राजस्थान के राज्यों की परिस्थितियाँ आज पहले की सी नहीं रह गयीं। सिंधिया और होलकर के लगातार आक्रमण के कारण इन राज्यों की मान-मर्यादा को बड़ा आघात पहुँचा है। फिर भी कम्पनी के प्रति यहाँ के लोगों की व्यावसायिक धारणा हमको अपनी परिस्थितियों को सावधानी के साथ सोचने और समझने के लिए बाध्य करती है। हमारा शासन चाहे जितने विस्तार में फैला हुआ हो और हमने यहाँ के राजाओं के प्रति कितना ही उपकार क्यों न किया हो लेकिन राजाओं की समानता करने वाले हमारे पद का निर्माण नहीं होता। इस दशा में कम्पनी के प्रतिनिधि का स्वागत किस रूप में होता है यह समझने की जरूरत है। राजपूत राजाओं की आज जो भीतरी दुरवस्थायें हैं, उन्होंने उन राजाओं को अपनी श्रेष्ठता भुला देने के लिए मजबूर कर दिया है। उनकी बढ़ती हुई दूरावस्थाओं का ही परिणाम है कि अमीर खाँ और बापू सिंधिया जैसे व्यक्ति राजपूत राजाओं के समान सम्मान पाने के लिए दावा करने लगे हैं। राजा ने स्वयं अपने प्रतिनिधि को भेजकर अमीर खों का स्वागत-सत्कार किया था। जो सामन्त उनके स्वागत के लिए भेजा गया था, वह कौन था और कितनी ऊँची उसकी श्रेष्ठता थी, इसका ख्याल नहीं किया गया। यह संसार है और यहाँ पर यह सदा से होता चला आया है। किसी भी दशा में जो सम्मान इन राजाओं से मराठा सेनापति को मिला है, इससे कम किसी प्रकार संतोपजनक नहीं हो सकता। वहुत समय से जो वकील मेरे साथ रहा है, मैंने उससे अनेक प्रकार के प्रश्न किये और इस जटिल समस्या को समझने तथा सुलझाने के लिए उसको राज-दरबार में भेजा और राजधानी से पॉच मील के पहले ही इस स्थान पर मुकाम करके मैं उसका रास्ता देखता रहा। मैं स्वयं इस प्रकार के सम्मान को अधिक महत्त्व नहीं देता। लेकिन यह सम्मान मेरा व्यक्तिगत सम्मान नहीं है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रतिनिधि के पद पर होने के कारण मैं वही सम्मान चाहता हूँ, जो कम्पनी के लिए योग्य और मुनासिब हो सकता है। मैं यह समझता हूँ कि आज का व्यवहार भविष्य में दोनों के सम्मानपूर्ण अस्तित्वों की रचना करेगा। यही सोच-समझकर मैंने वकील को राजा के दरबार में भेजा है। मेरी समझ मे दोनों के सम्मान की रक्षा होनी चाहिए। राजा के दरबार में भेजे गये वकील* के द्वारा जब स्वागत के सम्बन्ध में बातचीत हो गयी और मालूम हो गया कि राजा पालकी में बैठकर कम्पनी के प्रतिनिधि के स्वागत के लिए आवेगा तो हम लोगों ने झालामंद से प्रस्थान किया और दोपहर के समय हम सब के साथ जोधपुर की राजधानी की तरफ रवाना हुए। राजा के भेजे हुए पोकरण और निमाज के दो सामन्त हमारे स्वागत के लिए राजधानी से चलकर कुछ दूर आगे आये और उन दोनो सामन्तों ने मुझसे भेंट की। मैं घोड़े से उतर पड़ा और दोनो सामन्तो से बड़े प्रेम के साथ मिला। कुशल समाचार पूछने के बाद मैं फिर घोड़े पर सवार हुआ और दोनो सामन्तो के साथ राजधानी की तरफ चलने लगा। सन 1818 ईसवी के दिसम्बर महीने में अजमेर का सुपरिन्टेन्डेन्ट विल्डर जोधपुर के वकील की हैसियत से भेजा गया था, उस समय राजा ने बड़े सम्मान के साथ उससे भेंट की थी और स्वागत के सम्बन्ध में निर्णय किया था। 375
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