। मार्ग में हमें वे सभी वृक्ष मिलते रहे, जो यहाँ पर पाये जाते हैं। यह मार्ग ऊँचाई पर होने के कारण जन साधारण मे गासुरियापाल के नाम से प्रसिद्ध है और यहाँ पर एकाएक किसी शत्रु के आक्रमण का मुकाबला करने एवम् वाणिज्य कर वसूल करने के लिये राजा की सेना रहा करती है ! मेडता वंश का शक्तिशाली कुचामन का सामन्त गोपाल सिंह झुरुण्डा नामक स्थान का अधिकारी है। इस गाँव में डेढ सौ घरो की आबादी है। अन्यान्य गाँव की तरह यहाँ के कृपक भी जाट वंश के हैं। वहाँ पर बने हुए स्मारकों को मैने देखा। उन स्मारकों में एक पर बदन सिंह का नाम खुदा हुआ है। वह कुचामन के शासक का सरदार था। मेडता के युद्ध मे लक्षफुलानी के सम्बन्ध में एक जनश्रुति बहुत पहले से चली आ रही है उस जनश्रुति को लोग कविता मे कहा करते हैं जो इस प्रकार है: कुशपगढ सुरजपुरा. बासुकगढ और तम। अन्धानिगढ जगरपुरा, जो फुलगढाई लक्ष । इस कविता से जाहिर है कि तक्षक वशीय नश्यफुलानी के अधिकार में कविता में वर्णित छ. नगर थे। 408
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४१२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।