पड़यंत्र में राज्य के आदमियों को फँसाने में बड़ी सावधानी से काम ले रहा था और अक्षय चन्द की तरफ के लोग राजा मानसिंह को अपने जाल में फंसाने की कोशिश में थे। पडयंत्र के इन दिनों में मैं मारवाड़ राज्य में पहुंचा था। वहाँ जाकर मैंने राजा मानसिंह को बहुत चिन्तित और परेशान देखा । अक्षयचन्द और उसके पक्षपातियों ने एक भीपण पड़यंत्र में मानसिंह को फंसा रखा था। जो लोग राजा के शुभचिन्तक थे, अक्षयचन्द ने उनसे राजा को अलग करने की पूरी चेष्टा की थी। जो लोग अक्षयचन्द के विरोधी थे, वह उनको कैद नहीं कर सकता था, इसलिए उनके विरुद्ध उसने राजा मानसिंह को भड़काने का काम किया। वह इस प्रकार के कार्यो में बहुत होशियार था। उसकी सहायता से मानसिंह ने उन सभी लोगों से अपना बदला लिया, जिनको वह दण्ड देना चाहता था। जब राजा मानसिंह अक्षय चन्द की सहायता से अपने विरोधियों से बदला ले चुका, तब उसने मन्त्री अक्षयचन्द और उसके पक्षपातियों पर शासन की कठोरता आरम्भ की। राजा मानसिंह ने सव से पहले अक्षयचन्द और उसके समर्थक राजा के पदाधिकारियों को उनके पदों से अलग किया और उसके बाद उसने उन सवको कैद करके कारागार में वन्द कर दिया। मन्त्री अक्षयचन्द को जव मालूम हुआ कि अब मेरे बचने की कोई उम्मीद नहीं है तो उसने राजा मानसिंह से प्रार्थना की और अपनी मुक्ति के बदले उसने अपने पास की सम्पूर्ण सम्पत्ति दे देने का वादा किया। राजा मानसिंह ने उसकी इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। अक्षयचन्द ने अपने अधिकार की चालीस लाख रुपये की समस्त सम्पत्ति राजा मानसिंह को दे दी। उस सम्पत्ति को लेकर मानसिंह ने अपने अधिकार में किया और मन्त्री अक्षयचन्द को मरवा डाला। इसके बाद राजा मानसिंह ने अपने राज्य में मुनादी करवा दी, कि जो आदमी राज्य के पदों से निकाले गये हैं, उनके अपराधों को क्षमा कर दिया जाएगा। इस पर दुर्ग के अधिकारी नाग जी और मल्ल जी धोंधल नामक दो आदमी-जो मारवाड़ राज्य से भाग गये थे, लौटकर राज्य में वापस आ गये और रहने लगे। छत्रसिंह के शासन काल में उन दोनों ने अपने पास बहुत-सी सम्पत्ति एकत्रित कर ली थी। उन दोनों के राज्य में लौट आने पर राजा मानसिंह ने उनके पास की सम्पूर्ण सम्पत्ति छीन ली और उन दोनों को विप देकर मार डाला। इस प्रकार विनाश और संहार करने के बाद भी राजा मानसिंह शान्त नहीं हुआ। राज्य में अन्याय करने वालो में किसी के साथ उसने रियायत नहीं की और बड़ी निर्दयता के साथ उसने उन सबका विनाश और संहार किया, जिन्होंने उसके उन्माद के दिनों में सम्पत्ति को लूट करके अत्याचार किये थे उसने उनको कैद करके कारागार में बन्द किया, उनके अधिकार की सारी सम्पत्ति उनसे छीन ली और उसके बाद भी उसने उनको जिन्दा नहीं रखा। कहा जाता है कि राजा मानसिंह ने ऐसा करके एक करोड़ रुपये अपने खजाने में एकत्रित किये। मारवाड़ राज्य में मेरे जाने के छः महीने के बाद और अंग्रेजी सरकार के साथ मित्रता कायम होने के अठारह महीने पश्चात् राजा मानसिंह ने अपने राज्य में विनाश और संहार के ये काम किये थे। मानसिंह के इन सब कार्यों का मैं समर्थन नहीं करता। लेकिन 391
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