करने का साहस नहीं करती। भीलवाड़ा, झालरापाटन और दूसरे प्रसिद्ध व्यावसायिक नगरों की तरह पाली के निवासी भी अपने नगर की व्यवस्था करने का अधिकार रखते हैं और भीलवाड़ा की तरह पाली नगर भी राज्य की तरफ से कई बातो में स्वतन्त्रता का अधिकारी है। प्राचीनकाल से पाली नगर उत्तरी भारत का सम्बन्ध समुद्री किनारे से जोडने के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है। मस्कट, मालद्वीप, सुराट और नाऊनगर आदि व्यावसायिक नगरों से फारस, अरब, अफ्रीका और योरोप का बना हुआ माल यहाँ पर भेजा जाता है और इस पाली नगर से भारतवर्ष तथा तिब्बत का बना हुआ माल ऊपर लिखे हुये स्थानो पर भेजा जाता है। समुद्र के तट पर बसे हुए देशों से हाथी दाँत, गैंडे का चमड़ा, ताँवा, टिन, जस्ता, सूखा खजूर और पिण्ड खजूर, अरब का गोद, सुहागा, नारियल, वनात और रेशमी कपड़े, अनेक प्रकार के रग, कितनी ही औपधियाँ, गन्धक, पारा, मसाले, चन्दन की लकड़ी, कपूर, चाय, हरे रंग का काँच और औपधियाँ बनाने के लिए मोम आता है।* वहाँ से आने वाला पिण्ड खजूर इस देश में बहुत खपता है और जो वहाँ से विभिन्न प्रकार के रंग आते हैं, उनकी भी यहाँ पर वड़ी खपत होती है। भावलपुर से सज्जी मिट्टी, आल, मजीठ, नमक, रंग, बन्दूके, पके फल, हींग, मुलतानी, छींट और सन्दूक तथा पलंगों के लिए लकड़ी आती हैं। कोटा और मालवा से अफीम और छींट आती है। भोज से तलवार और घोड़े भेजे जाते हैं। पालीनगर से नमक और रेशम भेजा जाता है। इस नगर मे एक प्रकार का कागज और सूती मोटा कपड़ा बहुत महशूर है। व्यापारी लोग इन दोनों चीजों को बड़ी संख्या में दूसरे नगरों और देशों में ले जाते है । पाली की बनी हुई लोई बहुत प्रसिद्ध है। भारतवर्ष के सभी स्थानो मे उस लोई की विक्री होती है और वे लोइयाँ चार रुपये से लेकर साठ रुपये तक जोड़े के हिसाब से विकती हैं। ओढ़नी और पगडी भी नगर की बनी हुई अच्छी समझी जाती है और इसीलिए उनकी खपत भी इस देश मे अधिक होती है। परन्तु ये दोनो चीजें दूसरे देशों में नहीं भेजी जाती। पाली नगर में जो चीजे तैयार होती है और दूसरे नगरों तथा देशों के साथ जिनका व्यापार होता है, उनमें नमक प्रधानता रखता है। यहाँ का बना हुआ नमक बहुत अधिक दूसरे स्थानो को जाता है और उसके द्वारा इस नगर को आमदनी भी अच्छी होती है। पता लगाने के बाद मुझे मालूम हुआ है कि इस नमक से होने वाली आमदनी, राज्य की आमदनी की आधी से कम नहीं होती। यहाँ पर कई जलाशयो मे पचपद्रा, फलोदी और डीडवाना प्रमुख हैं। इन झीलो मे बहुत अधिक नमक तैयार होता है। पचपद्रा झील का विस्तार कई सौ मीलो तक है। पाली नगर मे जो नमक तैयार होता है, उससे वर्ष में पछत्तर हजार रुपये की आमदनी होती है। मारवाड जैसे गरीव राज्य के लिए यह आमदनी एक बडी आमदनी है। जब मैं सिधिया के दरबार में गया था तो वहाँ के सभी लोगों ने यह बात समझ ली थी कि मैंनभी प्रकार के रोगों का इलाज करना जानता है और उनके सम्बन्ध को सभी चीज मेरे पास रहती है। उस मामन्त की स्त्री को मोम को आवश्यकता थी। उसने मेरे पास अपना एक नोकर भेजा। उस सामन्त के यहां वह नौकर खबरदार कहलाता था। उसने आकर मुझसे मोम मांगा। मेरे पास मोम न था। इसलिए मोम देने से मुझे इन्कार करना पड़ा। लेकिन उस नौकर को मेरी बात का विश्वास न हुआ। उसने समझा कि मेरे पास मोम है। लेकिन मैं देना नहीं चाहता। उसकी इस हालत को समझ कर मैंने उसे हिन्दुस्तानी रबड़ का एक टुकड़ा दे दिया और वह उसको मोम समझ कर ले गया। 3700
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