का जिक्र मुझ से किया, उनका उत्तर देते हुए मैंने कहा कि जिन लोगों ने आपके और आपके राज्य के साथ विश्वासघात किया है और आपके उन्माद के दिनों में अनैतिक लाभ उठाया है, उनको दण्ड देना पड़ेगा। उसके लिये सदा आपको तैयार रहना चाहिये। यह आपका कर्तव्य है, जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। आपने यही किया भी है और आवश्यकता के अनुसार भविष्य मे भी आपको यही करना पड़ेगा। शासक मे यह सभी गुण होने की जरूरत है। शासक साधु और महात्मा नही होता। सफल शासन के लिये इस प्रकार के उन सभी गुणो की जरूरत होती है, जो उसके शासन को कायम रख सके। आप में इस प्रकार की योग्यता और प्रतिभा है, इस बात को मै भली प्रकार जानता हूँ। मारवाड़ के अतीत और वर्तमान परिस्थितियों के सम्बन्ध में मैंने राजा मानसिंह से सभी प्रकार की बातें की और अपनी उन बातो में मैने उससे कहा : "जिसका हृदय निर्वल होता है, वह शासन नहीं कर सकता और ऐसे व्यक्ति के शासन मे अनाधिकारी,अयोग्य तथा गैर-जिम्मेदार लोग नाजायज लाभ उठाते हैं। आपके शासन काल में ऐसा समय बीत चुका है और उस समय अनेक लोगों ने ऐसा ही किया है। आपने अपनी इन परिस्थितियों को पूर्ण रूप से समझा है और विश्वासघातियो, अत्याचारियो और विरोधियो को उचित दण्ड दिया है। आपके लिये ऐसा करना जरूरी था। मेरा विश्वास है कि वह समय अब आ गया है, जब आप मारवाड़ राज्य मे सफलता पूर्वक शासन करेगे और आपके शासन मे अंग्रेजी सरकार आपकी सहायता करेगी।" विदा होने के सयम राजा मानसिह ने अपने पूर्वजों की एक तलवार, एक कटार और एक ढाल मुझे दी। वह तलवार अगणित शत्रुओ का अब तक संहार कर चुकी थी और भविष्य मे भी वह ऐसा ही करती रहेगी। बहुत देर तक बाते करने के बाद और राजा के दिये हुए उपहार को स्वीकार करने के बाद मैने राजा मानसिंह और मारवाड़ की राजधानी जोधपुर को सम्मानपूर्वक नमस्कार किया। इसके बाद राजा की तरफ देखता हुआ मै उससे विदा हुआ। रवाना होने के पहले पत्र- व्यवहार करने के लिये मैने राजा से अनुरोध किया था, वह आरम्भ हुआ। लेकिन थोडे समय के बाद वह बन्द हो गया। 404
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