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किसानो की अपेक्षा अपनी फसलों में अधिक अनाज पैदा करते हैं। परन्तु ये लोग मेवाड़ के किसानों की तरह अच्छी हालत में नहीं दिखाई देते । इस प्रदेश में किसानों को देखकर ऐसा मालूम होता है, जैसे उनमें जीवन का बहुत बड़ा अभाव है और उनके प्राण सूख कर निर्वल पड़ गये हैं। किसानो की इस परिस्थिति को मेने भली प्रकार समझा। मेवाड और मारवाड की प्रजा मे इस समय जो एक बड़ा अन्तर मुझे दिखायी देता है, उसकी उपेक्षा करना किसी प्रकार अच्छा नहीं हो सकता। जिस प्रदेश के किसान अच्छी फसले पैदा करते हों और अनाज की पैदावार में जो अच्छे रहते हों उनकी परिस्थितियाँ नाजुक और निर्जीव क्यो दिखायी देती हैं, उसका स्पष्ट कारण यहाँ का शासन है। मारवाड़ के राजा को उसके प्रधानमन्त्री ने शासन सम्बन्धी कार्यो में निर्वल और अयोग्य बना रखा है। यहाँ के राजा अपने प्रधानमन्त्री से अधिक प्रभावित हैं और इसका परिणाम यह हुआ कि प्रधानमन्त्री के द्वारा राज्य में एक अव्यवस्था चल रही है। उसके कारण यहाँ की प्रजा सुखी और सन्तुष्ट नहीं है। मेरी समझ में इस प्रदेश की प्रजा के लिए राज्य की यह दुरवस्था प्रत्येक भाँति कष्टमय है। यही कारण है कि वहाँ के किसान अच्छी पैदावार करते हुए भी प्रसन्न नहीं दिखायी देते। इस प्रदेश के पश्चिमी भाग में नादोल बसा हुआ है। प्राचीन काल मे अजमेर के चौहानों की एक शाखा यहाँ पर रहती थी। इस नादोल के राजपूतों के वंश से ही सिरोही के देवड़ा और जालोर के सोनगरा लोगों की उत्पत्ति हुई। उन लोगों पर राठोर राजपूतों के बहुत अत्याचार हुए हैं और उनके अत्याचारों को उन लोगों ने सहन कर के भी अपनी रक्षा की है। यह उनकी विशेषता है। दूसरे अलाउद्दीन ने जब यहाँ पर आक्रमण किया था तो सोनगरा वंश के राजपूतों ने साहसपूर्वक उसका मुकाबला किया था। परन्तु समझ में नहीं आता कि स्वतन्त्र राज्यों के नामों के साथ उस वंश का नाम कहीं पढ़ने को क्यों नहीं मिलता। नादोल मे छोटेवड़े सब मिलकर तीन सौ साठ नगर और ग्राम हैं, जो जोधपुर राज्य में माने जाते हैं। सम्पूर्ण राजस्थान में ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहाँ पर चोहानो की वीरता के प्रमाण न पाये जाते हों। यह बात सही है कि बहादुरी में भी राजपूतों को महानता दी जाती है। लेकिन युद्ध के कौशल और शौर्य में चौहानो का स्थान अधिक श्रेष्ठ समझा जाता है, इतिहास के विद्वान इस बात को स्वीकार करते हैं। राजपूतों में जिस वंश के साथ मुझे अधिक समय तक रहने का मौका मिला है, उनके इतिहास को और उनके बहादुरी के कार्यो को मैं भली प्रकार समझ सका हूँ। इस विषय में जहाँ तक मुझको जानकारी है, मैं कह सकता हूँ कि भारतवर्ष के समस्त राजपूतों में चौहानों का स्थान ऊँचा है। यही कारण है कि राजपूतों में चौहानों की प्रशंसा कवियों ने अधिक लिखी है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। चौहानो की श्रेष्ठता को स्वीकार करने के बाद भी यह तो कहना ही पड़ेगा कि सम्राट पृथ्वीराज के बाद चौहानों की परिस्थितियों में बहुत परिवर्तन हो गया है और यह बात सही है कि जो वीरता और बहादुरी पृथ्वीराज के समय चौहानों में पायी जाती थी, उसका एक बड़ा भाग चोहाना में नष्ट हो गया है। ऐसा होना स्वाभाविक था। यह अवस्था केवल चौहानों 364