ऊपर जिन मूर्तियों का उल्लेख किया गया है, उनके सिवा कृष्ण काली की प्रतिमा भी है, वह घोड़े पर सवार है। इस प्रतिमा को यहाँ के लोग प्रभु जी की प्रतिमा कहते हैं। मारवाड के बहुत से कवियों ने प्रभु जी की प्रशसा मे कवितायें लिखी हैं और वे समय-समय पर अपने प्रभु जी की कविताओं को गा-गा कर सुनाया करते है। इसमे उन कवियों को वडी प्रशंसा मिलती है। अनेक चित्रकार प्रभु जी का चित्र बनाकर मारवाड़ के देहातो मे रहने वाले लोगो को दिखाते हैं और ग्रामीण लोग भक्ति भावना से प्रेरित होकर चित्र दिखाने वालो को दान में धन देते हैं। प्रभु की मूर्ति के पीछे प्रसिद्ध वीर रामदेव की प्रतिमा है। रामदेव के सम्मान में राजस्थान के प्रत्येक ग्राम मे पूजा करने की वेदी का निर्माण किया गया है। सम्पूर्ण राजस्थान मे रामदेव राठोर को बडी ख्याति मिली थी और आज तक राजस्थानी लोग उस पर अपनी आस्था रखते हैं। इसके पश्चात् मंने हड़यू सांपला की मूर्ति देखी। वह अत्यन्त स्वाभिमानी था और जिन दिनो में जोधा अपने राज्य से निर्वामित होकर दिन व्यतीत कर रहा था। हडव मांखला ने उन दिनो मे उनकी बडी सहायता की थी। चित्तौड के राणा का मण्डोर पर अधिकार हो जाने पर उसने उद्धार के लिए बड़ा प्रयत्न किया था। इसकी प्रतिमा भी मैने यहाँ पर देखी। आगे बढन पर मने प्रमिद गोगा चौहानों की प्रतिमा देखी। मुलतान महमूद के भारतवर्ष में आक्रमण करने पर स्वाभिमानी और शूरवीर गोगा चौहान ने उसकी विशाल सेना के साथ युद्ध किया था और उग्न युद्ध में अपने संतालिम पुत्रों के साथ स्वाधीनता की रक्षा करते हुए गोगा चोहान मारा गया था। यह युद्ध शतद्र नदी के निकट हुआ था। मैंने गोगा की प्रतिमा को सम्मान पूर्वक कुछ देर तक देखा। सव के अन्त में गहिलोत राजपूत मधुमङ्गल नामक प्रसिद्ध सूरमा की प्रतिमा को मैंने देखा। इन समस्त शूरवीरो की प्रतिमाओं को देखकर मुझे वडी प्रसन्नता हुई। वहां की प्रत्येक प्रतिमा का दर्शन मानो मेरे शरीर मे शक्ति की बिजली दौड़ा रहा था। वडी गम्भीरता के साथ मैं इन प्रतिमाओं को देखता रहा। प्रत्येक मूर्ति के साथ उसके जीवन का जो इतिहास है, वह मेरी आँखों के सामने घूम रहा था। इन शूरवीरो की मूर्तियों की स्थापना करके इस देश में शक्ति और शौर्य कायम रखने की चेष्टा की गयी है। ऊपर जिस कमरे का वर्णन किया गया है, उसके पास ही एक दूसरा कमरा है। दोनो की बनावट एक है। पहले कमरे की अपेक्षा दूसरा कमरा वडा है। "तैतीस कोटि देवताओं का स्थान" के नाम से दूसरा कमरा प्रसिद्ध है। इस दूसरे कमरे मे जो देवताओं की मूर्तियाँ हैं, वे सभी पत्थर की बनी हुई हैं और उनके आकार कई प्रकार के हैं। छोटी और बडी आकार मे सभी प्रकार की मूर्तियाँ वहाँ पर देखने को मिलती हैं। वहाँ की कुछ मूर्तिया का यहाँ उल्लेख करना आवश्यक है। इसीलिये उनके सम्बन्ध मे नीचे लिखा जाता है। इस कमरे में सब से पहले ब्रह्मा की मूर्ति है। भारतवर्ष के लोग ब्रह्मा को मृष्टि कर्ता मानते हैं। दूसरी मूर्ति सात घोडो की एक सवारी पर है। वह सूर्य की मूर्ति है। उसके पास रामचन्द्र और सीता की प्रतिमा देखने को मिलती है। उसके पश्चात् गोपियो से घिरे हुए कृष्ण 400
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