एक शिलालेख मिला। उसमें गहलोत वंश के रावल विजय सिंह और दैलञ्ची राजपूत के नाम खुदे हुये है। यह शिलालेख मेवाड़ के इतिहास की कुछ बातों का समर्थन करता है। गहलोत वंशी राजपूत चौबीस भागों में विभाजित हैं, उस विभाजन के अनुसार उनकी चौवीस शाखायें मानी जाती हैं और उनमें पिपलिया नाम की एक शाखा है। पिपलिया लोगों के अधिकार करने के बाद इस स्थान का नाम पीपल्या नगर पड़ा है। इस शिलालेख से भी इस बात का समर्थन होता है। पीपल्या नगर में बहुत-से कुए और उनकी गहराई साठ फुट से लेकर अस्सी फुट तक है। यहाँ पर एक बडा तालाब है और उसका नाम है साँपू सरोवर। इस सरोवर का पानी बहुत साफ है। इस सरोवर के सम्बन्ध में एक जनश्रुति मुझे सुनने को मिली है। कहा जाता है कि पाली वंश का पीपा नामक एक ब्राह्मण था। वह इस सरोवर के पास रहने वाले एक सर्प को रोजाना दूध पिलाया करता था। वह सर्प तक्षक जातीय था। वह सॉप उस ब्राह्मण के दूध को पीकर रोजाना सोने के दो टुकड़े उसको दिया करता था। पीपा ब्राह्मण इससे बहुत खुश रहा करता था। कुछ दिनों के बाद अपने नगर से बाहर जाने के लिए उसे विवश होना पड़ा। उस दशा में उस ब्राह्मण ने अपने लड़के को सब वातें समझाई और अपने स्थान पर उस सॉप को दूध पिलाने का कार्य सौंप कर वह ब्राह्मण अपने नगर से बाहर चला गया। जाने से पहले ब्राह्मण ने दूध पिलाने के सम्बन्ध में सभी बातें भली प्रकार समझाई थीं। लेकिन उसके चले जाने पर उसका लडका सोचने लगा कि अगर मैं इस सॉप को मार डालूँ तो इसके पास जितना सोना है, सव का सब मुझे एक साथ मिल जाएगा। ब्राह्मण के लड़के ने बहुत कुछ सोच-समझ कर उस सॉप के पास का सम्पूर्ण सोना एक साथ लेने की कोशिश की। अपने पिता के बताने के अनुसार वह दूध लेकर सॉप को पिलाने गया और वह सॉप जैसे ही पास आकर दूध पीने लगा, ब्राह्मण के लडके ने बड़ी तेजी के साथ उस के सिर पर एक लाठी मारी। उस सॉप के चोट तो लगी, लेकिन वह मरा नहीं। सॉप तेजी के साथ भाग कर अपने विल मे घुस गया। यह देख कर ब्राह्मण का लडका चिन्तित हुआ और वहाँ से लौटकर घर आने पर उसने अपनी माता से वह घटना बतायी। उसे सुनकर उसकी माता भी चिन्तित हो उठी। ब्राह्मणी यह सोच कर घबराने लगी कि हमारे लड़के से चोट खाने के बाद भी वह सॉप मरा नहीं है। इसलिये वह सॉप बदला लेगा और इससे मेरे लड़के के लिये एक खतरा पैदा हो गया। उसने बहुत पहले न जाने कितने लोगों से सुन रखा था कि सॉप अगर चोट खाकर बच जाये तो वह बदला लेता है। इस विश्वास के अनुसार उसने सोच-समझ कर यह निश्चय किया कि कल सवेरा होते ही अपने लड़के को उसके पिता के पास भेज दूंगी। इसके लिये उसने एक बैल और साथ में जाने वाले एक आदमी का प्रबन्ध कर लिया। चिन्ता और भय के मारे ब्राह्मणी को रात में नींद नहीं आयी। प्रात:काल होते ही वह अपने लडके को जगाने के लिये उस स्थान पर गयी, जहाँ पर उसका लड़का रात को सोया था। ब्राह्मणी के मनोभावों में भय और चिन्ता तो थी ही। उसने वहाँ पहुँचते ही देखा कि वहाँ पर उसका लडका नहीं है और उसके स्थान पर सॉप सो रहा है। यह देखते ही उसकी 407
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