अभी तक अपना फन फैलाये हुए सॉप बैठा है। उसने उसी समय इस बात का विश्वास किया कि यह दृश्य बालक के उज्ज्वल भविष्य का परिचय दे रहा है कि केहर किसी समय राजसिंहासन पर बैठेगा। घडसी को जैसलमेर में शासन करते हुए कई वर्ष बीत चुके थे, परन्तु उसके कोई सन्तान पैदा न हुई। इसलिए उसको मानसिक खेद रहने लगा। इस विपय में निराश हो जाने के बाद उसने अपनी रानी विमला देवी को किसी बालक को गोद लेने का परामर्श दिया। उसकी रानी ने इस बात को स्वीकार कर लिया और गोद लेने के लिए किसी बालक की खोज होने लगी। वह बालक यदु भाटी वंश का होना चाहिये। अनेक बालकों की बातचीत होने के बाद रावल घडसी ने केहर को गोद लेने का निश्चय किया। यह समाचार बड़ी तेजी के साथ जैसलमेर और उसके आस-पास के स्थानों में फैल गया। इसे सुनकर जसहड के दोनों लड़के बहुत असंतुष्ट हुए और घडसी के विरुद्ध कोई पड्यंत्र करने के लिये वे उपाय सोचने लगे। इन्हीं दिनों में जैसलमेर राज्य की तरफ से एक विशाल सरोवर खुदवाया जा रहा था। उसको देखने के लिये रावल घडसी रोज वहाँ जाता था। एक दिन जसहड के दोनों लड़कों ने उस पर आक्रमण किया और उसे जान से मार डाला। घडसी की मृत्यु का समाचार सुनकर विमला देवी ने भली-भाँति समझ लिया कि जसहड के लड़को ने जैसलमेर राज्य का अधिकार प्राप्त करने के लिये ही यह अपराध किया है। इसलिये उसने केहर को गोद लेने और जैसलमेर का उसे राजा बनाने की घोषणा कर दी। इसलिए जसहड के पुत्रों का उद्देश्य संकट में पड गया। घडसी के मृत शरीर के साथ रानी विमला के सती न होने का कारण यह हुआ कि रावल घडसी के द्वारा जो विशाल सरोवर बनवाया जा रहा था, उसका कार्य अभी बहुत बाकी था और उसे पूरा करना रानी विमला का कर्त्तव्य था। एक कारण और था। स्वामी के हत्यारों के उद्देश्य को असफल बनाने के लिए जिस केहर को गोद लेने की उसने घोषणा की थी, उसकी सहायता करना भी उसके लिये कुछ दिनों तक जरूरी कार्य था। रावल घडसी के मारे जाने के बाद छ: महीने में उस विशाल सरोवर के निर्माण का कार्य समाप्त हो गया। विधवा विमलादेवी ने अपने पति के नाम से उस सरोवर का नाम घडसीसर रखा। जिन लोगों ने रावल घडसी की हत्या की थी, वे अब केहर के सर्वनाश का उपाय सोचने लगे। घडसीसर का कार्य समाप्त हो जाने पर विधवा रानी विमला ने सती होने का निर्णय किया और अग्नि में भस्मीभूत होने के पहले उसने अपना निर्णय सब को सुनाया कि "हमीर के पुत्र केहर के दत्तक पुत्र और उत्तराधिकारी हो सकते हैं।" हमीर के दो लडके थे। बड़े लड़के का नाम था जेतसी और छोटे का नाम था लूनकर्ण । जेतसी के वयस्क होने पर चित्तौड़ के राणा कुम्भ ने उसके विवाह के लिए नारियल भेजा। उसका निश्चय हो जाने पर अपने बहुत-से आदमियों के साथ विवाह के लिये जेतसी मेवाड़ के लिए रवाना हुआ। अरावली पर्वत से चौबीस मील के आगे सालवनी का प्रसिद्ध सरदार सांकला मीराज मिला। भाटी राजकुमार ने उस दिन उसके यहाँ विश्राम किया और 34
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